महाराष्ट्र पुलिस ने म्यांमार में साइबर गुलामी में फंसे 60 से अधिक भारतीयों को बचाया, पांच एजेंट गिरफ्तार

नई दिल्ली : महाराष्ट्र पुलिस की साइबर टीम ने म्यांमार में जबरन साइबर गुलामी में धकेले गए 60 से अधिक भारतीय नागरिकों को बचाया है। इस दौरान टीम ने एक विदेशी नागरिक सहित पांच एजेंटों को भी गिरफ्तार किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पीड़ितों को विदेश में उच्च वेतन वाली नौकरियों का वादा किया गया था, लेकिन उन्हें वहां साइबर धोखाधड़ी करने के लिए धमकाया गया और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। पकड़े गए आरोपियों की पहचान मनीष ग्रे उर्फ मैडी, तैसन उर्फ आदित्य रवि चंद्रन, रूपनारायण रामधर गुप्ता, जेंसी रानी डी और चीनी-कजाकस्तानी नागरिक तलानिति नुलैक्सी के रूप में हुई है। यह सभी भर्ती एजेंट के रूप में काम करते थे।
अधिकारी ने बताया कि मनीष ग्रे उर्फ मैडी एक पेशेवर अभिनेता है, जो वेब सीरीज और टेलीविजन शो में दिखाई दे चुका है। उन्होंने बताया कि ग्रे ने अन्य लोगों के साथ मिलकर अनजान व्यक्तियों की भर्ती की और तस्करी के जरिये उन्हें म्यांमार भेजा। वहीं, तलनिति नुलक्सी साइबर अपराध करने के लिए भारत में एक यूनिट स्थापित करने की योजना बना रही थी।
अधिकारी ने दावा किया कि विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय की मदद से साइबर गुलामी मामले में महाराष्ट्र साइबर टीम की ओर से की गई अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र साइबर टीम ने इस संबंध में तीन एफआईआर दर्ज की हैं। अधिकारी ने कहा कि महाराष्ट्र साइबर सेल ने अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर पीड़ितों को बचाया, हालांकि उन्होंने इस बात का विवरण नहीं दिया कि ऑपरेशन म्यांमार के भीतर किया गया था या नहीं।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (महाराष्ट्र साइबर) यशस्वी यादव ने कहा, आरोपियों में ऐसे मददगार शामिल हैं जिन्होंने पीड़ितों को म्यांमार ले जाने में मदद की। उन्होंने कहा, मामले की जांच के दौरान गोवा पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार किया, जबकि हमने मुख्य आरोपी को मुंबई से गिरफ्तार किया, जो एक भारतीय था। उन्होंने कहा कि 60 पीड़ितों में से कुछ को आरोपी बनाया जा सकता है, अगर उनकी इसमें भूमिका पाई जाती है।
अधिकारी ने बताया कि रैकेटियर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये पीड़ितों से संपर्क करते थे और उन्हें थाईलैंड और अन्य पूर्वी एशियाई देशों में उच्च वेतन वाली नौकरियों का लालच देते थे। एजेंटों ने पीड़ितों के लिए पासपोर्ट और फ्लाइट टिकट की व्यवस्था की और उन्हें पर्यटक वीजा पर थाईलैंड भेजा। वहां उतरने के बाद, उन्हें म्यांमार सीमा पर भेज दिया गया, जहां उन्हें छोटी नावों में नदी पार कराई गई। म्यांमार में प्रवेश करने पर, पीड़ितों को सशस्त्र विद्रोही समूहों द्वारा नियंत्रित संरक्षित परिसरों में ले जाया गया, जहां उन्हें ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ घोटाले से लेकर नकली निवेश योजनाओं तक के साइबर धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर किया गया।
बचाए गए पीड़ितों ने पूछताछ में बताया कि आरोपी एजेंट भारत से नौकरी के इच्छुक लोगों को लुभाते थे। इनमें से कुछ कंपनियां रोजगार एजेंसियों की आड़ में काम करते थे। एक पीड़ित सतीश ने कहा कि उसे थाईलैंड में एक रेस्तरां प्रबंधक के रूप में नौकरी की पेशकश की गई थी। थाईलैंड पहुंचने के बाद, एजेंट हमें म्यांमार सीमा पर ले गया और हमें पता नहीं था कि उसने हमें प्रति व्यक्ति 5,000 डॉलर में बेच दिया है। पीड़ितों ने बताया कि पहले दिन ही हमारे पासपोर्ट जब्त कर लिए। वे हमें पीटते थे और जबरन वसूली, डिजिटल गिरफ्तारी और धोखाधड़ी सहित साइबर धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर करते थे।
पीड़ितों ने कहा, अगर कोई काम करने से मना करता था, तो आरोपी व्यक्ति कार्यस्थल पर तैनात बंदूकधारी के जरिये हमें डराते थे। उनमें से कुछ को अंग निकालने की धमकी भी दी गई थी। उन्होंने कहा कि जिस इलाके में इन लोगों को ले जाया गया, उसे म्यावड्डी के नाम से जाना जाता है, जो विद्रोहियों के नियंत्रण में है और वहां के लोग अपने साथ एके-47 राइफल और स्वचालित हथियार रखते हैं।