दस्तक-विशेष

कहानी- दो पैरों वाला बाघ

लेखक- जंग हिंदुस्तानी

कहने को तो मैं बाघ हूं, मेरे पास बल और बुद्धि भी है लेकिन उस दिन तो मेरी मति मारी गई थी जब मैंने भागते हुए हिरण का पीछा किया था । काफी लंबी दूरी तक दौड़ने के बाद जब हिरन पानी में कूद गया तो मैं भी उसके पीछे शिकार के लिए कूद गया। हिरण एक बारगी मुड़ा और फिर से वापस जंगल की ओर भाग गया लेकिन मैं अपने भारी भरकम शरीर को संभाल नहीं सका और नदी की धारा में बहने लग गया। आज मैं सोच रहा था कि जितनी शक्ति मुझे जमीन पर रहकर मिली है काश इतनी शक्ति पानी में मिली होती तो मजा आ जाता।

मैं इतना सोच ही रहा था तब तक पीछे से आ रही बहती हुई लकड़ी ने मुझे और धारा में धकेल दिया। अब मुझे बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था । संकट चीज घड़ी में हम किसे याद करते? हम जानवर तो किसी को भगवान मानते ही नहीं, किसी को याद करते तो क्या याद करते? जीवन भर अपनी शक्ति पर हमने विश्वास किया था । आज भी अपनी शक्ति के सहारे जिंदगी बचाने की बारी थी।

पहाड़ी नदी के पानी का तेज वेग इस तरह से था कि मुझ जैसा जबरदस्त तैराक भी कई बार डूबते डूबते बचा। नदी की चौड़ाई पहले से ही ज़्यादा थी । आगे एक और नदी मिल गई तो चौड़ाई मीटर से किलोमीटर में हो गई। अभी कोई चार या पांच किलोमीटर आगे बढ़ा ही था कि नदी पर बना हुआ बैराज दिखाई पड़ा। यहां लहरों का प्रभाव तेज हुआ तो मैं बैराज के गेट से जाकर टकरा गया। थोड़ी देर के लिए मेरा दिमाग सुन्न हो गया लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी।

मैंने देखा कि मुझे देखने के लिए बैराज के पुल के ऊपर बड़ी संख्या में लोग मौजूद है। एक बार तो मैं भवर में फंस गया। कई चक्कर काटने के बाद बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाया। पूरा बदन टूट चुका था। मेरे लिए बैराज के गेट एक नई मुसीबत की तरह दिखाई पड़ रहे थे। एक के एक कई गेट पार करते करते आगे बढ़ा तो किस्मत से एक खुला हुआ गेट मिल गया और उसके नीचे से बहता हुआ पानी मुझे तेजी से खींच कर के आगे की ओर लेकर चला गया। यहां इस बात का संतोष मिला कि एक बड़ी मुसीबत से जान बची। अब मैंने अपने हाथ पैर ढीले कर दिए थे और नदी के साथ बहाव में बहता चला जा रहा था।


धीरे-धीरे किनारे जाने में पांच -छः किलोमीटर निकल गए थे ।यहां जाकर जब किनारा मिला दिल को सुकून पहुंचा।करीब में ही घास काटने वाले लोग नाव पर बैठे मुझे पानी से बाहर निकलते हुए देख रहे थे। लोग हल्ला मचा रहे थे लेकिन आज मुझे लोगों से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि मेरा अंग अंग टूट रहा था और मैं आराम करना चाहता था। मेरा घर छूट चुका था लेकिन गन्ने के खेत के रूप में जो नया घर मुझे प्राप्त हुआ था वह काफी सुकून देने वाला था। 3 दिन तक ना तो मुझे शिकार की इच्छा हुई और ना ही चलने फिरने की। मैं नदी के किनारे किनारे अंदाज से अपने घर की और वापस हो रहा था।

तीसरे दिन एक गांव के पास गन्ने के खेत में मैंने रात बिताने की सोची। रात अभी शुरू ही हुई थी कि बाघ बाघ की आवाज गांव से आनी शुरू हो गई । पहले तो मैंने यह सोचा कि शायद इन लोगों ने मुझे देख लिया है लेकिन जब मैंने यह सुना कि कोई बाघ नल पर पानी पीने के लिए गई लड़की को उठाकर के ले गया है तो मैंने सोचा कि जरूर किसी और बाघ की हरकत होगी । मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने खुद जीवन में कभी भी किसी आदमी को हमला करके तब तक नहीं मारा जब तक कि मुझे उससे खतरा महसूस नहीं हुआ। जब तक हमारे अंदर बड़े जानवरों के शिकार करने की क्षमता है तब तक हम इंसान पर हमला नहीं करते। मैंने सोचा कि जरूर यह हरकत तेन्दुआ की रही होगी, वही यह बचकानी हरकत करता रहता है।

लेकिन यह क्या ?बाघ की जो गुरराहट की आवाज आ रही थी वह बाघ की नहीं थी। वह आदमी की बनावटी आवाज लग रही थी। लड़की की खोज में बहुत सारे लोग गन्ने में इधर-उधर घूम रहे थे। मैंने खतरा महसूस किया तो एक घने गूलर के पेड़ पर चढ़कर छुप गया और वही से पूरा नजारा देखता रहा। देखते देखते ही लोगों ने कई एकड़ गन्ने की फसल को तहस-नहस कर दिया। बाघ के गुरराहट वाली जो आवाज आ रही थी उससे तो मैं भी बहुत आश्चर्यचकित था क्योंकि ऐसी आवाज हमने पहली बार सुनी थी। अब मुझे और भी अधिक मजा आने लगा। रात के 2:00 बजे जब गन्ने के खेत से एक लड़की और 3 लड़के बाहर निकल कर के भागते हुए दिखे तो पूरी बात मेरे समझ में आ गई कि यह कोई इंसानी खेल है जो बाघ के नाम पर खेला जा रहा है। एक बार तो मुझे बहुत गुस्सा लगा कि मुझे बदनाम करने वाले इन लोगों को मैं सबक सिखा दूं लेकिन फिर मैंने अपने को शांत कर लिया।

मैं सारा माजरा समझ चुका था लेकिन किसी से कह नहीं सकता था। चुपके से पेड़ से नीचे उतरा और वापस घर की ओर बढ़ते बढ़ते आकर के नहर के किनारे पहुंच गया। यहां पर दो-तीन दिन रहा। एक दिन जब मैं नहर के किनारे की झाड़ियों में बैठा हुआ था तो मैंने देखा कि कुछ लोग नहर पर बैठकर ताश खेल रहे थे और आपस में बात कर रहे थे कि बिलावजह दुष्ट लोगों ने वन विभाग और पुलिस को परेशान कर दिया। यह तो दो पैर वाले बाघ की घटना थी। चार पैर वाले बाघ को ढूंढने के चक्कर में कई एकड़ गन्ने की फसल भी बर्बाद कर दी। आज जाकर वह गायब लड़की और गायब करने और बाघ की आवाज निकालने वाले लड़के पकड़े गए हैं। मैंने यह खबर सुनकर सुकून की सांस ली।

मैंने वहां से निकलना उचित समझा और वापस नहर पार करके जंगल में आ गया। आज हमने दो चीज के लिए कसम खाई है कि एक तो किसी हिरण का पानी में पीछा नहीं करेंगे, दूसरा इंसान बनने के बारे में नहीं सोचेंगे। हम तो साहब मुफ्त में बदनाम है असली जानवर तो इंसान है। पानी में डूबने का आज आठवां दिन है लेकिन आज भी मेरा अंग अंग टूट रहा है ।हालांकि लहरों से टकराते हुए 12 किलोमीटर की यात्रा करके सुरक्षित बच जाने की खुशी ही हो रही है।

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