महाकुंभ का मौका है, यहां हर धंधा चोखा है
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नौकरी छोड़कर महीने भर रुक गए, महाकुंभ तक यहीं कर रहे बिजनेस
दीप सिंह
प्रयागराज नगर: संगम तट पर जब भीड़ ज्यादा बढ़ने लगी तो लोग नागवासुकी मंदिर के पीछे दारागंज की गलियों से होकर रास्ता खोज रहे थे। वहीं पर टमाटर चाट और गोलगप्पे का एक ठेला लगा हुआ था। भीड़ में से काफी लोग वहीं रुककर चाट खा रहे थे। ठेले पर लगातार भीड़ थी। तभी वहां से गुजरते हुए ठेला लगाने वाले महेश पाल के एक दोस्त ने पूछा-भइया अभी गए नहीं? महेश ने जवाब दिया-अभी एक महीना यहीं रहेंगे। दरअसल, महेश फरीदाबाद में एक होटल में नौकरी करते हैं। महाकुंभ शुरू हुआ तो यहां की भीड़ देखकर उन्होंने घर के पास गली में ही ठेला लगा लिया। बोले-नौकरी में कितना मिलता? ज्यादा से ज्यादा 15 हजार? यहां घर के घर में हैं। एक महीने में 50-60 हजार तो निकल ही आएगा।
यह तो महज एक उदाहरण भर है। महाकुंभ में ऐसे कई लोग हैं जो बाहर नौकरी करते थे लेकिन इस महीने वे नहीं गए। यहीं पर कुछ न कुछ धंधा कर रहे हैं। वजह यह कि यहां इतने लोग रोज आ रहे हैं कि कुछ भी धंधा शुरू कर दें, वह चलना ही है। जिसे कुछ भी आता है, वह बिजनेस यहां कर रहा है। जो भी काम शुरू कर दो, वह चलना ही है। कई नए तरह के बिजनेस भी लोगों ने ईजाद कर लिए हैं। कोई साधन नहीं है तो लोगों ने बाइक पर ही रेस्टोरेंट शुरू कर दिया है। वह भी नहीं है तो घर के बाहर स्टूल रखकर लोग कुछ भी बेच रहे हैं। कुछ नहीं तो चाय ही बनाकर बेच रहे हैं। इनमें से बहुत से ऐसे लो हैं जो पेशे से बिजनेसमैन नहीं हैं। मौका देखकर बिजनेस कर रहे हैं।
दिन में नौकरी शाम को चाय का स्टॉल
दारागंज में ही जीटी रोड से अंदर जाने वाली गली के नुक्कड़ पर एक सज्जन घर के बाहर स्टूल रखकर चाय बेच रहे थे। चाय के साथ कुछ बिस्किट और बन रखे हुए थे। शाम के वक्त पैदल आने वाले उनसे ही चाय पीते और पता पूछते। बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि वह दिन में नौकरी करते हैं। शाम को तीन- चार घंटे चाय बेच लेते हैं। वह कहते हैं कि थोड़ा मेहनत कर लेंगे, तो कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी। घर के काम ही आएगी।
मोबाइल फूड बाइक
मोबाइल फूड वैन तो कई बड़े शहरों का बिजनेस बन गया है। महाकुंभ में इतनी भीड़ आ रही है और जगह-जगह जाम भी है। ऐसे में यहां मोबाइल फूड बाइक देखी जा सकती हैं। इसमें लागत भी कम लगती है और जाम में फंसने का झंझट भी कम है। लोगों ने बाइक के पीछे के हिस्से में फास्ट फूड का सेटअप तैयार किया है। उसी पर इडली, बड़ा, सांभर, मोमोज और चाउमीन तैयार करते हैं। उसे सड़क किनारे कहीं भी रोक लेते हैं। इनके रेट भी ज्यादा नहीं है। मात्रा कम रहती है लेकिन पैदल चलकर आ रहे और भूख से व्याकुल लोगों को 20, 30, 40 रुपये में राहत मिलती है।
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होटलों के कमरे बने डॉरमेट्री
प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु अगर रात में आते हैं और वे कुछ घंटे आराम करना चाहते हैं तो बड़ी समस्या है। होटलों के कमरों का किराया बहुत ज्यादा है। छोटे होटल भी एक रात का 8-10 हजार रुपया मांग रहे हैं। एक-दो बेड के लिए इतना किराया हर कोई देने में सक्षम नहीं होता। ऐसे में होटल वालों और श्रद्धालुओं के आपसी सामंजस्य से एक रास्ता निकला है। कमरे में एक-दो बेड लगाने की बजाय जमीन पर गद्दे बिछा देते हैं। इतने ही किराये में 8-10 लोग रुक लेते हैं। खासकर संगम के नजदीकी इलाकों में यह देखा जा सकता है।
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सामान ढोने वाली ठेलिया बनी सवारी गाड़ी
ऑटोरिक्शा, और ई-रिक्शा तो हर शहर में देखे होंगे लेकिन सवारियां ढोने के लिए यहां पर बालू, मोरंग ढोने वाली ठेलियां काफी चल रही हैं। लोग लम्बी दूरी से पैदल चलकर आते हैं। थक जाते हैं तो संगम तक जाने के लिए कोई साधन खोजते हैं। संगम मार्ग और संगम के अन्य नजदीकी स्थलों पर भीड़ में और कोई साधन नहीं मिलता। वहां पर ये ठेलिया वाले ‘संगम-संगम….’ की आवाज लगाते हैं। एक ठेलिया में पांच से छह सवारी बैठाते हैं। आधा या एक किमी की दूरी पर पैदल के लिए भी बैरिकेडिंग कर रखी है। ऐसे में ठेलिया वाले भी नहीं जा पाते। लोगों को आधा या एक किमी छोड़ते हैं और 100 रुपये सवारी के हिसाब से आधा किमी का 500-600 रुपये कमा लेते हैं।
भीख मांगकर बिजनेस
महाकुंभ मेले में तरह-तरह के भिखारी तो मिल ही जाएंगे। भीख मांगने के साथ ही वे एक नया बिजनेस भी कर रहे हैं। दरअसल, भीख में उनके पास एक रुपये से लेकर 20 रुपये तक की रेजगारी बहुत आ जाती है। अब इस रेजगारी को उन्हें नोटों में कन्वर्ट करना है। ऐसे में परिवार के कुछ लोग भीख मांगते हैं और एक-दो बच्चों को रेजगारी को नोट में कन्वर्ट करने के लिए सड़क किनारे बैठा देते हैं। सड़क किनारे यह नजारा साफ देखा जा सकता है। कन्वर्ट करने के काम में ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं। पहले से छांटकर उन्होंने एक, दो, पांच, 10 और 20 के सिक्कों के अलग-अलग ढेर लगा रखे हैं। वे ‘50 के 45….’ या ‘10 के 9…’ आवाज लगाते रहते हैं। इनमें भी दो तरह के हैं। कुछ 50 रुपये के बदले 45 दे रहे हैं। ये भीख मांगकर बिजनेस कर रहे हैं। किसी को बिजनेस नहीं करना लेकिन इतनी रेजगारी की जगह बंधे हुए नोट चाहिए तो वे 50 के 50 या 10 के 10 की आवाज लगा रहे हैं।
बाइक वालों की ‘लूट’ की चर्चा
पूरे प्रयागराज में बाइक वालों की ‘लूट’ की बहुत चर्चा है। दुकानदार से लेकर वहां के आम लोग और मेले में आने वाले श्रद्धालुओं से यह बात सुनी जा सकती है कि बाइक वाले लूट रहे हैं। दरसअल, जब से प्रयागराज में बड़े वाहन प्रतिबंधित हैं और जाम भी लग रहा है तो लोगों को दूर जाने के लिए इनका ही सहारा है। कहीं भी जाइए, ये बाइक वाले 1000 रुपये सवारी से नीचे बात ही नहीं करते। एक बाइक पर दो सवाल बैठाते हैं।
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120 सेकंड लटकने के 100 रुपये
संगम मार्ग और आसपास जगह-जगह लोहे के दरवाजे के फ्रेम के आकर की डिवाइस लिए लोग मिल जाएंगे। इस पर लिखा है कि 120 सेकेंड लटकने पर 1000 रुपये मिलेंगे। जो 120 सेकंड पूरे नहीं कर सका, उसे 50 रुपये जमा करने होंगे। होता यह है कि 100 में से एक-दो लोग ही लटक पाते हैं। इन पर लगातार भीड़ लगी रहती है। ज्यादातर लोग 50 रुपये देकर ही जाते हैं।
सामान्य बिजनेस में भी खूब कमाई
इतना बड़ा मेला है तो बाकी सामन्य बिजनेस तो चल ही रहे हैं। मेले में इतनी भीड़ आ रही है तो हर कोई खाना तो खाएगा ही। ऐसे में खाने-पीने का सामान शहर से लेकर मेला स्थल तक मिल जाएगा। इसके अलावा मेले में पूजा पाठ का सामान, रुद्राक्ष की माला और अन्य सामग्री भी लोग खरीदते हैं। पानी भरने के लिए खाली केन और बिछाने के लिए प्लास्टिक की पन्नी भी खूब बिक रही हैं। ये समाान्य बिजनेस जो भी खोलकर बैठ जा रहा है, खूब चल रहा है। हर सामान का रेट यहां ज्यादा बताते हैं। तयतोड़ खूब करना पड़ता है।
समाप्त