खाया हुआ भोजन सही से पच जाए तो अनेकों व्याधियाँ रहेंगी दूर : डॉ सोराज सिंह
लखनऊ: एनबीआरआई द्वारा ‘आर्सेनिक फील्ड किट एवं आईसीपी-मास स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा आर्सेनिक आंकलन’ विषय पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (कृषि विभाग, यूपी) द्वारा द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 20 जिलों के 40 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं जिन्हें विषय आधारित व्याख्यान के साथ तीन प्रयोगात्मक सत्रों में आर्सेनिक जांच का प्रशिक्षण दिया गया. समारोह के मुख्य अतिथि कृषि विभाग के निदेशक डॉ सोराज सिंह ने स्वास्थ्य रक्षा में आयुर्वेद एवं आधुनिक औषधि विज्ञान की भूमिका की चर्चा करते हुए शरीरक्रिया की जटिल समस्याओं एवं व्याधियों के समाधान में प्राचीन भारतीय औषधि विज्ञान एवं खान पान के नियमों के बारे में बताया. उन्होने कहा कि भूख और बीमारी साथ नहीं रह सकतीं.
एनबीआरआई में ‘आर्सेनिक फील्ड किट एवं आईसीपी-मास स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा आर्सेनिक आंकलन’ विषय पर प्रशिक्षण आयोजित
यदि खाया हुआ भोजन सही से पच जाए तो अनेकों व्याधियाँ यूं ही मनुष्य से दूर रहेंगी. अधिक भोजन एवं अपच अनेकों बीमारियों का कारण बनती हैं जिन्हें आहार को नियंत्रित कर एवं प्राचीन औषधि पद्धतियों के प्रयोग से ठीक किया जा सकता है. अतः हमें पुरातन एवं आधुनिक दोनों ही प्रकार के औषधि विज्ञान को साथ लेकर शोध की आवश्यकता है. डॉ सोराज सिंह ने सभी प्रतिभागियों को आर्सेनिक फील्ड किट भी वितरित किए. इस अवसर पर संस्थान के निदेशक ने कहा कि आर्सेनिक शोध में एनबीआरआई पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है. उन्होने एनबीआरआई द्वार विकसित दानों में न्यूनतम आर्सेनिक संग्रहण करने वाली धान की किस्म ‘मुक्ताश्री’ की चर्चा करते हुए कहा कि अब प्रदेश में अन्य फसलों पर भी कार्य करने की योजना बनाई जा रही है. इसके पूर्व डॉ पुनीत सिंह चौहान ने बताया कि अभी 20 जिलों के 264 ब्लॉकों से मिट्टी एवं पानी के 2640 नमूने संग्रह किए गए जिनके आधार पर आर्सेनिक संदूषित क्षेत्रों की पहचान की जा रही है. आर्सेनिक ग्रसित क्षेत्रों की पहचान करने के पश्चात आगे की रणनीति बनाई जाएगी. संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ एस के तिवारी ने प्रतिभागियों को संस्थान द्वारा चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों के बारे में जानकारी भी दी.