केरल में वेस्ट नील वायरस का खतरा
नई दिल्ली: हाल ही में दक्षिण भारतीय राज्य केरल के त्रिशूर में एक 47 वर्षीय व्यक्ति की वेस्ट नील वायरस के चलते हुई मौत के बाद केरल का स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर है। इससे पहले वर्ष 2019 में केरल के ही मालापुरम में एक सात वर्षीय बच्चे में वेस्ट नील वायरस के लक्षण देखे गए थे जिसके बाद उसकी मौत हो गई थी।
वेस्ट नील वायरस एक मच्छर जनित बीमारी है जो कि सिंगल स्ट्रेन्डेड आरएनए वायरस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह फ्लेविवायरस कुल से संबंधित है। यह बीमारी मुख्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वीपीय क्षेत्रों में पाई जाती है। इसकी खोज पहली बार 1927 में युगांडा के पश्चिमी नील उप-क्षेत्र में की गई थी।
वेस्ट नील वायरस का पहला गंभीर प्रकोप 1990 के दशक के मध्य में अल्जीरिया और रोमानिया में हुआ था। यह वायरस संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 1999 में सामने आया। उस वर्ष न्यूयॉर्क में 62 मनुष्य, 25 घोड़े और अनगिनत पक्षी इस वायरस से ग्रसित पाए गए थे।
तब से कम-से-कम 48 राज्यों में वेस्ट नील वायरस से प्रभावित लोगों की 40,000 से अधिक रिपोर्ट्स प्राप्त की गई हैं और यह अमेरिका में मच्छरों से मनुष्यों में फैलने वाला आम वायरस है।
वेस्ट नील वायरस के लक्षण :
वेस्ट नील वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों में वेस्ट नील वायरस का या तो कोई लक्षण नहीं दिखता है या हल्का बुखार हो सकता है। इसमें सिरदर्द, तेज़ बुखार, थकान, शरीर में दर्द, उल्टी, कभी-कभी त्वचा पर चकत्ते और लसीका ग्रंथियों (Lymph Glands) में सूजन आ सकती है।
यह वायरस किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है। हालाँकि, 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और कुछ प्रत्यारोपण के रोगियों के वेस्ट नील वायरस से संक्रमित होने पर गंभीर रूप से बीमार पड़ने का अधिक खतरा होता है।
वेस्ट नील वायरस मनुष्यों में एक घातक न्यूरोलॉजिकल बीमारी का कारण बन सकता है। वर्तमान में वेस्ट नील वायरस के लिये कोई टीका (Vaccine) उपलब्ध नहीं है।