BJP के इस बड़े नेता ने मुलायम को दिया था ‘सपा’ के नाम का सुझाव; जज बनने से किया इनकार
प्रयागराज : यूपी विधानसभा के पूर्व स्पीकर और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल रहे केशरीनाथ त्रिपाठी का 88 साल की उम्र में रविवार को निधन हो गया। उनके निधन पर भाजपा ही नहीं विपक्षी दलों के नेताओं ने भी शोक व्यक्त किया। बीजेपी के इस बड़े नेता को यूपी की राजनीति में उनकी अलग शख्सियत के लिए याद किया जा रहा है। केशरी नाथ त्रिपाठी को सभी राजनेताओं के साथ मधुर व्यक्तिगत रिश्तों के लिए जाने जाता था। इसका एक उदाहरण रहा समाजवादी पार्टी का नामकरण।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता विनोद चंद्र दुबे बताते हैं कि जनता दल से अलग होने के बाद मुलायम सिंह यादव ने 1992 के शुरू में नई पार्टी बनाने का निर्णय ले लिया था। पार्टी के नामकरण को लेकर ऊहापोह था। मुलायम सिंह यादव पार्टी के नाम में सोशलिस्ट रखना चाहते थे। नामकरण से पहले मुलायम सिंह यादव ने केशरी नाथ त्रिपाठी से सलाह मांगी। केशरी नाथ त्रिपाठी ने पार्टी के नाम में सोशलिस्ट की जगह समाजवादी रखने की सलाह दी। केशरी नाथ त्रिपाठी का तर्क था कि सोशलिस्ट के नाम से पूर्व में कई पार्टियां रही हैं। 90 के दशक में भी कुछ पार्टियां सोशलिस्ट के नाम से सक्रिय थीं। केशरी नाथ ने मुलायम सिंह यादव से कहा कि सोशलिस्ट के स्थान पर समाजवादी लोगों को आकर्षित करेगा। मुलायम सिंह यादव ने केशरी नाथ के सुझाव पर नई पार्टी का नाम समाजवादी पार्टी रखा।
केशरी नाथ त्रिपाठी ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कई भूमिकाएं निभाईं। सबमें उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। वह लीक से हटकर चलने वालों में थे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर केशरी नाथ त्रिपाठी ने पुलिस की लाठी चार्ज से घायल अपने विधायक सलिल विश्नोई (वर्तमान में एमएलसी) को लेकर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से मिलने मुख्यमंत्री आवास गए। वहां मुख्यमंत्री ने जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। इसके बाद मुलायम ने प्रतिनिधिमंडल को नाश्ता कराया। इसमें रसगुल्ले भी रखे गए। अगले दिन मीडिया में मुलायम के रसगुल्लों की खूब चर्चा हुई तो उन्होंने इसे मेहमान व मेजबान के बीच का शिष्टाचार बताया। कहा कि सपा से भाजपा व उनके वैचारिक मतभेद जैसे हैं वैसे ही रहेंगे।
स्पीकर के तौर उनके कई निर्णयों पर विवाद हुआ। सवाल उठे लेकिन उन्होंने उसका बचाव किया। भाजपा विधायक के तौर पर वह विधानसभा अध्यक्ष बने लेकिन मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बनने पर अपनी पार्टी के किसी विधायक को अध्यक्ष बनाने के बजाए उन्हें ही अध्यक्ष बने रहने दिया। इसे केशरी नाथ त्रिपाठी के उस निर्णय से जोड़ कर देखा गया कि उन्होंने बसपा के 13 विधायकों के खिलाफ कार्यवाही याचिका पर कोई निर्णय नहीं लिया। जब दलबदल के लिए जरूरी विधायक हो गए तब उस बागी गुट को मान्यता दे दी। इस तरह मुलायम सिंह यादव की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर उन्होंने मई 2004 में अध्यक्ष पद छोड़ दिया और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने।
1980 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पद स्वीकार करने का प्रस्ताव आया था, जिसे पं. केशरीनाथ त्रिपाठी ने अस्वीकार कर दिया था। तब केशरीनाथ ने कहा कि वह वकालत ही करना चाहते हैं। 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केशरीनाथ त्रिपाठी को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में मान्यता दी। उनको सिविल, संविधान तथा चुनाव विधि की विशेषज्ञता भी हासिल थी। वह चुनाव मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे। उन्होंने उक्त विषय पर एक पुस्तक भी लिखी। उन्हें 1992-93 में लोकसभा अध्यक्ष की ओर से उन्हें विधायिका, न्यायपालिका सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध रखने वाली समिति का सदस्य नामित किया गया था। केशरीनाथ ने 1956 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी थी। वह लंबे समय तक जगदीश स्वरूप के जूनियर थे। वर्ष 1987-88 एवं 1988-89 में हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।
पं. केशरी नाथ त्रिपाठी के पूर्वज ग्राम पीड़ी (पिंडी) तहसील सलेमपुर के मूल निवासी थे, जो पहले गोरखपुर जनपद का अंग था। कालान्तर में वहां से प्रयागराज आकर परिवार के कुछ लोग ग्राम नीवां में बस गए। 1850 में पितामह पं. मथुरा प्रसाद त्रिपाठी ग्राम नीवां से शहर चले आए। मथुरा प्रसाद 1876 में हाईकोर्ट में कार्यरत हो गए। केशरी नाथ के पिता पं. हरिश्चन्द्र त्रिपाठी भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 1913-1914 में कार्यरत रहे और 1949 में सेवानिवृत्त हुए। 1980 में उनका देहान्त हो गया। केशरी नाथ की माता का नाम शिवा देवी था। केशरी नाथ त्रिपाठी का विवाह 1958 में काशी की सुधा त्रिपाठी से हुआ था। वह अपने पीछे एक पुत्र और दो पुत्रियों का भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।