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गोयल की रेल कहीं छूट न जाय

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ: मोदी है तो मुमकिन है, कहते हैं उनके समर्थक। पर अब लोग यह भी कहने लगे हैं कि गोयल है तो और भी ज्यादा मुमकिन है। जब लाॅकडाउन की घोषणा की गई और रेलें बंद करने का ऐलान किया गया तो रेल मंत्री पीयूष गोयल के मुॅह से उन लाखों मजदूरों के हितरक्षण में दो बोल भी नहीं फूटे जो कल-कारखाने बंद हो जाने के बाद अपने घरों को लौटने को फड़फड़ाने को मजबूर थेे।

हमारी जानकारी में उन्होंने किसी स्तर पर भी इस बात का सुझाव केन्द्रीय सरकार को नहीं दिया कि रेलें बंद करके सारे देश का आपसी सम्पर्क पूरी तरह तोड़ देने जैसा बड़ा फैसला सोच समझकर लिया जाय और अगर और कुछ नहीं तो इसे किस्तों में लागू किया जाय।

नतीजा यह हुआ कि पूरे देश में अफरा तफरी मच गई और गोयल जी की रेलेें पूरी तरह बंद होने, राज्य सरकारों की बसें बंद हो जाने से हजारों मजदूर तपती धूप में भूखे, प्यासे, नंगे पैर, सामान सिर पर, बच्चे गोद में लादे पैदल चल पड़ने को मजबूर हुए। कई मजदूर सड़कों पर, रेलवे ट्रैकों पर, मालगाड़ियों के नीचे दबकर मर गए और बहुत से दूसरे बेईमान व क्रूर मालिकों के खस्ता हाल वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने से बेमौत मारे गए। एक से एक कौशल-सिद्ध नेता व अधिकारी इस बात का पूर्नानुमान करने में पूरी तरह असफल रहे कि रेलें और बसें नहीं चलने से मजदूर आखिर किस दशा और दिशा को प्राप्त होंगे।

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अब सरकार ने, रेल मंत्रालय ने, रेल मंत्री ने आदेश दिए कि जितनी हो सके ज्यादा से ज्यादा ट्रेनों को चलाओ और मजदूरों को उनके घर भेजो। घंटों लाइन में लगने के बाद एक के उपर एक लदकर किसी तरह कुछ मजदूर अपने गंतव्य के नजदीक पहुॅचे। बहुतों को तो रेल वालों ने यहाॅ भी नहीं छोड़ा।

जैसे नशे में हों, उनकी रेलें भटक गईं, कहीं से कहीं पहुॅच गईं, जाना कहीं था, पहुॅच कहीं और गई। 14-15 घंटे की यात्रा वे 30 घंटे में पूरी करने को मजबूर हुए। पता नहीं कितनों को ठीक से खाना भी नहीं मिला। एक अखबार ने सही लिखा कि जिस उत्तर प्रदेश के नौ रेल मंडलों के लगभग 7270 किलोमीटर के ट्रैक से प्रतिदिन 1300 ट्रेनें धड़धड़ाते हुए गुजरती थीं, उस पर 200 ट्रेनों के संचालन में रेलवे सिस्टम की साॅसें फूल गईं। एशिया की सबसे बड़ी कार्ट लाइन- दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा लाइन- पर जाम लग गए क्योंकि टुंडला से प्रयागराज तक ट्रेनों की स्पीड अप्रत्याशित रूप से धीमी हो गई।

बिना किसी निश्चित टाइम टेबिल के बहुत सारी ट्रेनें चला दी गईं। उनका भटक जाना बिल्कुल स्वाभाविक था। बिना किसी टाइम टेबिल के महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक और दक्षिण भारत के विभिन्न स्टेशनों के लिए 200 से ज्यादा ट्रेनें चला दी गईं। रेलवे के इतिहास में यह आज तक नहीं हुआ था।

पीयूष गोयल की रेलवे एक से एक नए कीर्तिमान बनाती चली गई और वे कहते रहे कि कोई श्रमिक एक्सप्रेस नहीं भटकी। अब उनकी मान भी लें कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं हुई वरना जब उनके जैसा कुशल रेल मंत्री हो तो गड़बड़ी की मजाल कि वह पटरी पर मरने को पहुॅच जाय। आखिर गड़बड़ी को भी तो कहीं न कहीं जिंदा रहना है आखिर!

भाजपा में गोयल साहब का अपना दबदबा है क्योंकि वे सत्ता संतुलन के काफी नजदीक माने जाते हैं। यही वजह है कि उनके पास रेलवे और कामर्स जैसे विशालकाय मंत्रालय हैं। रेलवे अपने आप में विशालतम है। उसके पास 69182 किमी लम्बी रेल लाइनें हैं और 121407 किमी लम्बे ट्रैक हैं।

वहां एक से एक बेहतरीन ट्रेनें चलाती है जिनमें से एक तो 200 किमी प्रति घंटे की स्पीड से चलने की ताकत रखती है। भारतीय रेल रोजाना सवा दो करोड़ से ज्यादा यात्रियों को और एक साल में करीब 1 अरब मीट्रिक टन सामान को ढोती है।

मजे की बात यह है कि सितम्बर 2016 से जब रेलवे का अलग बजट बनाया जाना बंद किया गया तो उस समय कुछ अधिकारियों के छुटपुट विरोध के अलावा कोई गंभीर आपत्ति राजनीतिक व सरकारी स्तर पर नहीं उठाई गई। 2016 से रेलवे का अलग बजट प्रस्तुत किया जाना बंद कर दिया गया। उसका मुख्य बजट में विलय कर दिया गया।

नतीजा यह हुआ कि आम जनता को रेलवे का अन्दरूनी हालचाल मिलना बंद हो गया। अब यह पता लगाना कठिन काम हो गया कि रेलवे का कितना खर्च किस इलाके में होता है, कितनी नई ट्रेनें किस इलाके में कब से चलेंगी, कितने नए स्टॉप बनेंगे और कितने नए स्टेशनों पर कौन सी ट्रेन कब से खड़ी होगी। अगर किसी को यह विवरण पता करना हो तो उसे मूल बजट के उस हिस्से के अंदर घुसना पड़ेगा जिसमें रेलवे का आय व्ययक संलग्न होगा।

अब तो हे रेल माई हम तो भगवान भरोसे हैं तेरे राज में!

और अंत में,
तू इठलाती बल खाती सर्राती सी चली जाती है
मैं वेटिंग लिस्ट सा फड़फड़ाता हूॅ
तू गर्राती, सर्राती मुड़ मुड़ कर सीटी बजाती है
मैं काले कोट वाले को सलाम बजा लाता हूॅ।…

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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