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रेप पर राजनीति नहीं, लगाम चाहिए!

रामकुमार सिंह

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।’’ इसका अर्थ है कि ‘जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती, उनका सम्मान नहीं होता, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।’ लेकिन अपने देश में हो रहा है, इसका ठीक उलटा। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक आधी आबादी के साथ होने वाले अपराध मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं। कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता है जब समाचार माध्यमों में महिलाओं, युवतियों, किशोरियों और यहां तक कि मासूम बच्चियों के साथ भी दुष्कर्म की वारदातें न दिखती हों। वहीं इन घटनाओं की निन्दा करने के साथ ही जिस तरह इसके जरिए राजनीतिक लाभ लेने की होड़ मचती है, वह और र्भी ंनदनीय है। जरूरत इस बात की है कि इस प्रकार के अपराधों पर राजनीतिक नफे-नुकसान और आपसी मतभेद से ऊपर उठकर कोई ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए कि जिससे ऐसी वारदातों पर लगाम लग सके। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक मेडिकल छात्रा के साथ बर्बरता हुई। अभी यह प्रकरण मीडिया की सुर्खियां बना ही था कि महाराष्ट्र में दो स्थानों, यूपी के तीन जिलों, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों से भी कुछ ऐसी ही खबरें आयीं। बस फिर क्या था, शुरू हो गयी सियासत। जो कोलकाता की घटना पर गला फाड़ रहे थे वह महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी की घटनाओं पर चुप्पी साधे थे। सभी अपनी कमीज को दूसरे की कमीज से ज्यादा सफेद करार देने में लगे थे। यही वजह है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत यानि संसद में वर्तमान में 16 सांसद ऐसे हैं जिनके ऊपर बलात्कार के आरोप लगे हैं। इन सभी सांसदों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप लगे हैं लेकिन चुनावों में जीत ही सबसे बड़ा पैमाना है, इसलिए राजनीतिक दल जघन्य आरोपों का सामना करने वालों को भी चुनावी मैदान में उतारने से गुरेज नहीं करते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) के विश्लेषण की एक हालिया रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है। 151 सांसदों और विधायकों ने अपने चुनावी हलफनामों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों को स्वीकार किया है। इन मामलों में यौन उत्पीड़न से लेकर बलात्कार तक शामिल हैं। एडीआर ने 2019 से 2024 के बीच चुनावों के दौरान सांसदों और विधायकों की तरफ से जमा किए गए 4,693 हलफनामों का विश्लेषण किया। पश्चिम बंगाल इस मामले में 25 विधायकों और सांसदों के साथ सबसे आगे है, जबकि आंध्र प्रदेश 17 विधायकों के साथ दूसरे स्थान पर है। यही वजह है कि नए कानूनों और आंदोलनों के बावजूद, देश में बलात्कार के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है।

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के हॉस्पिटल में जूनियर डॉक्टर के साथ नौ अगस्त को रेप के बाद बेरहमी से हत्या का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। अब इस घटना को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी रोष जताया है। उन्होंने साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भयाकांड को याद करते हुए कहा है, ‘निर्भया कांड के बाद 12 सालों में रेप की अनगिनत घटनाओं को समाज ने भुला दिया है। समाज की भूलने की यह सामूहिक आदत घृणित है। इतिहास का सामना करने से डरने वाला समाज ही चीजों को भूलने का सहारा लेता है। साफ है कि देश की राष्ट्रपति जो कि स्वयं महिला हैं, भी महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को लेकर खार्सी चिंतित हैं। वास्तव में निर्भया काण्ड के बाद जिस तरह का माहौल पूरे देश में दिखा था, उससे यह लग रहा था कि अब ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि अब भी भारत में हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े चार लाख से अधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। इनमें रेप के साथ ही छेड़छाड़, दहेज हत्या, अपहरण, महिलाओं की तस्करी और एसिड अटैक जैसे अपराध भी शामिल हैं। 2012 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के जहां 2.44 लाख मामले दर्ज हुए थे, 10 साल बाद यानी 2022 में 4.45 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, यानि औसतन हर दिन 1200 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। यह स्थिति तब है जब निर्भया कांड के बाद तत्कालीन मनमोहर्न ंसह सरकार ने कानून बदलकर इसे बहुत सख्त कर दिया था। यहां तक कि रेप की परिभाषा भी बदल दी गई थी, ताकि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को घटाया जा सके। साल 2013 में कानून में संशोधन कर रेप का दायरा बढ़ाया गया था। रेप में मौत की सजा का प्रावधान किया गया था। रेप के बाद अगर पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा जैसी हालत में पहुंच जाती है, तो दोषी को फांसी भी दी जा सकती है। इसी घटना के क्रम में जुवेनाइल कानून में भी संशोधन किया गया था, जिससे कोई 16 साल से लेकर 18 साल से कम उम्र का किशोर जघन्य अपराध में शामिल हो तो उसके साथ वयस्क अपराधी की तरह ही बर्ताव किया जा सके। इस संशोधन की जरूरत इसलिए पड़ी थी, क्योंकि निर्भया के छह दोषियों में से सबसे प्रमुख दोषी एक नाबालिग था और वह तीन साल की सजा काटकर ही रिहा हो गया था।

कानून भले ही बेहद सख्त बना दिया गया हो लेकिन सच्चाई यह है कि निर्भयाकांड के बाद रेप के मामलों में कमी आने के बजाय इनकी संख्या बढ़ गई। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2012 से पहले हर साल देश में रेप के औसत 25 हजार मामले दर्ज होते थे। निर्भया कांड से 12 साल पहले यानी 2001 में इसके 16,075 मामले सामने आए थे। वहीं, 2009 में 21397, 2010 में 22172 और 2011 में 24206 मामले दर्ज हुए थे। निर्भया कांड के बाद तो रेप का यह आंकड़ा 30 हजार के ऊपर पहुंच गया और अगली ही साल यानी 2013 में 33 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। 2016 में तो यह आंकड़ा 39 हजार के करीब तक पहुंच गया था। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 में रेप के 24923 मामले दर्ज थे। यानी उस साल हर दिन औसत रूप से 68 मामले शामिल आए। वहीं, साल 2022 में इसके 31516 मामले दर्ज किए गए थे। इसका मतलब हर दिन औसत रूप से 86 मामले दर्ज हुए। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक साल 2001 से 2014 के बीच रेप के मामले दोगुने से भी ज्यादा हो गए। यानि रेप के मामले 16,075 से बढकर 36,735 हो गए थे। वहीं, साल 2023 में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध खूब दर्ज किए गए पर रेप और रेप के प्रयास की शिकायतों में कमी देखने को मिली। राष्ट्रीय महिला आयोग को साल 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 28,811 शिकायतें मिली थीं। इनमें से 55 प्रतिशत के करीब उत्तर प्रदेश से थीं। एनसीडब्ल्यू के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा शिकायतें गरिमा के अधिकार श्रेणी में आईं। इनकी संख्या 8,540 थी। वहीं रेप और रेप के प्रयास की 1,537 शिकायतें मिलीं। आंकड़ों में बताया गया है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 16,109 शिकायतें मिली थीं। दिल्ली से 2411, महाराष्ट्र से 1343 शिकायतें आईं।

राज्यों में रेप के मामलों की बात करें तो साल 2022 में राजस्थान में रेप के सबसे ज्यादा 5,399 मामले दर्ज किए गए थे। दूसरे नंबर पर 3690 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश था। तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश था, जहां रेप की 3029 शिकायतें दर्ज हुईं। चौथे स्थान पर महाराष्ट्र में 2904 शिकायतें, पांचवें स्थान पर हरियाणा में 1787 शिकायतें और छठवें स्थान पर ओडिशा में 1464 शिकायतें दर्ज की गई थीं। वहीं एनसीआरबी के आंकड़े दर्शाते हैं कि महिलाओं-बेटियों के खिलाफ अपराध की घटनाओं में कमी लाकर नागालैंड इनके लिए सबसे सुरक्षित राज्य बन गया है। यहां साल 2021 में जहां महिला अपराधों में 38.46 फीसद की वृद्धि हुई थी, वहीं 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 9 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट में बताया गया है कि आईपीसी और विशेष और स्थानीय कानूनों (एसएलएल) के तहत राज्य में दर्ज महिलाओं के खिलाफ 2021 में अपराध 54 थे। साल 2022 में ये 49 हो गए। हालांकि, साल 2020 में यह आंकड़ा 39 पर ही था। साल 2022 में नागालैंड में महिलाओं की संख्या 10.7 लाख थी। इस दौरान अपराध की दर यानी एक लाख की आबादी पर अपराध का आंकड़ा 4.6 था, जबकि राष्ट्रीय औसत 66.2 दर्ज किया गया था। वैसे अगर केंद्र शासित प्रदेशों को भी शामिल कर लें तो महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध लद्दाख में दर्ज किए गए थे। 2022 में वहां महिलाओं के खिलाफ 15 मामले दर्ज हुए थे। वहीं लक्षद्वीप में ऐसे 16 मामले दर्ज किए गए थे। इन दोनों ही राज्यों में यह अपराध दर क्रमश: 1.3 और 0.3 पर थी।

एनसीआरबी के सबसे हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2022 में गर्भवती महिलाओं के साथ रेप के 34 मामले दर्ज किए गए, वहीं 224 मामले उन महिलाओं के साथ रेप के दर्ज किए गए, जो कंसेंट या सहमति देने की अवस्था में नहीं थीं। इसी साल 110 मामले शारीरिक या मानसिक तौर पर विकलांग महिलाओं के साथ बलात्कार के दर्ज किए गए। करीब 37 हजार चाइल्ड रेप और 20 हजार मामले बच्चों के यौन उत्पीड़न के दर्ज किए गए। एक अनुमान के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ यौर्न ंहसा के करीब 85 फीसदी मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं। इनमें पति द्वारा की गई यौन हिंसा या मैरिटल रेप के आंकड़े शामिल नहीं थे। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ये आंकड़े शामिल कर लिए जाएं तो महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के करीब 99 फीसद मामले पुलिस में रिपोर्ट नहीं किए गए। वहीं एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 से लेकर 2022 तक रेप के मामलों में कॉनविक्शन रेट या दोषसिद्धि की दर 27-28 फीसद रही है। यानी 100 में से करीब 27 मामलों में आरोप साबित किया जा सका और आरोपी को सजा हुई। वहीं महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में पेंडेंसी रेट (लंबित दर) के आंकड़े भी ठीक नजर नहीं आते। एक खबर के मुताबिक, इन मामलों में पेंडेंसी रेट 90 से 95 फीसद तक रहा। यानी 100 में से 5-10 मामले अदालतों में निस्तारित किए जा सके। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में 2,324 मामलों में रेप का आरोपी, पीड़िता के परिवार का सदस्य था। 14 हजार से ज्यादा मामलों में आरोपी कोई दोस्त, ऑनलाइन फ्रेंड, लिव इन पार्टनर या अलग हो चुका पति था।

वहीं इसी साल, 13 हजार से ज्यादा मामलों में आरोपी फेमिली फ्रेंड, पड़ोसी या एंप्लॉयर था। महज 1062 मामलों में आरोपी अपरिचित था या उसकी पहचान नहीं थी। अब पुलिस द्वारा रेप के मामलों के निबटारे की बात की जाये तो साल 2022 में 31 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। वहीं 2021 के करीब 13 हजार रेप के मामले लंबित थे। करीब 4 हजार मामलों में फाइनल रिपोर्ट गलत मिली। वहीं 1,921 मामलों में दोष सच होते हुए भी, पर्याप्त सबूत नहीं जुटाए जा सके। साल 2022 में कोर्ट द्वारा रेप के मामलों के निबटारे की बात करें, तो रेप या गैंगरेप के बाद हत्या के करीब एक हजार मामले पिछले साल के र्पेंंडग थे। रेप के 1 लाख 70 हजार से ज्यादा मामले पिछले साल के र्पेंंडग थे। साल 2022 में रेप के मामलों में कॉनविक्शन रेट 27.4 फीसद था। यानी हर 100 में से करीब 27 मामलों में सजा सुनाई गई। वहीं 10 फीसद रेप के मामलों में ही ट्रायल पूरा हो पाया। इसी साल गैंग रेप या रेप के साथ हत्या के मामलों में कॉनविक्शन रेट 69.4 फीसद था। लेकिन पेंडेंसी पर्सेंटेज 95 फीसद। साल 2022 में बच्चों के साथ अपराध के एक लाख साठ हजार से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जिनमें करीब 40 फीसद मामले बच्चों के साथ यौन अपराधों के एक्ट, पास्को (प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड फ्राम सेक्सुअल अफेन्सेज), में दर्ज किए गए। इनमें बच्चों के साथ किए गए रेप के मामले भी शामिल हैं। यह आंकड़े और अपराधों की संख्या तब है जब शत-प्रतिशत शिकायतें थानों में दर्ज नहीं की जाती हैं। ग्रामीण स्तर पर रेप के मामले थाने स्तर से ही बिना दर्ज किए डरा-धमका कर रफा-दफा कर दिए जाते रहे हैं।

ऐसे कई मामले बाद में उछले और मीडिया की सुर्खियां बने, जिसके बाद संबंधित थाने के पुलिस कर्मियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई भी हुई। सरकारें अपराधों के आंकड़े कम दिखाकर अपनी-अपनी पीठ थपथपाने की आदी हो गयी हैं। अब स्थिति यह है कि पश्चिम बंगाल के कोलकाता में ‘डाक्टर बिटिया’ के साथ हुई बर्बरता को लेकर भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर वहां की ममता बनर्जी सरकार है। वहां बकायदा विरोध प्रदर्शन और कोलकाता-बंगाल बंद का कार्यक्रम चल रहा है। साफ है कि चूंकि भाजपा वहां सत्ता में नहीं है तो वह तृणमूल कांग्रेस से इस घटना के बहाने दो-दो हाथ करना चाह रही है। इसके ठीक उलट महाराष्ट्र में हुई दुष्कर्म की घटनाओं पर वहां के विपक्षी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस सरकार पर हमलावर हैं। महाराष्ट्र शिंदे के गुट वाली शिवसेना भाजपा के साथ सत्ता में है। वहीं राजस्थान में विपक्ष में बैठी कांग्रेस वहां की भाजपा सरकार को घेरने में लगी है। यूपी में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सूबे की भाजपा सरकार को पानी पी-पीकर कोस रही हैं। वहीं दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का बयान स्वागतयोग्य कहा जा सकता है।

अपराजिता-दुष्कर्मियों को होगी फांसी

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 8/9 अगस्त को ट्रेनी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और फिर उसकी हत्या के मामले में देशभर में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। इस बर्बर काण्ड के बाद देशभर में डॉक्टरों और राजनीतिक दलों के प्रदर्शन हुए थे। वहीं बाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि वो राज्य में रेप जैसे अपराध के लिए सख्त कानून बनाएंगी। उन्होंने प्रधानमंत्री को भी इसके लिए दो बार चिट्ठी भी लिखी। अब उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर एंटी रेप बिल पास किया। नए कानून के तहत रेप केस की 21 दिन में जांच पूरी करनी होगी। इसके अलावा पीड़ित के कोमा में जाने या मौत होने पर दोषी को 10 दिन में फांसी की सजा होगी। भाजपा ने भी बिल का समर्थन किया है। इसे अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक 2024 (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) नाम दिया गया है। अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। उसके बाद यह राष्ट्रपति के पास जाएगा। दोनों जगह पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा। इस बावत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि, ‘‘हमने केंद्रीय कानून में मौजूद खामियों को दूर करने की कोशिश की है। विपक्ष को राज्यपाल से विधेयक पर साइन करने के लिए कहना चाहिए, उसके बाद इसे अधिनियमित करना हमारी जिम्मेदारी है।’’ ममता ने बिल पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा- पश्चिम बंगाल में महिलाओं के लिए 88 फास्ट ट्रैक कोर्ट और 52 विशेष अदालतें हैं। इनमें 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हैं और उनमें से 3 लाख 11 हजार 489 मामलों का निपटारा किया जा चुका है। फास्ट ट्रैक कोर्ट में 7,000 मामले लंबित हैं। ममता ने विपक्ष के आरोपों पर कहा-विपक्ष कहता है कि ट्रेनों में रेप होता है, वहां सुरक्षा करना आरपीएफ का काम है। विपक्ष उन्नाव और हाथरस मामले पर चुप है। यह हर राज्य में हो रहा है, लेकिन मैं इसका महिमामंडन नहीं कर रही हूं। आज देश में हर दिन 90 रेप केस हो रहे हैं। केवल 2.56 फीसदी आरोपी ही दोषी ठहराए गए हैं।

बंगाल सरकार ने बिल को अपराजिता वुमन एंड चाइल्ड बिल 2024 नाम दिया है। इसका मकसद वेस्ट बंगाल क्रिमिनल लॉ एंड अमेंडमेंट बिल में बदलाव कर रेप और यौन शोषण के मामलों में महिलाओं-बच्चों की सुरक्षा बढ़ाना है। बिल में कहा गया है कि अगर रेप के बाद विक्टिम की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा में चली जाती है तो इस स्थिति में रेप के दोषी को फांसी की सजा दी जाए। वहीं रेप-गैंग रेप के दोषी को उम्रकैद की सजा दी जाए। इसमें उसे सारी उम्र जेल में रखा जाए। इस दौरान उसे पैरोल भी ना दी जाए। मौजूदा कानून के तहत उम्रकैद की कम से कम सजा 14 साल है। उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के बाद सजा माफी हो सकती है, पैरोल दी जा सकती है। सजा कम भी की जा सकती है, लेकिन जेल में 14 साल बिताने होंगे। बिल ड्राफ्ट में भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 64, 66, 70(1), 71, 72(1), 73, 124(1) और 124 (2) में बदलाव का प्रस्ताव है। इसमें मुख्य तौर पर रेप की सजा, रेप और मर्डर, गैंगरेप, लगातार अपराध करना, पीड़ित की पहचान उजागर, एसिड अटैक के मामले शामिल हैं। इसमें सेक्शन 65(1), 65 (2) और 70 (2) को हटाने का प्रस्ताव है। इसमें 12, 16 और 18 साल से कम उम्र के दोषियों को सजा दी जाती है।

ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, रेप के मामलों में जांच 21 दिन के भीतर पूरी कर ली जानी चाहिए। इस जांच को 15 दिन बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस और इसके बराबर की रैंक वाले अधिकारी ही करेंगे, इससे पहले उन्हें लिखित में इसका कारण केस डायरी में बताना होगा। आदतन अपराधियों के लिए भी उम्र कैद की सजा का प्रावधान बिल में है। इसमें दोषी को अपनी आयु पूरी करने तक जेल में रहना होगा। साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा। ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, जिला स्तर पर स्पेशल टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव है, जिसका नाम अपराजिता टास्क फोर्स होगा। इसकी अगुआई डीएसपी करेंगे। ये टास्क फोर्स नए प्रावधानों के तहत मामलों की जांच के लिए जिम्मेदार होगी। वहीं, बिल में यह भी कहा गया है कि स्पेशल कोर्ट और स्पेशल जांच टीमें बनाई जाएंगी। इन्हें जरूरी संसाधन और विशेषज्ञ मुहैया कराए जाएंगे, जो रेप और बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामले देखेंगे। इनका काम तेजी से जांच, जल्द न्याय दिलाना और पीड़ित को होने वाले ट्रॉमा को कम करना होगा। इसके अलावा रेप केस की मीडिया रिपोर्टिंग के लिए भी गाइड लाइन बनायी गयी है। इसके तहत कोर्ट की कार्यवाही को प्रिंट या पब्लिश करने से पहले इजाजत लेनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया तो जुर्माने के साथ 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान रखा गया है।

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