लैंगिक समानता पर टॉप है आइसलैंड, फिर भी महिलाएं सड़कों पर क्यों ? जानें आंदोलन का कारण..
देहरादून (गौरव ममगाई): लैंगिक समानता की दिशा में क्रांति का पर्याय बन चुका द्वीपीय देश आइसलैंड एक बार फिर दुनिया के लिए प्रेरणा बन रहा है, लैंगिक समानता में 90 प्रतिशत सफलता हासिल करने के बाद भी वहां की महिलाएं आंदोलित हैं. इस बार कारण है वेतन में पुरूष व महिलाओं के बीच अंतर. खास बात यह है कि प्रधानमंत्री कैटरीन भी महिलाओं के धरने पर समर्थन करने पहुंचीं.
पिछले 14 वर्षों से लगातार लैंगिक समानता में टॉप पर बना आइसलैंड ने यह साबित कर दिया है कि उसकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक महिलाओं के साथ शत प्रतिशत न्याय न हो जाए. यह उन देशों के लिए सीख है जो लैंगिक समानता की दिशा में सामान्य सुधार करने पर संतोष जताते हैं. बता दें कि आइसलैंड की पीएम कैटरीन ने 2022 तक शत प्रतिशत लैंगिक समानता को हासिल करने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन अभी यह लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है. आइसलैंड में शेष लैंगिक असमानता का कारण वेतन में लैंगिक असमानता का होना है.
24 अक्टूबर 1975 में महिलाओं ने समान वेतन की मांग को लेकर ऐतिहासिक देशव्यापी आंदोलन किया था, इससे सरकार दबाव में आई और उसे संसद में समान वेतन के लिए कानून पारित करना पड़ा था. वर्ष 2018 में भी सरकार ने एक विशेष अधिनियम बनाया, जिसके अंतर्गत प्राइवेट सेक्टर में भी समान वेतन को लेकर जवाबदेही तय हुई.
भारत की 127वें स्थान परः
विश्व लैंगिक समानता इंडेक्स- 2023 में इंडिया 146 देशों में 127वीं रैंक पर है. इंडिया ने आठ रैंक का सुधार किया है, जबकि 2022 में 135वीं रैंक थी. लैंगिक समानता मापने के चार आधारः पहला- आर्थिक भागीदारी एवं अवसर, दूसरा- शिक्षा के अवसर, तीसरा- स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता व चौथा- राजनीतिक सशक्तीकरण.
देश – रैंक
आइसलैंड – पहली
नॉर्वे – दूसरा
फिनलैंड – तीसरा
फिनलैंड – दूसरी
भूटान – 103वां
चीन – 107वां
श्रीलंका – 115वां
नेपाल – 116वां
भारत – 127वां
पाकिस्तान – 142वां