दस्तक-विशेष

‘जीतबो रे’

कहानी

दीपिका सिंह

ऊपर केशरिया कुर्ता, नीचे हरी, फटी मटमैली धोती, सिर पर कागज की टोपी पहने स्वतन्त्रदेव जी अवतरित हुए। कहने को तो ये आजादी की लड़ाई में शरीक होने वाले एक क्रान्तिकारी हैं, एक योद्घा जो स्वयं तो आजादी के लिए लड़ता ही है साथ में अपने सिपाहियों को समय-समय पर उत्साहित करता रहता है। ये स्वतंत्र महाशय जी शरीर से हष्ट-पुष्ट, दिल से दिलदार, व्यवहार में स्पष्टवादी, स्वभाव से ईमानदार पर दिमाग से बीमार है। ये आजादी की लडा़ई लड़ने चले हैं। इनका शुभ नाम तो मलूकदास है, पर नाम में क्या रखा है वास्तविक रूप में मतलब तो सिर्फ काम से है। काम है देश की आजादी। सो इन्होंने अपना नाम रख लिया स्वतन्त्र, पत्नी का नाम आजादी और बेटे का नाम संघर्ष।
स्वतंत्र जी जब चलतें हैं देश को आजादी दिलाने तब उनका भेष उपर्युक्त वर्णित भेष ही होता है, और हाथ में होते है दो-चार पर्चे जिसमें आजादी के महत्व, लोगों को स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरित करने वाली कुछ पंक्तियां होती है। इसलिए वह दीवार पर क्रान्तिकारियों द्वारा चिपकाए दो-चार पर्चे उखाड़कर हाथ में ले लेते हैं। साथ में होता है झन्डा जो सिपाही से छीने गये सुन्दर बेंत के डन्डे में बंधा होता है। झन्डा नहीं मिला तो क्या अपनी धोती फाड़ रंग दिया और बन गया आजादी का सुनहरा झन्डा जिस झन्डे को लहराते और पर्चों को हवा में उडाघ्ते चल पड़ते हैं स्वतंत्र जी आजादी की लौ हरदिल में जगाने।
इनके घरवाले भी इनसे परेशान रहते हैं,पर हैं तो घर के एक सदस्य सो छोड़ा भी नहीं जा सकता। आस-पास के लोगों से पता चला कि स्वतंत्र जी अपने समय के जाने-माने क्रान्तिकारी और देशहित-चिन्तक थे। स्वाधीनता आन्दोलन की गतिविधियों में शामिल होना, कार्यक्रमों को बाधा रहित आगे बढ़ाते रहना इनका कार्य था। अंग्रेजी राज्य का समूलनाश करने के लिए जनता को एकजुट कर विद्रोह करवाना मकसद था। अंग्रेज की दमनकारी नीतियों, निर्दोष जनता पर उनका अत्याचार और शोषण का इनके ऊपर गहरा असर था। एक बार गांधी जी से प्रभावित हो ये भी चल दिए सत्य-अहिंसा की लड़ाई में। अंग्रेज एक पर लाठी चलाते तो दो आगे आते, दो पर लाठी चलती तो चार। स्वतंत्र जी भी देश की स्वतंत्रता में मदमस्त हो अपना सबकुछ भूल बढ़ गये लाठी खाने के लिए। अंग्रेजों ने कई लाठियां बरसायी। स्वतंत्र जी सब कुछ सहते रहे। हर पीड़ा को देशहित में भुला दिया। पर दिमाग तो बेचारा कमजोर था। लाठी खा-खाकर थक गया। एक जोर की लाठी दिमाग पर पड़ी और स्वतंत्र जी चारो खाने चित्त हो गये। जब होश आया तो अस्पताल के बिस्तर को इस महान क्रान्तिकारी ने सुशोभित किया हुआ था। इस महान क्रान्तिकारी की हालत देखने के लिए देश की जनता तो नहीं घरवाले और पड़ोस के कुछ लोग इन्सानियतवश खड़े थे। ठीक होतेदृ होते इन्हें कुछ याद न रहा बस याद रह गया तो आन्दोलन का वह दिन और अंग्रेजों का अत्याचार।
बस फिर क्या था ‘वन्देमातरम, ‘पुरजा पुरजा कट मरे कबहुं ना छाड़े खेत’ के नारे लगाते स्वतंत्र जी चल पड़ते हैं हिन्दुस्तान की गलियों और सड़कों पर। अब न उन्हें अंग्रेजों का डर था न उनकी लाठी का। अब स्वतंत्र जी साक्षात बारूद बन चुके हैं जो स्वयं तो फटता ही है दूसरों को भी फोड़ डालता है। मुझे वो दिन आज भी याद है जब स्वतंत्र जी को एक अंग्रेज सिपाही पकड़कर ले गया। उनकी पेशी अंग्रेज अफसर के सामने हुई।
अंग्रेज अफसर ने पूछा, ‘टुम्हारा नेम क्या है?’
स्वतंत्र जी बोले, ‘मेरा नाम स्वतंत्र, पत्नी का नाम आजादी, बेटे का नाम संघर्ष और देश का नाम हिन्दुस्तान। और कुछ जानना है साहब मेरे बारे में।’ अंग्रेज अफसर, ‘ह्वाट अ स्ट्रैन्जमैन, टुम गलियों, सरकों पर इधर-उधर हमारे खिलाफ लोगों को भड़काटा फिरटा है, टुमको और कोई काम नहीं क्या? टुम एक दिन मारा जायेगा।’
स्वतंत्र जी, ‘मारा तो सब जायेगा, हम भी, तुम भी, ये सब भी। तुम हमारा दुश्मन है और हम सब तुमको भगा के मानेगा। तुमको तुम्हारे देश भेज के ही दम लेगा। आई एम एन अनेस्ट सोल्जर अफ माय कन्ट्री हिन्दुस्तान। तुम हमको हमारे ही देश में मारेगा पर हम तुमको अपने ही देश में मारेगा तुमको तुम्हारे देश भागने भी नहीं देगा।
तब तक किसी ने अंग्रेज अफसर को सूचित किया कि यह पागल है, इससे बात मत करिये साहब। अंग्रेज अफसर ने एक पागल से बातकर अपना टाईम वेस्ट करनी मूर्खता समझी और स्वतंत्र जी को भगा दिया। स्वतंत्र जी जाते-जाते आँखों ही आँखों में अंग्रेज अफसर को धमकी देते और कहते हुए चले गये कि
‘हम सब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा तब तुमने हमारे ऊपर जुल्म किया अब तुम्हें हम छोड़ेगा नहीं। यमराज से बात करके तुम्हे नरक में भेजकर ही दम लेगा। तुम्हारा सूरज कभी नहीं डूबता पर हम गंगा मईया से अपनी देश की हालत बताकर तुम्हारे देश का सूरज डूबवा देगा और तुम देखता रह जायेगा अपने देश का यह सर्वनाश। तुम हमको जानता नहीं।’
ऐसी घटनायें आये दिन होती रहीं। धीरे-धीरे सभी स्वतंत्र जी के इस व्यवहार से परिचित हो गये। पागल की इन फिजूल की बातों पर किसी का ध्यान भी न जाता था।
एक दिन सभी लोगों ने लखनऊ में एक एसेम्बली करने का निर्णय लिया। स्वतंत्र जी को इससे अलग रखा गया वरना ये अंग्रेजों को जाकर इसकी पूर्व सूचना दे देते और सब कुछ होने से पहले ही रोक लग जाती। सूचना तो स्वतंत्र जी अंग्रेजों को कुछ नहीं देते अलबत्ता उन्हें धमकी जरूर दे आते कि हम बारह सितम्बर को सभा करने जा रहे हैं तुम सब में दम है तो रोक लो। फिलहाल उनको कोई जानकारी नहीं लगी।
बारह सितम्बर का दिन आ गया। जगह-जगह से लोग सभा के लिए इकठ्ठे होने लगे। सभी लोगों में उत्साह था। औरतें, बच्चें, बूढ़ें सभी अपने घरों से निकल सभा में सम्मिलित हुए। हर सभा की तरह इस सभा में भी प्रमुख नेताओं ने आकर अपने-अपने विचार व्यक्त किये। गाँधी जी, नेहरू जी, सुभाषचन्द्र बोस आदि नेताओं और विचारकों के जनता के लिए-दिए गये सन्देश को बताया गया। देश के अन्य हिस्सों में आजादी के लिए हो रही तमाम गतिविधियों से लोगों को अवगत कराया गया। तब तक अंग्रेज अफसरों को भी इस सभा की सूचना मिल चुकी थी। अंग्रेज अफसर अपने असलहों और फौजों को लेकर आ चुके थे। थमस ने लोगों को चेतावनी दी कि अगर वे अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करना नहीं छोड़ते और दस मिनट के अन्दर सभा विसर्जित नहीं हुई तो गोली चलवा दी जायेगी। पर एक भी व्यक्ति वहाँ से हिला नहीं बल्कि इस चेतावनी का असर उल्टा ही हुआ, लोगों ने और भी गर्मजोशी से अपने विचार रखे। दस मिनट बाद थमस ने अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। गोली चलते ही कुछ लोग शहीद हो गये, कुछ भागने लगे, कुछ लोग अन्त तक मोर्चे पर डटे रहकर सिपाहियों की गोलियों का सामना पूरी वीरता से किया। थमस की नजर सभा में लहरा रहे झण्डे पर पड़ी, वह अन्दर तक जल उठा। उसने तत्काल एक सिपाही को आदेश दिया कि झण्डे को गिरा दिया जाये। जैसे ही सिपाही ने झण्डा उतारने की कोशिश की स्वतंत्र जी एक कुशल अभिनेता की तरह मंच पर अवतरित हुए और सिपाही को एक लात मारकर गिरा दिया पर झण्डे को गिरने न दिया। तभी थमस के बन्दूक से निकली एक गोली चक्कर लगाती स्वतंत्र जी के सीने को भेदती हुई निकल गई। स्वतंत्र जी ने झण्डे को यथोचित स्थान पर लहराया और ऊंचे स्वर में गाया
गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमानकी
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की॥
और आजादी के इस वीर का शरीर धरती पर गिर पड़ा।
(लेखिका, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़ी हैं)

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