दस्तक-विशेष

राज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री ! केरल में शीर्ष पदों पर टकराव !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: कम्युनिस्ट-शासित केरल राज्य में राज्यपाल खान मोहम्मद आरिफ खान के विरूद्ध अभियान चल रहा है। वजह क्या है ? माकपा मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के निजी सचिव हैं केके रागेश। उनकी धर्मपत्नी हैं श्रीमती प्रिया वर्गीज। उन्हें कन्नूर विश्वविद्यालय कुलपति तथा माकपा हमदर्द गोपीनाथ रवीन्द्रन ने मलयालम भाषा विभाग में एसोसिएटेड प्रोफेसर नियुक्त कर दिया है। चयन समिति के समक्ष छ प्रत्याशी पेश हुये थे। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार प्रिया का शोध स्कोर मात्र 156 था। द्वितीय स्थान पर नामित हुये प्रत्याशी को 651 अंक मिले थे। इन्टर्व्यू में द्वितीय आये उम्मीदवार को कुल 50 में से 32 अंक मिले। जबकि प्रिया को पचास में से मात्र 30 अंक। राज्यपाल आरिफ को सूचना मिली कि प्रिया के पति रागेश माकपा के छात्र संगठन एसएसआई के प्रमुख थे और माकपा के पूर्व सांसद। इसी बीच केरल हाईकोर्ट ने प्रिया की नियुक्ति पर रोक भी लगा दी। विश्वविद्यालय अनुदान (यूजीसी) को नोटिस भी जारी कर दी।

एक जानकार ने इस पूरे प्रकरण पर टिप्पणी की (दैनिक हिन्दुस्तान: 30 अगस्त 2022, पृष्ठ-10) कि: ‘‘काडर आधारित राजनीतिक दल महत्वपूर्ण पदों पर अपने समर्थकों की नियुक्ति को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इससे संगठन व सरकार के बीच जुड़ाव सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। मगर इसे परिवार के सदस्यों तक ले आना निश्चित ही तनातनी को बढ़ाता है, और इससे भाई-भजीजावाद की बू भी आती है। इस तरह की परम्परा का अंततः निस्संदेह राष्ट्र और राज्य, दोनों के लिए हानिप्रद है।‘‘

मगर प्रिया वर्गीज के चयन के समर्थन में माकपा नेता एके बालन का सवाल है: ‘‘क्या कोई ऐसा मानदंड है कि बड़े नेताओं के बच्चे यदि योग्य भी हैं, तो उनको नौकरी नहीं दी जाये ?‘‘स्मरण रहे कि इसके अतिरिक्त केरल में एक और शासकीय कुप्रथा है। इससे राज्यकोष पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। आरिफ मोहम्मद खान ने इस प्रणाली पर भी रोष व्यक्त किया। केरल के मंत्रियों को अधिकार है कि वे बीस-बीस व्यक्तियों को अपने निजी स्टाफ में नियुक्त कर सकते हैं। स्वाभाविक है कि सभी माकपा के युवा काडर के राजनीतिक कार्यकर्ता होंगे। ढाई साल की नौकरी के बाद सभी कर्मचारियों को कानूनन आजीवन पेंशन भी मिलती है। क्या पार्टीबाजी है! भारत सरकार के मंत्रियों को भी ऐसा महत्वपूर्ण और लाभकारी अधिकार नहीं है। राज्यपाल ने इस पर ऐतराज जताया तो माकपा मुख्यमंत्री नाराज हो गये। माकपा ने राज्यपाल के पद ही को खत्म करने की मांग कर दी। अगली मांग माकपा की शायद होगी कि केरल को गणराज्य घोषित हो जाये। संयुक्त राष्ट्र संघ का स्वतंत्र सदस्य नामित हो जाये।

याद आई एक घटना। विश्व में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी वोट द्वारा केरल में सत्ता पर आई थी। ईएम शंकरन नंबूदिरीपाद मुख्यमंत्री बने थे। उनकी काबीना ने शपथ लेते ही पहला निर्णय किया। फांसी की सजायाफ्ता पार्टी कार्यकर्ता की क्षमा याचना स्वीकार कर उसे रिहा करने का आदेश दिया। तर्क यह था कि कम्युनिस्ट पार्टी की मान्यता है कि जमींदार को खत्म करे, क्योंकि वह जनद्रोही होता है। पार्टी कार्यकर्ता ने एक लोकशत्रु की हत्या की है, अतः वह पार्टी के कार्यक्रम को ही कार्यान्वित कर रहा था। अर्थात विधानसभा और अदालते समाप्त कर दी जायंे। पार्टी और सरकार में अंतर खत्म। तभी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी और कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की सलाह पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री नंबूदिरीपाद पदच्युत होकर उसी दौर में भारतव्यापी यात्रा पर जनसभाएं करते रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय में भी आये थे। उस सभा की मैं अध्यक्षता कर रहा था। उनका स्वागत करते मैंने कहा था: ‘‘एशिया की दो त्रासदियां। पहली त्रावनकोर में निर्वाचित सरकार को नेहरू काबीना द्वारा भंग कर देना। दूसरा, उधर हिमालयी राज्य तिब्बत में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने परमपावन दलाई लामा की सरकार को सैन्य बल से अपदस्थ कर दिया।‘‘ इस पर कम्युनिस्ट पुरोधा नम्बुदिरीपाद अचकचाहट महसूस कर रहे थे। पर एक परिहास से तनावभरा वातावरण फ्यूज हो गया जब श्रोताओं में से एक छात्र का नादान प्रश्न था ‘‘आदरणीय नम्बुदिरीपाद जी ! क्या आप हमेशा हकलाते हैं?‘‘ बड़ी सुगमता से पूर्व मुख्यमंत्री ने जवाब दिया: ‘‘ हमेशा नहीं, केवल जब मैं बोलता हूं, तब!‘‘

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Related Articles

Back to top button