कहानी- जंगल में संविधान
लेखक- जंग हिंदुस्तानी
उस दिन बाघ ने राह में अचानक मिले सियार को छेड़ क्या दिया सियार ने मुंह उठाकर चिल्ला चिल्ला कर पूरे जंगल के जीवों को इकट्ठा कर दिया। पीठ का घाव दिखाते हुए सियार ने कहा कि जंगल में जीना हराम हो गया है। क्या सारा जंगल किसी एक के बाप की बपौती है क्या? क्या हमें जीने का कोई अधिकार नहीं? हम छोटे जानवर हैं तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि हम किसी बड़े जानवर का भोजन बने? आखिर जंगल में कोई नियम कानून है कि नहीं? सियार की बात को सुनकर भी भेडिए ने कहा कि अगर कोई नियम कानून होता तो हम को इन बाघों के डर से इधर उधर क्यों भागना पडता? भेड़िए की बात को सुनकर हिरण ने कहा कि भाई ,मौका पाने पर तो तुम लोग भी किसी को नहीं छोड़ते हो। जंगल में जो जिसको पा जाता है वह उसको मार देता है।
पेड़ पर बैठा बंदर काफी देर तक यह सब सुनता रहा।इसके बाद बंदर ने कहा ” इस सब समस्या का एक निदान यही है कि हम लोग भी इंसानों की तरह अपना संविधान बनाएं जिसमें सारे लोग बराबर के अधिकार पाएं। बंदर की बात को सभी लोगों ने समर्थन दिया लेकिन भालू ने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि बाघ हमारे संविधान को मानेगा? आप चार लोग मिलकर के संविधान बनाएंगे तो हाथी और बाद गैंडा हमारे आपके बनाए संविधान को कहां मानेगे?
तपस्वी की तरह आंखें बंद करके बैठे उल्लू ने आंखें खोलकर सब की ओर देखते हुए कहा “सही कह रहे हो भाई, हमको इसके लिए सभी के साथ बैठ करनी होगी और उसके बाद सर्वसम्मति से संविधान बनाना पड़ेगा। एक एक नियम कायदे कानून पर चर्चा करनी पड़ेगी और जो नियम कायदा कानून पास होगा उस पर सबको चलना पड़ेगा”।
लोमड़ी ने कहा ” हां, यह बात ठीक है। हमें एक बड़ी सभा बुला करके इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए। अन्त में सभी उपस्थित पशुपक्षियों ने कौवे को इस बात की जिम्मेदारी दी गई कि वह जाकर इस एजेंडे को बाघ हाथी गैंडा सहित जंगल के सभी जानवरों को अपनी ओर से सूचित करे । पूर्णमासी की रात बड़े घास के मैदान में सभी जानवर इकट्ठा होंगे। कौवे ने कहा ” मुझे बहुत खुशी हुई । बहुत दिन से मैं खाली बैठा हुआ था । मेरे पास कोई काम नहीं था। चलो, इसी बहाने सभी से मुलाकात हो जाएगी। कौवे ने जंगल के सभी जानवरों तक जा जा करके बैठक में आने का निमंत्रण दिया।
पूर्णमासी की चांदनी रात थी। उजाला बिल्कुल दिन के जैसा था। सभी जानवर इकट्ठा थे। बैठक में ना चाहते हुए भी बाघ भी आया था ।भालू हाथी, गैंडा, हिरण आदि सभी आए थे। बैठक की अध्यक्षता करने के लिए लकड़बग्घे ने बाघ का नाम प्रस्तावित किया। थोड़ी सी नानुकर के बाद सभी लोगों ने प्रस्ताव मान लिया। बैठक की कार्यवाही शुरू करते हुए भेड़िए ने कहा ” सज्जनों , आज कि इस बैठक में आप सभी लोगों का दिल की गहराइयों से स्वागत है। आज की बैठक इस बात के लिए है कि इस जंगल में सब कुछ मनमाना चल रहा है। कोई नियम कानून नाम की चीज नहीं है जबकि इंसानों ने अपना संविधान बना लिया है और उसके बनाए कानून से सब लोग चल रहे हैं। हमें भी इस बात से सबक लेना चाहिए कि इस जंगल में भी संविधान लागू होना चाहिए। आपकी क्या राय है? आप लोग अपनी अपनी राय बताइए।” भेड़िए की बात काटते हुए तेंदुए ने कहा ” समझ गया, सब समझ गया, हमारी मेहनत का मजा आप लोग खाना चाहते हैं इसीलिए संविधान बनाना चाह रहे हैं।
बाघ ने तेन्दुए को डांट दिया और चुप रहने की सलाह दी। बाघ ने कहा “आप लोगों को तेन्दुआ की बात पर नहीं जाना है। आप जो भी संविधान बनाएंगे, हमें बिल्कुल मंजूर होगा। हमें किसी के अधिकारों को हनन बिल्कुल नहीं करना है। आप लोग चर्चा शुरू करें। सारी रात चर्चा शुरू हुई। 1-1 मुद्दे पर घंटों बहस हुई और संविधान बनकर तैयार हो गया। अंत में बैठक की अध्यक्षता कर रहे बाघ ने कहा “मित्रों, आज का दिन ऐतिहासिक है। आप लोगों की मेहनत से जंगल में लोकतंत्र आ रहा है । मुझे बहुत खुशी है। हमने और हमारे पूर्वजों ने बहुत दिनों तक राज्य किया है। अब आप लोगों को भी राज करने का मौका मिलेगा। मैंने आप लोगों का दिल बहुत दुखाया है । आप सभी से क्षमा मांगते हुए बस मैं संविधान में कुछ चीजें अपनी ओर से जुड़वाना चाहता हूं।
बाघ के भावुक भाषण को सुनकर सारे जानवरों का दिल द्रवित हो गया। बाघ ने कहा ” मैं चाहता हूं कि देश में आरक्षण व्यवस्था लागू हो ताकि सभी लोग सभी पदों पर जा सकें। बस यह आरक्षण व्यवस्था उच्च पदों पर लागू नहीं होना चाहिए। जंगल में कानून के सामने हर कोई बराबर होगा लेकिन हम लोगों पर कोई कानून लागू नहीं होना चाहिए। हम चाहते हैं कि जंगल में सूचना का अधिकार कानून भी लागू हो और छोटा छोटा जानवर भी हिसाब किताब दुरुस्त रखें लेकिन यह कानून भी उच्च पदों पर बैठे लोगों के लिए बाध्यकारी नहीं हो। राज चलाने वालों को अगर कानून से बांध दिया जाएगा तो राज कैसे चलाएंगे? राज चलाने वालों के हाथ खुले हुए होने चाहिए। एक अध्यक्ष चुने के नाते मेरी आप लोगों से यह छोटी सी मांग है।
लोगों ने सर झुका कर बाघ की बात को मान लिया और उसे संविधान में शामिल कर लिया। इस प्रकार जंगल में संविधान बन गया और फिर कानूनी तरीके से चलने वाला जंगलराज कायम हो गया। अब जंगल के जानवर किसी भी अत्याचार का विरोध नहीं करते हैं क्योंकि कानून में अत्याचार का विरोध करना गैरकानूनी है। जंगल के जानवर इस बात से खुश हैं कि उनके जंगल में लोकतंत्र कायम है। संविधान लागू है। कानून का राज चल रहा है। भले उनके साथ पहले से अधिक अत्याचार हो रहा है लेकिन सब चुप हैं।
(कहानी काल्पनिक है)