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सुभाष चंद्र बोस गुरुकुल में बनाते थे अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति, क्रांतिकारियों का लगता था जमावड़ा

नई दिल्ली: अरावली पर्वत शृंखलाओं के बीच गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की वह इमारत आज भी मौजूद है, जहां बनी गुफा में स्वतंत्रता सेनानी योजनाएं बनाते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बुलावे पर रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारी यहां अक्सर आते रहते थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी श्रद्धानंद महाराज ने 1916 में अरावली शृंखलाओं के बीच गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की स्थापना की थी।

गुरुकुल संचालन समिति के प्रभारी आचार्य ऋषिपाल बताते हैं कि गुरुकुल परिसर में एक गुफा है, जहां स्वतंत्रता सेनानी छिपने के लिए आते थे। कुछ पुराने कागजात हैं, जिनमें इसका जिक्र है। रामप्रसाद बिस्मिल, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु यहां कई बार एकत्र हुए। इस स्थान पर सुभाष चंद्र बोस आठ दिन तक भूमिगत रहे। उस समय यह स्थान अरावली पर्वत के घने जंगलों में था।

सुरक्षा के मद्देनजर बंद कर दिया गया
आजादी के बाद सुरक्षा के मद्देनजर सुरंग को बंद कर दिया गया। जहां सुरंग का मुख द्वार रहा होगा, वहां अब संग्रहालय की दीवार है। आचार्य ऋषिपाल बताते हैं कि सुरंग कब और किसने बनाई, ये लिखित प्रमाण उनके पास नहीं है, लेकिन गांव अनंगपुर के बुजुर्ग बताते हैं कि यहां सुरंग थी।

‘गुरुकुल से लालकिला तक जाती थी सुरंग’
गुरुकुल संचालन समिति का दावा है कि यहां से एक सुरंग दिल्ली के लालकिला तक जाती थी। भगत सिंह की ओर से दिल्ली की असेंबली में बम धमाके के बाद यहां स्वतंत्रता सेनानियों की गतिवधियां तेजी से बढ़ीं। भारत छोड़ो आंदोलन में इस स्थान को अंग्रेजों के गुप्तचरों से नहीं बचाया जा सका।

गुफाओं में बैठकर आजादी की अलख जगाई
इस गुरुकुल से आर्य समाजी भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे। गुरुकुल के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद और अनेक संतों ने अरण्य की गुफाओं में बैठकर आजादी की अलख जगाई। महात्मा गांधी, स्वामी श्रद्धानंद, पंडित मुंशीराम के कुछ दुर्लभ पत्र और वस्तुएं तथा स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र यहां लगाए गए हैं।

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