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परिवार की पारंपरिक सीट रायबरेली से चुनाव मैदान में राहुल गांधी, अमेठी से ज्यादा सुरक्षित

नई दिल्ली : लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट से न केवल उम्मीदवारों के नाम घोषित किए, बल्कि उन्होंने नामांकन भी दाखिल कर दिया है। सोनिया गांधी के सांसद प्रतिनिधि रहे किशोरी लाल शर्मा ने अमेठी और राहुल गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट से पर्चा भर दिया है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पहली बार रायबरेली सीट से चुनाव मैदान में हैं. 2004 से 2019 के चुनाव तक राहुल अमेठी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते आए हैं. वह इस सीट से तीन बार सांसद रहे और पिछले चुनाव में उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा था।

कांग्रेस ने राहुल गांधी को इस बार रायबरेली सीट से उतारा है. राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव नहीं लड़ने पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार पर हमला बोला है. स्मृति ने कहा कि अमेठी से गांधी परिवार का न लड़ना संकेत है कि चुनाव से पहले बिना वोट पड़े ही कांग्रेस ने अपनी हार मान ली है. यहां जीत की कोई भी गुंजाइश होती तो वह (राहुल गांधी) अपने प्रॉक्सी को नहीं लड़ाते।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी तंज करते हुए कहा कि कुछ समय पहले राहुल गांधी कहते थे ‘डरो मत, डरो मत’. अब अमेठी से वायनाड और वायनाड से लेकर रायबरेली तक, हार के प्रति उनका डर उन्हें हर जगह ले जा रहा है. राहुल की रायबरेली से उम्मीदवारी को बीजेपी अमेठी में हार मानने की तरह बता रही है तो वहीं कांग्रेस के नेता इसे पार्टी की रणनीति. चर्चा का हॉट टॉपिक ये है कि राहुल ने अपनी सीट अमेठी छोड़कर रायबरेली से क्यों उतरे?

रायबरेली सीट नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है. इस सीट से फिरोज गांधी से लेकर इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू और सोनिया गांधी तक संसद पहुंचते रहे हैं. अब सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा जा चुकी हैं और परिवार के इस गढ़ से परिवार के ही किसी सदस्य को चुनाव लड़ाने की मांग स्थानीय स्तर पर तेजी से उठ रही थी।

सोनिया गांधी ने राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद रायबरेली की जनता के नाम भावु्क चिट्ठी लिखकर ये संदेश भी दे दिए थे कि इस सीट से गांधी परिवार का ही कोई सदस्य चुनाव मैदान में उतरेगा. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने भी कहा था कि इस सीट से परिवार का ही कोई उतरेगा. इसके पीछे बड़ी वजह विरासत की इस सीट से गांधी परिवार का भावनात्मक जुड़ाव भी है।

फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी को छोड़ दें तो नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के चुनावी डेब्यू का लॉन्चिंग पैड अमेठी सीट ही रही है. संजय गांधी से लेकर राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक, अपने पहले चुनाव में अमेठी सीट से ही मैदान में उतरे. इस बार प्रियंका गांधी के सियासी डेब्यू के कयास लगाए जा रहे थे और माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें ‘परिवार के लॉन्चिंग पैड’ अमेठी सीट से मैदान में उतार सकती है. लेकिन प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुईं।

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई के मुताबिक, यूपी में सपा-कांग्रेस जब सीट शेयरिंग पर बातचीत कर रहे थे, तब अखिलेश यादव ने यह शर्त रखी थी कि दोनों भाई-बहनों में से कम से कम कोई एक सदस्य यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ेगा।

राहुल गांधी अमेठी सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. 2019 के चुनाव में राहुल को अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी से पराजय का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस ने इस बार राहुल को अमेठी की जगह सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से मैदान में उतारा तो उसके पीछे इस सीट का पुरानी सीट से अधिक सुरक्षित होना भी था।

रशीद किदवई के मुताबिक कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी, दोनों ही सीट पर आंतरिक सर्वे कराया था. इस सर्वे में अमेठी से जीत के हाफ चांस की बात सामने आई थी. रायबरेली की सर्वे रिपोर्ट में गांधी परिवार के किसी सदस्य के चुनाव मैदान में उतरने पर जीत सुनिश्चित होने की बात थी।

कहा ये भी जा रहा है कि राहुल गांधी अगर अमेठी सीट से चुनाव लड़ते और वह केरल की वायनाड के साथ इस सीट से भी चुनाव जीत जाते तो उनके लिए किसी एक सीट का चयन कर पाना मुश्किल हो जाता. वह धर्मसंकट में फंस जाते कि किसे छोड़ें और किसे रखें. वायनाड ने राहुल को तब हाथोहाथ लिया था और संसद भेजा था जब अमेठी की जनता ने उन्हें नकार दिया था।

अमेठी सीट से भी गांधी परिवार का भावनात्मक लगाव रहा है लेकिन वायनाड पर इसे तरजीह दे पाना राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी, दोनों के लिए ही मुश्किल होता. रायबरेली और वायनाड, दोनों सीट से चुनाव जीतने की स्थिति में पुराने गढ़ और अभेद्य किला होने का हवाला देकर राहुल गांधी इसे चुन सकते हैं।

एक दूसरी स्थिति यह भी है कि अगर राहुल गांधी वायनाड सीट अपने पास रखते हैं और रायबरेली छोड़ते हैं तो इस सीट से पार्टी उपचुनाव में प्रियंका गांधी या किसी अन्य उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार जीत की उम्मीद कर सकती है. लेकिन उपचुनाव की नौबत आने पर अमेठी की लड़ाई और मुश्किल हो जाती।

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