भाजपा का क्या है 2024 प्लान; जो दे रहा अखिलेश को टेंशन
नई दिल्ली : समाजवादी नेता और मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को पीएम नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया था। यही नहीं मंच पर पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, असेंबली के स्पीकर सतीश महाना समेत भाजपा के कई नेता मौजूद थे। वहीं लंबे समय तक हरमोहन की याद में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में दिखने वाले सपाई नदारद रहे। हरमोहन समाजवादी नेता होने के साथ ही अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष भी रहे थे। यही वजह थी कि सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में 12 राज्यों के यादव जुटे थे। हरमोहन यादव के बेटे सुखराम यादव और उनके पोते मोहित यादव अब भाजपा के सदस्य हैं।
साफ है कि हरमोहन यादव न सिर्फ समाजवादी विरासत के अगुवा थे बल्कि बिरादरी में भी एक साख रखते थे। ऐसे में भाजपा की उनके परिवार से करीबी यादव वोटबैंक को भी एक संदेश देने की कोशिश है, जिससे आने वाले दिनों में अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ सकती है। वह भी ऐसे समय में जब उनकी चाचा शिवपाल यादव से अनबन चल रही है और अपर्णा यादव पहले ही भाजपा की मेंबर हो चुकी हैं। हाल के वर्षों में अखिलेश यादव की पहली चुनावी परीक्षा 2024 के आम चुनाव में होने वाली है और यादवों का थोड़ा भी भाजपा की ओर झुकाव अखिलेश के लिए क्लेश बढ़ा देगा। खासतौर पर आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीटों पर उपचुनाव के नतीजों ने पहले ही ऐसे संकेत दे दिए हैं कि भाजपा गढ़ में भी सेंध लगा सकती है।
अखिलेश की यह टेंशन इसलिए भी दोहरी हो जाती है क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी ने भाजपा से आह्वान किया है कि वह पसमांदा मुसलमानों पर फोकस करे। मुस्लिमों में पसमांदा की आबादी 80 से 85 फीसदी बताई जाती है। कई आंकड़ों में दावा किया गया है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 8 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था। यही वजह है कि अब वह आगे की तैयारियों के लिए उत्साह में है और स्नेह यात्रा जैसे प्रयोगों से यदि उसे मुस्लिमों का स्नेह मिला तो फिर नतीजे बहुत अलग हो सकते हैं। भले ही भाजपा मुस्लिमों का बड़ा वोट न पाए, लेकिन कई वोटकटवा पार्टियों में यदि वह भी हिस्सेदार बन जाए तो भी समीकरण बदलने की संभावना होगी। यही अखिलेश यादव के लिए असली चिंता है, जो यूपी में भाजपा को चुनौती देने वाले अकेले नेता नजर आते हैं।
ओबीसी और दलित वर्ग के बड़े हिस्से पर दावेदारी के बाद भाजपा ने यादव और मुस्लिमों के बीच अपना अभियान तेज किया है। यदि उसे इन वर्गों का थोड़ा भी हिस्सा मिलता है तो फिर यादव बहुल फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, कानपुर देहात, आजमगढ़ जैसे जिलों में समीकरण बदल सकते हैं। इसके अलावा मुस्लिम बहुल मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बहराइच, रामपुर, अमरोहा, संभल, बिजनौर, बलरामपुर, सहारनपुर, हापुड़, बरेली, श्रावस्ती, शामली, मेरठ, बागपत में हालात बदले नजर आ सकते हैं। इन जिलों में मुस्लिमों की आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में सपा इन्हें अपने अनुकूल मानती रही है, लेकिन रामपुर के नतीजों ने उसकी इस दावेदारी को भी कमजोर किया है। यह समाजवादी पार्टी के लिए चेतावनी जैसा है।