नई दिल्ली : काफी पीने के कई फायदे और नुकसान गिनाए जाते रहे हैं। इसी क्रम में एक और शोध हुआ। इसमें बताया गया है कि काफी का पाचन शक्ति और आंत पर सकारात्मक प्रभाव होता है। इतना ही नहीं, यह पित्ताशय की पथरी और लिवर की भी कई बीमारियों से बचाव करती है। यह शोध नूट्रीअंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस नए शोध में पहले प्रकाशित हो चुके 194 अध्ययनों की समीक्षा में यह सामने आया है कि काफी के सीमित उपभोग से पाचन तंत्र से जुड़े अंगों को कोई नुकसान नहीं होता है। इसके लिए रोजाना तीन से पांच कप काफी अच्छी है। काफी से जुड़े दो खास बिंदुओं पर शोध में इन दिनों काफी दिलचस्पी है। पहला- क्या काफी पीने से पित्ताशय की पथरी होने का खतरा कम होता है। दूसरा, यह कि क्या काफी का संबंध पैनक्रियाइटिस का खतरा कम होने से भी है। हालांकि इसकी पुष्टि के लिए अभी और भी शोध होना जरूरी है। ताजा शोध में इस बात का भी जोरदार समर्थन किया गया है कि काफी से हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (लिवर का सर्वाधिक सामान्य कैंसर) समेत कई अन्य रोगों से भी सुरक्षा मिलती है।
काफी से पाचन के प्रथम चरण में मदद मिलने के प्रमाण मिलने के बावजूद अधिकांश डाटा इस बात की पुष्टि नहीं करते कि काफी का गैस्ट्रो-ओसोफैगल (ग्रासनलिका) रीफ्सक्स पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हालांकि इसका कारण मोटापे और खराब खाने जैसे अन्य जोखिम वाले कारकों का एक संयुक्त प्रभाव भी हो सकता है।
यह शोध फ्रेंच नेशनल आफ हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च के मानद शोध निदेशक एस्टिड नेहलिग ने किया है। उन्होंने कहा- कुछ अवधारणाओं के उलट, काफी का संबंध पेट या पाचन संबंधी समस्याओं से नहीं है। कुछ मामलों में तो काफी कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव भी करती है। कुछेक डाटा तो यह बताते हैं कि काफी से बीफीडोबैक्टीरिया जैसे लाभकारी गट बैक्टीरिया का स्तर बढ़ता है। यद्यपि इन सब बातों के बावजूद पूरे पाचन नाल पर काफी के प्रभाव को और बेहतर ढंग से समझने के लिए अभी और भी शोध की जरूरत है।
काफी के तीन अहम असर
– काफी का संबंध गैस्टिक, बाइलरी तथा पैनक्रिएटिक (अग्न्याशय) स्नाव से है, जो खाने को पचाने के लिए जरूरी है। पाया गया है कि काफी पाचक हार्मोन गैस्ट्रीन के निर्माण और गैस्टिक जूस में मौजूद रहने वाले हाइड्रोक्लोरिक एसिड के उत्पादन को उत्प्रेरित करती है। ये दोनों पेट में खाद्य पदार्थ को तोड़ने में मदद करते हैं। काफी कोलेसिस्टोकाइनिन (सीसीके) हार्मोन के स्नाव को बढ़ावा देती है, जो पित्तरस (बाइल) का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही पाचन को भी मजबूत करता है।
– काफी से आंत की माइक्रोबायोटा की संरचना में भी बदलाव आता है। समीक्षा अध्ययन में पाया गया है कि गैस्ट्रोइंटेस्टिनल टैक्ट में मौजूद रहने वाले बीफीडोबैक्टीरिया की संख्या में पर असर होता है।
-काफी कोलोन मोटिलिटी- खाने का पाचन नाल से गुजरने की प्रक्रिया- से जुड़ा है। काफी कोलोन मोटिलिटी को बढ़ा देती है। कैफीन रहित काफी जहां मोटिलिटी को 23 प्रतिशत तेज करती है, वहीं एक गिलास पानी की तुलना में 60 प्रतिशत तेजी आती है। इससे क्रोनिक कब्ज का खतरा भी कम होता है।