देहरादून: विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है उत्तराखंड की राजनीति भी दिन प्रतिदिन दिलचस्प होती जा रही है। चाहे वह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी हो या फिर विपक्ष में बैठी कांग्रेस, उठापटक का दौर दोनों तरफ जारी है। कांग्रेस में हरीश रावत के ट्विटर बम को अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से खबर आने लगी कि उनके कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत नाराज हो गए हैं और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि हरक सिंह रावत ने वाकई इस्तीफा दिया भी था या फिर उनकी नाराजगी को मीडिया में इस्तीफे के रूप में प्रचारित कराया गया।
इस पूरे घटनाक्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भारतीय जनता पार्टी के लिए और अपनी सरकार के लिए एक संकटमोचक के रूप में उभर कर सामने आए हैं। सूत्र बताते हैं कि हरक सिंह रावत जैसे ही कैबिनेट बैठक छोड़कर बाहर निकले, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तुरंत सक्रिय हो गए और अगले कुछ घंटों के भीतर ही अपने एक विधायक के जरिये उन्होंने नाराज़ हरक सिंह से संपर्क साध लिया। हरक सिंह की नाराजगी कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज खोले जाने को लेकर थी, अतः मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से वार्ता की और उसके बाद हरक सिंह से बात करके यह सुनिश्चित किया कि उनकी मांग पर सरकार समुचित कार्रवाई करने जा रही है।
कम विधानसभा सीटों वाले छोटे राज्यों में पार्टियों को राजनैतिक क्राइसिस मैनेजमेंट वाले नेताओं की बहुत आवश्यकता होती है। हरक सिंह की नाराजगी के ठीक चौबीस घंटे बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और हरक सिंह रावत, मुख्यमंत्री आवास में डिनर टेबल पर साथ थे और दोनों के बीच लगभग तीन घंटे तक एकांत वार्ता चली। खास बात यह है कि हरक सिंह रावत और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दोनों ही सैनिक पुत्र हैं और इसके चलते यह राजनैतिक डिनर थोड़ी ही देर में व्यक्तिगत डिनर में तब्दील हो गया। इसके बाद देर रात हरक सिंह का मुस्कुराता हुआ चेहरा सभी मीडिया चैनलों पर चमक रहा था।
हरक सिंह प्रकरण के बाद उत्तराखंड की राजनीति में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कद और बड़ा हुआ है। अपने छह महीने से भी कम के छोटे से कार्यकाल में पुष्कर धामी की छवि एक सौम्य, शिष्ट और काम करने वाले नेता की बनी है और उत्तराखंड की जनता को यह भी लग रहा है कि प्रदेश को एक लंबे अरसे से ऐसे ही नेता की आवश्यकता थी जिसे लाने में भारतीय जनता पार्टी ने थोड़ी सी देरी कर दी।
भारतीय जनता पार्टी के पास जनसंघ के जमाने से ही संकटमोचक नेताओं की कमी नहीं रही है। पूर्व उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वाजपेयी सरकार के समय में तत्कालीन मंत्री प्रमोद महाजन या फिर आज के दौर में कई राज्यों में भाजपा को सत्ता दिलाने वाले गृह मंत्री अमित शाह, इन सब ने और तमाम ऐसे नेताओं ने कई बार भारतीय जनता पार्टी की सरकारों को संकट से बाहर निकाला है और पार्टी को यहाँ तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है।
पिछले छह महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री धामी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से प्रदेश और देश को परिचित कराया है और ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए वह एक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट साबित होने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री धामी की छवि तथा कार्यशैली और जनता का धामी के प्रति मजबूत होता विश्वास ही वह सबसे बड़ा कारण है जिसने उत्तराखंड की सरकार के प्रति पिछले साढे चार सालों की एंटी इनकंबेंसी को काफी हद तक कम कर दिया है और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में दोबारा सत्ता हासिल करने की दौड़ में काफी मजबूत नजर आ रही है।
( लेखक राजनैतिक विश्लेषक हैं)