नई दिल्ली। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंधों में आई कड़वाहट दूर हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच शनिवार को हुई बैठक पुराने संबंधों में नई गर्मजोशी लाएगी। जिस प्रकार से दोनों देशों के बीच कई नई शुरूआत हुई है, उसने नेपाल पर चीन की पकड़ और कमजोर होगी तथा भारत-नेपाल रिश्ते प्रगाढ़ होंगे।
नेपाल में पिछली कम्युनिस्ट सरकार के दौरान रिश्तों में तल्खी की वजह नेपाल का सीमा पर कुछ स्थानों जैसे लिपुलेख, कालापानी आदि को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर दावा करना और उनके नक्शे जारी करना था। तब इसके पीछे यही समझा गया कि कम्युनिस्ट सरकार चीन के इशारे पर खेल रही है क्योंकि जिस प्रकार से मुद्दों का राजनीतिकरण किया गया वह बेहद चौंकाने वाला था। लेकिन शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत-नेपाल के बीच खुली सीमा है तथा इससे जुड़े विवादों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। नेपाल के प्रधानमंत्री भी इससे सहमत दिखे हैं। वह भी बातचीत के जरिये मामलों के समाधान को लेकर राजी हुए हैं।
साफ दिख रहा बदलाव
मौजूदा सरकार के कार्यकाल में नेपाल के रुख में पहले से ही बदलाव साफ दिख रहा है। लेकिन असल दिक्कत यह है कि देउबा सरकार भी कई कम्युनिस्ट गुटों के समर्थन पर टिकी है, इसलिए एकदम से यह मुद्दा किनारे हो जाएगा, ऐसा तो नहीं लगता। लेकिन फिर भी उम्मीद है कि तय मैकेनिज्म के जरिये इसे आने वाले दिनों में सुलझाया जाएगा। यह भी तय है कि अब यह मुद्दा पहले जैसा राजनीतिक रुख अख्तियार नहीं करेगा। जिस प्रकार ओली सराकर ने इस मुद्दे को हवा दी उसके बाद ही भारत और नेपाल की अधिसंख्य जनता को इसके बारे में पता चला। बैठक के दौरान भारत ने उन्हें यह भी समझाया कि जिस प्रकार भारत-बांग्लादेश के बीच तमाम सीमा विवाद सुलझा लिये गये हैं, वैसे ही भारत-नेपाल के बीच के विवाद भी सुलझ सकते हैं।
चीन के लिए बड़ा झटका
नेपाल में भारत के रुपे कार्ड की लांचिंग भी चीन के लिए बड़ा झटका है। चीन वहां अपना अली पे ऐप को चलाना चाह रहा था जो भीम यूपीआई जैसा ऐप है। आरोप लगे थे कि इस ऐप से टैक्स चोरी बढ़ रही है। इस मामले में भारत की कूटनीति काम आई और रुपे को वहां लॉन्च कर दिया गया है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि नेपाल की अर्थव्यवस्था के डिजिटल होने में रुपे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
नेपाल मामले में चीन के चल रहे बुरे दिन
विदेश मामलों के जानकारों की मानें तो नेपाल के मामले में चीन के दिन पहले से ही बुरे चल रहे हैं। अमेरिका-नेपाल के बीच पांच साल से लटके मिलेनियम कारपोरेशन चैलेंज (एमसीसी) समझौते को हाल में नेपाल की संसद ने चीन के न चाहते हुए भी मंजूरी दी है। अमेरिका ने जब द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की चेतावनी दी तो देउबा सरकार ने इसे मंजूरी दिलाई। इस समझौते के तहत अमेरिका से नेपाल को 50 करोड़ डॉलर की राशि विकास कार्यों के लिए मिलनी है, जबकि चीन नहीं चाहता था कि अमेरिका वहां निवेश करे। यह कदम भी नेपाल में चीन के लिए बड़ा झटका है। इसके अलावा बहुत दिनों से रुकी रेल सेवा के शुरू होने और अन्य समझौतों से भी भारत-नेपाल के बीच पुराने संबंधों को नये आयाम मिलने की संभावना है।