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संत रविदास ने भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया : राष्ट्रपति

संत रविदास ने भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया : राष्ट्रपति

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि संत रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखना उनकी सर्व-समावेशी उदारता के विरुद्ध होगा।

गुरु रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन 2021 को संबोधित किया

राष्ट्रपति कोविंद ने आज यहां गुरु रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन 2021 को संबोधित करते हुए कहा कि संत शिरोमणि रविदासजी जैसे महान संत, समान रूप से, आपके हैं, हमारे हैं और पूरी मानवता के भी हैं। उनका जन्म भले ही किसी विशेष समुदाय, संप्रदाय या क्षेत्र में हुआ हो लेकिन संत ऐसी सभी सीमाओं से ऊपर उठ जाते हैं। संत किसी जाति, संप्रदाय और क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रहते बल्कि वह तो पूरी मानवता के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। संत की कोई जाति नहीं होती है।

प्रासंगिकता पर विचार करने पर ज्ञात होता है

उन्होंने कहा कि संत रविदास ने अपनी करुणा और प्रेम की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को बाहर नहीं रखा था। राष्ट्रपति ने कहा कि गुरु रविदास ने केवल अपने समकालीन समाज का ही नहीं बल्कि भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया था। उनके जीवन दर्शन, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों और उनकी प्रासंगिकता पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि सामाजिक न्याय, स्वतन्त्रता, समता तथा बंधुता के हमारे संवैधानिक मूल्य भी उनके आदर्शों के अनुरूप ही हैं।

राष्ट्रपति ने कहा

हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संत रविदास की संत-वाणी में व्यक्त अनेक आदर्शों को संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया है। कोविंद ने कहा कि अच्छा इंसान संवेदनशील और समाज की मानवोचित मर्यादाओं का सम्मान करने वाला होता है। वह कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है। राष्ट्रपति ने कहा कि संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों। उन्होंने कबीर, गुरु नानक, मीराबाई के कथनों का उल्लेख करते हुए कहा कि संत रविदास की महिमा को अनेक तत्कालीन संतों एवं महाकवियों ने व्यक्त करते हुए उन्हें संतों में भी श्रेष्ठ संत की संज्ञा दी है।

https://twitter.com/rashtrapatibhvn/status/1363385299091423235?s=20

राष्ट्रपति ने कहा कि गुरु रविदासजी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी और उसे बेगमपुरा नाम दिया था। उन्होंने कहा था- बेगमपुरा सहर को नांउ, दुखु अंदोहु नहीं तिहि ठांउ। अर्थात: बेगमपुरा उस शहर का नाम है जहां किसी भी तरह के दुख या भय के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि रविदास, बेगमपुरा शहर के रूप में, अपने देश भारत की परिकल्पना की अभिव्यक्ति कर रहे थे। वे समता और न्याय पर आधारित देश के निर्माण के लिए अपने समकालीन समाज को प्रेरित कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने देशवासियों का आह्वान किया कि अब हमारा यह कर्तव्य है कि हम सब ऐसे ही समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध होकर कार्य करें और संत रविदास के सच्चे साथी कहलाने के योग्य बनें।

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