उत्तर प्रदेशवाराणसी

हुड़दंगियों का धमाल शुरु, आज जलेगी होलिका

वृद्धि योग, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और ध्रुव योग में मनेगा पर्व

बुध-गुरु आदित्य योग में होली की पूजा करने से घर में आती है सुख और शांति

दस्तक ब्यूरो

वाराणसी : खुशियों, उमंग और उल्लास का त्योहार होली की हुड़दंग शुरु हो गयी है। होलिका दहन 17मार्च होगा। इस साल होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात में 9 बजकर 16 मिनट से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक ही रहेगा। ऐसे में होलिका दहन की पूजा के लिए सिर्फ 1 घंटे 10 मिनट का ही समय मिलेगा। इसके अगले दिन शुक्रवार, 18 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी। पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 17 को 01 बजकर 29 मिनट से समाप्त 18 को 12 बजकर 47 पर है। जबकि भद्रा पूँछ रात 09 बजकर 06 से लेकर 10 बजकर 16 तक है। भद्रा मुख 17 को रात 10 बजकर 16 से लेकर 18 मार्च 12 बजकर 13 मिनट तक है। ज्योतिषियों के अनुसार, होलिका दहन 17 मार्च को ही किया जाना चाहिए। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। प्रदोष काल के समय जब पूर्णिमा तिथि विद्यमान हो, उसी दिन होलिका दहन किया जाना चाहिए। अगर भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के बाद जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिए। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी स्थति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि भद्रा मुख में होलिका दहन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। खास बात यह है कि इस साल होली पर कई शुभ योग बनने जा रहे हैं। इस साल होली पर वृद्धि योग, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और ध्रुव योग बनने जा रहा है। इसके अलावा, बुध-गुरु आदित्य योग भी बन रहा है। बुध-गुरु आदित्य योग में होली की पूजा करने से घर में सुख और शांति का वास होता है।

पौराणिक कथा
हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के लाख कहने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना. असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ. असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जलानहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई. दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बचबच गई और होलिका जल गई. इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भाँति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है.

पूजन सामग्री व विधि
एक कटोरी पानी, गाय के गोबर से बनी माला, रोली, अक्षत, अगरबत्ती और धूप, फूल, कच्चा सूती धागा, हल्दी का टुकड़ा, मूंग की साबुत दाल, बताशा, गुलाल पाउडर, नारियल, नया अनाज (गेहूं). सभी सामग्रियों को एक प्लेट में रख लें. इसके बाद जिस जगह पर होलिका की पूजा करनी है उस स्थान को साफ कर लें. पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें. फिर गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की मूर्ति बनाएं. इसके बाद होलिका पूजन में प्लेट में रखी सभी चीजों को अर्पित करें. इसमें मिठाइयां औरफल भी अर्पित करें. इसके बाद भगवान नरसिंह की पूजा करें. अंत में होलिका की 7 बार परिक्रमा करें.

होलिका में लकड़ी नहीं कंडे का प्रयोग
होलिका दहन पर अब कंडे का प्रयोग होने लगा हैै। इस साल भी कई जगहों पर नागरिकों ने होलिका में लकडिय़ों की आहुति देने की बजाय कंडे की होलिका जलायेंगे। भावनाओं की अभिव्यक्ति को मुखरता देने के लिए होलिका दहन के अवसर पर होलिका और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाओं की स्थापना को भी आयोजन के प्रमुख अंग के रूप में स्वीकार कर इसे एक अनूठे अनुष्ठान का रूप दिया गया है। इससे अब हर घर से पांच कंडे हवन सामग्री तथा अन्य पत्र-पुष्प होलिका में चढ़ाने का एक नया चलन शुरू हो गया है। लोग कंडों के साथ रस्म की संपूर्णता के साथ कुछ लकडिय़ां भी जलाते हैं मगर उसका स्वरूप घरेलू हवन सरीखा है। प्रयोगों के क्रम में भोजबूरी की होलिका में अनूठा प्रयोग किया गया है। कंडे पर बैठी होलिका के साथ समिति ने फोन पे के लिए क्यूआर कोड भी लगा दिया है। श्रद्धालु कंडा आदि जुटाने की झंझट से मुक्ति के लिए आनलाइन योगदान कर रहे हैं। आकर्षण की दृष्टि से पताकाओं से साज-सज्जा भी की गई है।

होली की खरीदारी में बाजार रहे गुलजार
होली शुक्रवार को है लेकिन हुडदंग शुरु हो गया है। लोग शहर में होली का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाने में जुटे है। मौसम भी अनुकूल है तो क्या कहने? मतलब साफ है रंग गुलाल की मस्ती व ठिठोली से सराबोर है। मदमस्त होरियारों को जगह-जगह फाग गाते देखा गया। शहर की कई सोसायटियों एवं पार्टी प्लॉटों में युवाओं की भीड़ जमी रही। जहां रेन डांस के अलावा डीजे के धुनों में युवा थिरके। भांग व ठंडइ के बीच होली का जमकर लोग लुत्फ उठाया। एक दूसरे पर रंग उडेल रहे है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक बाजारों में भरपूर रौनक रही। लोगों ने मिठाइयों के साथ-साथ होली से संबंधित सामग्रियों की खरीदारी की। बाजार में अबीर-गुलाल और पिचकारी खरीदारी के चलते तिलभर जगह नहीं थी। कपड़ों की खरीदारी खूब रही। नमकीन की दुकानों पर भी खरीदारी करने वालों की भीड़ है। बाजारों में रौनक देखते ही बन रही है। बाजार में रंग गुलाल और पिचकारियों की दुकानों पर भी बिक्री तेज हो गयी है। इसी के साथ काशी बम बम हो गयी है। रंगों के उत्सव की छटा भी फिजा में ऐसे रंगी नजर आई मानो दिगंबर मसाने में होली खेलने को आतुर हो उठे हों।

होली का संदेश
होली नवसंवत्सर का प्रथम दिन है। होली इस बात का संदेश देती है कि सभी के जीवन में खुशियों का रंग भरा रहे। संवत्सर का अवसान होलिका दहन से होता है। जो सभी बुराईयों को पीछे छोड़ जाने का, मन की कलुषता को अग्नि की भेंट चढ़ाने का, स्वच्छ एवं निर्मल ह्रदय से चैत्र मास के प्रथम दिन की शुरुआत करने का तथा वर्ष पर्यंत खुशियां बांटने का संदेश देता है। होली मिलन की संस्कृति भी इसी बात की परिचायक है। होली भेद भाव का नाश करती है। होली मन में उपजे वैर कंटकों को समूल नाश करने का संदेश देती है।

होली और रंग
होली हुड़दंग का पर्व है। होली रंगों का पर्व है। अतः बच्चों की टोलियां निकल पड़ती हैं। सड़कों पर, गलियों में, मोहल्लों में, गांवों में, शहरों में, बाजारों में। सभी के हाथों में पिचकारियां होती हैं। आप झक सफेद कपड़े पहने हों, इससे कोई मतलब नहीं। होली है तो रंगीन होना ही होगा। उजले की गुंजाइश है ही कहां। नाराजगी और गुस्सा करने का भी अधिकार नहीं। क्योंकि होली का तो बस अपना ही नारा है। ’बुरा न मानो होली है’। अतः इस पावन पर्व पर हमें ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि बुराईयों को दूर भगाना चाहिए।

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