नई दिल्ली: हमें हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में सक्रिय योगदान देना होगा। इसके लिए जरूरी है कि साहित्यिक हिंदी की बजाए, ऐसी हिंदी का उपयोग किया जाए, जिसमें अन्य भाषाओं के शब्द भी समाहित हों। इससे हिंदी का विस्तार भी होगा और वह समृद्ध भी होगी और वह जन-जन की भाषा भी बनेगी। ये विचार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.नागेश्वर राव ने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिणी दिल्ली-03 के तत्वावधान में आयोजित राजभाषा सम्मेलन में व्यक्त किये।
शुभारंभ सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राव ने कहा कि आम तौर पर हिंदी में पाठ्य पुस्तकों की कमी के कारण एमीबीए, बीटेक आदि के विद्यार्थी हिंदी माध्यम अपनाने से करताते हैं। इसे देखते हुए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने एक मिनट में 100 पृष्ठ 80 प्रतिशत सटीक अनुवाद करने में सक्षम एक ट्रांसलेशन टूल के माध्यम से बीटेक पाठ्यक्रम को 13 भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री का अनुवाद कराया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा केंद्रीय हिंदी संस्थान के पास उपलब्ध समस्त शब्द कोशों के शब्दों को इन टूल्स में शामिल कर दिया है। जैसे-जैसे शब्दों का भंडार बढ़ेगा, अनुवाद की सटीकता बढ़ती जाएगी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. मीनाक्षी जौली, संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा कि क्लिष्ट शब्दों के उपयोग का कोई औचित्य नहीं है। इनकी बजाए हमें आम बोलचाल के शब्दों के इस्तेमाल पर बल देना होगा। उन्होंने कहा कि सभी को हिंदी में काम करने और इसे निरंतर आगे बढ़ाने का संकल्प लेना होगा। डॉ. जौली ने स्वाधीनता संग्राम में हिंदी के योगदान का उल्लेख करते हुए राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय की ओर से राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में भी जानकारी दी।
मुख्य वक्ता पद्मश्री आलोक मेहता ने अपने संबोधन में भाषायी आत्मनिर्भरता पर बल देते हुए कहा कि हिंदी में ही कार्य करने पर जोर दिया जाए। उन्होंने कहा कि शुद्ध हिंदी के प्रयोग पर जोर न देते हुए हिंदी को परिष्कृत करके आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य देशों को भी समझ में आने लगा है कि यदि भारत के साथ व्यापार बढ़ाना है, तो हिंदी सीखनी ही होगी। श्री मेहता ने कहा कि देश के बड़े नेताओं की बात हिंदी में जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है।
इससे पहले भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक एवं नराकास, दक्षिण दिल्ली 03 के अध्यक्ष प्रो. संजय द्विवेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हिंदी को राजभाषा से एक कदम आगे बढ़कर संपर्क भाषा बनाने की जरूरत है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हमें भी अंग्रेजी की तरह अन्य भाषाओं के शब्दों को हिंदी में समाहित करना जारी रखना चाहिए। आखिर जन भाषा ही लोगों के दिलों पर राज करती है।
शुभारंभ सत्र में भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘राजभाषा विमर्श’ का भी लोकार्पण किया गया। पाठ्यक्रम निदेशक, हिंदी पत्रकारिता, प्रो.आनंद प्रधान ने स्वागत भाषण दिया। नराकास, दक्षिण दिल्ली 03 के सदस्य सचिव डॉ. पवन कौंडल ने नराकास का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के अपर महानिदेशक श्री आशीष गोयल ने दिया। कार्यक्रम का संचालन लघु पाठ्यक्रम एवं भारतीय सूचना सेवा विभाग में समन्वयक डॉ. विष्णुप्रिया पांडेय ने किया।
तकनीकी सत्र को रघुवीर शर्मा, सहायक निदेशक, राजभाषा ने वक्ता के तौर पर सम्बोधित किया। इस सत्र की अध्यक्षता कुमार पाल शर्मा, उप निदेशक उत्तर क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय-1 ने की। धन्यवाद ज्ञापन सह प्राध्यापक डॉ. राकेश उपाध्याय ने दिया। तकनीकी सत्र का संचालन आईआईएमसी में परामर्शदाता (राजभाषा) सुश्री रीता कपूर ने किया।
समापन सत्र में प्रो. रमा, प्राचार्या, हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय मुख्य अतिथि रहीं। समापन सत्र को प्रो. अनुभूति यादव, विभागाध्यक्ष, विज्ञापन एवं जनसंपर्क और प्रो गोविंद सिंह, डीन अकादमिक ने विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित किया। समापन सत्र में भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका ‘संचार माध्यम’ का लोकार्पण भी किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मीता उज्जैन, सह प्राध्यापक ने दिया और समापन सत्र का संचालन डॉ. कौंडल ने किया। राजभाषा सम्मेलन में बड़ी संख्या में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिण दिल्ली-3 के सदस्य कार्यालयों ने भाग लिया।