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आज है मंगल पाण्डेय की 165 वीं पुण्यतिथि, जानें 1857 की क्रांति के ‘महानायक’ की कहानी

नई दिल्ली. दोस्तों, आज आज मंगल पाण्डेय (Mangal Pandey) की पुण्यतिथि (Death Anniversary) है । बता दें कि, आज ही के दिन यानी 8 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। आज मंगल पाण्डेय के बलिदान के 165 साल बाद भी युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। वे सन् 1857 की क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले वीर सिपाही थे।

वैसे तो भारत की आजादी के लिए कई वीरों ने अपने जान की कुर्बानी दे दी थी। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा भी शख्स था जिसने आजादी की क्रांति का बिगुल 1857 में ही फूंक दिया था। इसीलिए आज जब भी देश के आजादी की बात होती है तो मंगल पाण्डेय का नाम जैसे सबके जुबान पर खुद ब खुद ही आ जाता है।

कब हुआ था जन्म

हो भी क्यों न आखिर मंगल पाण्डेय ही वो पहले वीर थे अंग्रेजो के खिलाफ लड़े थे। पता हो कि मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था और अंग्रेजी हुकूमत के सामने अपने देश की आजदी वापस लेने के लिए पहली चुनौती पेश करते हुए साल 1857 में 8 अप्रैल को शहीद हुए थे।

बता दें कि मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए भी प्रेरित किया था। लेकिन उस वक्त किसी ने भी मंगल पाण्डेय का साथ देने सामने नहीं आया था । तब आखिरकार मंगल पाण्डेय अकेले ही एक घयल शेर की तरह अंग्रेज़ों के खिलाफ भिड़ गए थे ।

क्या कहता है इतिहास

इतिहास के अनुसार 1850 के दशक में सिपाहियों के लिए नई इनफील्ड राइफल लाई गई थी। लेकिन इसमें लगने वाली कारतूसों को मुंह से काटकर राइफल में लोड करना होता था। वहीं जब बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाहियों को पता चला कि इनमें लगने वाली कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। यह जानने के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्ग के सिपाहियों ने नाराजगी जताई।

इसी बात पर 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया, उस वक्त वह बंगाल के बैरकपुर छावनी में तैनात थे। उन्होंने न केवल कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ़ मना कर दिया बल्कि साथी सिपाहियों को ‘मारो फिरंगी को’ नारा देते हुए सैन्य विद्रोह के लिए प्रेरित किया। उसी दिन मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अफसरों पर भी हमला कर दिया था ।

हालाँकि बाद में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया और उन्होंने अंग्रेज अफसरों के खिलाफ अपने विद्रोह की बात स्वीकार की। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और तारीख तय की गई 18 अप्रैल।लेकिन बगावत के डर से फिर मंगल पाण्डेय को 10 दिन पहले ही यानी 8 अप्रैल को ही उन्हें फांसी दे दी गई। लेकिन तब तक मंगल पाण्डेय देश को जगा चुके थे। इस घटना के बाद सैन्य बगावत हुई जिसने बाद आजादी के पहले संग्राम का उदय हुआ भारत में ये भरोसा पैदा हुआ कि अंग्रेज़ों को हराना संभव है । इस सैन्य विद्रोह के 90 साल बाद भारत को आज़ादी मिल गई।

बलिदान नहीं भूलेंगे हम

तो दोस्तों देखा आपने, देश की आने वाली पीढ़ियां आराम से आजाद हवा में सांस ले सकें और उनका भविष्य हर लिहाज से सुरक्षित हो, इसके लिए वैसे कई वीर नौजवानों ने देश के लिए कुर्बानी दे दी। लेकिन से ही एक क्रांतिकारी या कहें आजादी कि पहली चिंगारी से मशाल जलाने वाले मंगल पाण्डेय ही तो थे । जी हाँ, शहीद मंगल पाण्डेय के बलिदान को ये देश कभी नहीं भूलेगा ।

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