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महाराष्ट्र: MVA क्या उद्धव ठाकरे को कर रहा मुख्य नेता के रूप में प्रोजेक्ट! समीकरणों से दिख रहा ‘नया गणित’

नई दिल्ली/मुंबई. जहां एक तरफ BJP के खिलाफ अपने अभियान में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) ने बीते रविवार को छत्रपति संभाजी नगर में अपनी पहली संयुक्त रैली की थी । तब इसमें करीब एक लाख लोगों ने इस रैली में हिस्सा लिया। लेकिन इसमें सबसे अहम रहा पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Udhhav Thackeray) को दिया गया सम्मान रहा।

इस रैली में यह स्पष्ट संकेत दिया कि MVA आगे भी ठाकरे के नेतृत्व में ही काम करने जा रहा है, अब भले ही उन्होंने अपनी पार्टी का नाम शिवसेना और उसका चुनाव चिन्ह ‘धनुष और तीर’ को कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे के हाथों खो चुके हो।

सब तरफ ठाकरे

इस रैली में कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक चव्हाण और बालासाहेब थोराट ने हिस्सा लिया। राकांपा का प्रतिनिधित्व विपक्ष के नेता अजीत पवार और प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने किया। लेकिन यहां तो उद्धव ठाकरे हुई सब तरफ चमके वहीं कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने वाले ठाकरे आखिरी नेता थे। वहीं अन्य नेता उनके आने का इंतजार कर रहे थे।

रैली में जमकर ली BJP की क्लास

इस रैली में आखिरी में बोलते हुए ठाकरे ने BJP पर यह आरोप लगाने के लिए निशाना साधा कि उन्होंने अपनी हिंदुत्व की साख छोड़ दी है। उन्होंने यह भी कहा कि कैसे गुजरात की एक अदालत ने PM नरेंद्र मोदी की डिग्री मांगने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जुर्माना लगाया है। उन्होंने कहा, जिस कॉलेज से पीएम ने ग्रेजुएशन किया है, उसे यह बताने में गर्व होना चाहिए कि उनका छात्र अब PM है। लेकिन अफसोस! कोई भी इस गौरव पर दावा करने के लिए आगे नहीं आ रहा है।

आया औरंगजेब का भी जिक्र

उन्होंने भारतीय सेना के जवान औरंगजेब का भी जिक्र किया, जिसे तीन साल पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने अगवा कर लिया था और उसकी हत्या कर दी थी। ठाकरे ने कहा, “क्या हम उनकी शहादत को सिर्फ इसलिए भूल सकते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान थे?” दो महीने पहले औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजी नगर करने पर शहर में चल रहे विरोध की पृष्ठभूमि में इस शहीद का उनका यह उल्लेख महत्वपूर्ण था। औरंगाबाद का मूल नाम खड़की था। 1700 के दशक की शुरुआत में मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब ने इसे औरंगाबाद कर दिया था। हालांकि लोग बहुत लंबे समय से इसका नाम छत्रपति संभाजी नगर करने की मांग कर रहे थे।

क्या है MVA के लिए ठाकरे फ़ॉर्मूला

ऐसा लग रहा है कि MVA नेता के रूप में ठाकरे का उद्भव एक सोची समझी रणनीति लगती है। एक तरफ तो कांग्रेस अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष कर रही है, वहीं राज्य में NCP एनसीपी की विश्वसनीयता बहुत कम है। ऐसे में मतदाताओं से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे उद्धव ठाकरे उनके लिए सही विकल्प हो सकते हैं।

NCP-कांग्रेस के ऊपर ठाकरे की साख

वहीं कांग्रेस और NCP के नेताओं के विपरीत उद्धव ठाकरे फिलहाल कोई भी वित्तीय अनियमितताओं के किसी भी मामले में जांच का सामना नहीं कर रहे हैं। यह उनके पक्ष में काम कर रहा है। BJP से नाता तोड़ने से उन्हें समाज के एक अप्रत्याशित वर्ग मुसलमानों से भारी समर्थन मिल रहा है। इस समुदाय के वोट आम तौर पर कांग्रेस, AIMIM और समाजवादी पार्टी के बीच विभाजित होते हैं। ऐसे में क्या मान लिया जाए उद्धव ठाकरे के रूप में मुसलमानों को अब नया नेता मिल गया है।

इधर दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर MVA बरकरार रहा तो BJP के लिए आने वाले समय में स्थानीय निकायों, विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में अपने शानदार प्रदर्शन को दोहराना मुश्किल होगा।

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