हरियाणा: पानी को लेकर दलितों के बहिष्कार का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
दलितों के खिलाफ लगातार हो रहे अत्याचार और अपराध के मामलों से एक तरफ देश जहां आक्रोश में है, वहीं जातिवाद के नाम भेदभाव इक्कीसवीं सदी में भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। हरियाणा के हिसार में भाटला गांव है। यहां करीब दस हजार की आबादी है। गांव में चारों कोनों में चार बड़े तालाब हैं लेकिन पीने के पानी के लिए सिर्फ एक ही नल है। इसी नल पर जून 2017 में पहले पानी भरने को लेकर दलितों और सवर्णों के बीच लड़ाई हो गई थी। यह मामला थाने पहुंचा तो गांव में पंचायत बैठाई गई। दोनों समुदाय के बीच इसके बाद से बात इतनी बिगड़ गई कि गांव के सवर्णों ने दलितों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
खबरों के मुताबिक गांव में आठ माह की गर्भवती सुनीता अपनी सहेली के साथ तेज कदमों से नल की ओर बढ़ती है। यहां जमीन के नीचे पानी खारा है और सरकारी सप्लाई पंद्रह दिन में सिर्फ एक बार होती है। जो पानी खरीद सकते हैं, खरीद रहे हैं। जो नहीं खरीद सकते, वो पानी भरने के लिए मजबूर हैं। नल का पानी पीने पर रेत दांतों में लग जाती है।
मोटा-मोटी गांव दो हिस्सों सवर्ण और दलित में बंटा है। सवर्णों की आबादी दलितों से ज्यादा है। उनके पास जमीनें हैं और दलित सदियों से उनके खेतों पर मजदूरी करते रहे हैं। बीते दो-तीन दशकों से दलितों ने गांव के बाहर निकलकर काम करना शुरू किया है। कुछ हांसी और हिसार जैसे शहरों में भी नौकरियां करते हैं। लेकिन अब भी अधिकतर दलित आबादी अपना पेट भरने के लिए गांव के जाटों और पंडितों के खेतों पर काम करने को मजबूर है।
गांव के दलित समुदाय की बिमला कहती हैं, ‘पहले चार भैंसे पालते थे। सैकड़ों भेड़-बकरियां थीं। सब बेचना पड़ गया। किसी के खेत में जाओ तो बाहर निकाल देते हैं। हमारे पास न जमीन है ना नौकरी। मेरी बहू को हांसी में काम करने जाना पड़ रहा है।’ बिमला के बेटे अजय कुमार उन लोगों में शामिल हैं जिसने दलितों के बहिष्कार मामले में शिकायत दर्ज करवाई है। घर के बाहर जय भीम-जय भारत लिखा है और अंदर भीमराव आंबेडकर की बड़ी तस्वीर लगी है।
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दलितों के इस मोहल्ले में जिससे भी बात करो, बंदी शब्द बार-बार सुनाई देता है। दरअसल साल 2017 में जब झगड़ा हुआ था तब गांव में मुनादी कराके दलितों का बहिष्कार कर दिया गया था। इस बहिष्कार को ही ये लोग बंदी कहते हैं। हालांकि सवर्ण समुदाय के लोगों का कहना है कि अब गांव में ऐसे हालात नहीं हैं और सभी का एक-दूसरे के यहां आना जाना है, किसी पर किसी तरह की रोकटोक नहीं है। सबके जवाब अलग-अलग हैं।
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