उत्तर प्रदेशज्ञानेंद्र शर्मादस्तक-विशेषराज्यलखनऊस्तम्भ

तेरी खातिर क्या क्या न किया

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ : उत्तर प्रदेश की सरकार ने जब पिछली 25 मार्च को पान मसाला पर प्रतिबंध लागू किया तो इसका कारण बताते हुए यह कहा था कि इसके उपभोग से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा था। अभी जबकि प्रदेश में 3 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हैं और 64 मौतें हो चुकी हैं- पिछले 24 घंटों में प्रदेश में संक्रमण से मरने वालों की संख्या 60 से 64 हो गई है और संक्रमित लोगों की संख्या 132 बढ़़ गई, देश भर में 30 अप्रैल के बाद से संक्रमण की दर 60 फीसदी बढ़ गई है, राज्य सरकार को लगता है कि अब पान मसाला से प्रतिबंध हटाना सेफ है-सुरक्षित है। सो उसने 6 मई के प्रभाव से 42 दिन पहले लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया।

क्यों हटाया यह प्रतिबंध?

सरकार का सीधा उत्तर हैः इससे उसे 400 करोड़ रुपए की रुकी हुई आय फिर से मिलने लगेगी। एक मोटे अनुमान के अनुसार सरकार को प्रदेश में बनने वाले पान मसाले से 2 से ढाई करोड़ और बाहर से आने वाले पान मसाले से दो सौ करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होती है जो मार्च महीने में लागू किए गए प्रतिबंध से बंद हो गई थी। गंभीर आर्थिक संकट में घिरी राज्य सरकार अपनी आमदनी बढ़़ाने को बेचैन है और जो उपाय मिल रहा है, वही कर रही है। पहले उसने शराब खोली, फिर उसके दाम में बढ़ोतरी की। शराब खोली ही आमदनी बढ़़ाने के लिए थी और अब उसके दाम बढ़़ाने की वजह फिर यही है। हर तरह की शराब के दामों में बढ़ोतरी से उसे 2350 करोड़ रुपए सालाना की अतिरिक्त आय होने लगेगी। यानी पान मसाले के 400 करोड़ के अलावा यह 2350 करोड़- यानी कुल 2750 करोड़- एक झटके में और वह भी उन वस्तुओं को जनता में बेचे जाने से जो सरकार की ही घोषणा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इसके अलावा पेट्रोल- डीजल पर अतिरिक्त वैट लगाने से 2070 करोड़ मिलेेंगे। मतलब यह कि एक दिन में सरकार ने तीन मदों के जरिए लगभग 4800 करोड़ यानी 48 अरब रुपए का अतिरिक्त जुगाड़ कर लिया- वह भी तब जब न तो उसे कोई बजट लाना पड़ा है, न अध्यादेश लगाना पड़ा है और न विधानसभा की बैठक बुलानी पड़ी है।

शराब और पान मसाला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, एक जमाने से सरकार यह चेतावनी छत पर चढ़ कर देती रही है। पता नहीं कितनों से सुना लेकिन उसकी घोषणा से यह तो पता लगता ही था कि जनता द्वारा चुनी गई जनप्रिय सरकार को अपनी जनता के स्वास्थ्य की कितनी फिक्र है। सो उसने दारू और पान मसाला बेचने की अनुमति के साथ ही उसके नुकसान के बारे में भी बता दिया था। अब हे जनता, तुम जानो तुम्हरा काम जाने।

वरना यह कमाल की बात है कि नहीं कि कैरोना का डर दिखाकर पहले शराब बंद की और पान मसाला पर रोक लगा दी और अब कैरोना से चल रहे युद्ध के बीचोंबीच ही दोनों से रोक हटा दी। सरकार कह सकती है कि युद्ध और प्यार में सब कुछ जायज होता है सो युद्ध के बीच अपने खजाने की खस्ता हालत को ठीक करना, उसे नए सिरे से सुसज्जित करना हमारी सामरिक रणनीति है। सरकार ने अपने आदेश में कहा भी है कि पान मसाने से प्रतिबंध कटाने से कैरोना के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन साथ ही सरकार ने दो बातें साफ कर दीं। एक तो यह कि पान मसाला खाकर थूकना मना होगा और दूसरे यह कि 1 अप्रैल 2013 को गुटखा यानी तम्बाकू सहित पान मसाले पर रोक यथावत जारी रहेगी। थूकोगे तो सख्त सजा होगी। यानी गुटखा खाओ और गुटका लगा जाओ।

दरअसल जब से गुटखा पर प्रतिबंध लगा है, उसके प्रेमियों को एक साथ दो पाउच खरीदने पड़ रहेे थे। एक पान मसाले का और दूसरा तम्बाकू का। होता यह था कि पहले जहॉ उसके प्रेमी एक पाउच लेकर उससे गुटका निकालकर उसे सड़क पर फेंक देते थे, अब वह ऐसे दो पाउच उनमें से पान मसाला और दूसरे से तम्बाकू निकालकर सड़क पर फेंकते हैं। पहले जहॉ एक पाउच की गंदगी सड़क पर फैलती थी, अब दो पाउच की गंदगी फैलती है। मतलब यह कि दो पाउच खरीदकर उनसे उपभोक्ता को गुटखा बनाना पड़ता है यानी गुटखा तो फिर भी इस्तेमाल हो ही रहा है।

यह पान मसाला और गुटखा धुऑ रहित तम्बाकू कहलाता है और पूरी दुनिया में जो नशीले पदार्थ बिकते हैं, उनमें उसका नम्बर चौथा है। लगभग 25 प्रतिशत भारतीय इसका इस्तेमाल करते हैं और 35 प्रतिशत ने सिगरेट, बीड़ी छोड़ उन्हें अपनाया है। इनके विज्ञापनों पर वैसे ही रोक लगी है जैसी कि शराब पर लगी हुई है। मोटे—मोटे अक्षरों में बोतलों व पाउचों पर उसके खतरों के बारे में चेतावनियॉ छापी जानी अनिवार्य हैं। लेकिन कोई असर नहीं होता, वास्तव में उनके उपभोक्ता उन चेतावनियों की तरफ नजर भी नहीं दौड़ाते।

पान मसाला और तम्बाकू खाने से क्या नुकसान होता है, जरा टाटा अस्पताल की एक विशेष रिपोर्ट की तरफ ध्यान दें। यह कहती है कि इससे मुॅह के अंदर केविटीज में, लीवर में, किडनी में, पैनक्रियाज में और जननेन्द्रियों में भारी नुकसान पहुॅचता है, वे बेहिसाब डैमेज होती हैं। इससे बदहजमी, हाइपर टेंशन, मधुमेह और मोटापा भी होता है। इसके साथ ही मुॅह में, पेट में, गले में और आंतों में कैंसर होने का गंभीर खतरा होता है। यह बताया जाता है कि इसके खाने वालों को यदि यह 2-3 घंटे न मिले तो वे बेचैन हो जाते हैं और उनका किसी काम में मन नहीं लगता। वे बीमार पड़ सकते हैं। यह उसके नशे की ताकत दर्शाता है, जो शराब से कहीं ज्यादा है।

और चलते चलते

तो हे शराब, हे पान मसाला सरकार तेरे सामने नतमस्क है, कृपा बनाए रखो, खजाना भरते रहो, बाकी सब अस्पताल देख लेंगे- आखिर कैरोना के बाद की भी अस्पतालों की कोई दुनिया होगी।

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सरकार के प्रतिबंध कैसे लगते हैं, जरा देखें। एक सितम्बर 2019 को राज्य सरकार ने पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन उठाया एक बार भी नहीं। 4 साल में 3 बार प्रतिबंध लगाया। यह बात अलग है कि अपने अफसरों को चेतावनी पर चेतावनी देकर भी वह उसे लागू नहीं करा पाई तो उसने जनता की की तरफ रुख किया।

उससे कहा-कहीं पॉलिथीन का उपयोग होते दिखे तो इस नम्बर पर शिकायत करेंः 7839861314 हमने कई बार यह नम्बर मिलाया पर उसे कोई नहीं उठाता। 7 मई को अपरान्ह दो बजे भी लम्बी घंटी दी पर टेलिफोन के रखवालों ने इस घंटी की कोई परवाह नहीं की। अब अगर लोग कहें कि इस पॉलिथीन नाम की बला से अच्छी तो शराब और पान मसाला है तो कोई गलत बात होगी क्या

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