कब और क्यों मनाई जाती हैं बुद्ध पूर्णिमा? जानिए महत्व
नई दिल्ली : भगवान गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था, इस महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है। वहीं इतिहासकार मानते हैं कि गौतम बुद्ध का जन्म 563-483 ई.पू. के मध्य में हुआ था। उनका जन्म स्थल लुम्बिनी में हुआ था जो कि वर्तमान में नेपाल का हिस्सा है। महात्मा बुद्ध ने बुध पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में महाप्रयाण यानी देह त्याग किया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है। इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं। बौद्ध धर्म के लोग इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं। उनके धार्मिक स्थलों पर सभी लोग एकत्र होगर सामूहिक उपासना करते हैं और दान देते हैं। बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व सभी को शांति का संदेश देता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन बोधगया जाकर पूजापाठ करते हैं। लोग बोधिवृक्ष की पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष पीपल का पेड़ होता है और इस दिन इसकी पूजा करने का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। वृक्ष पर दूध और इत्र मिला हुआ जल चढ़ाया जाता है। सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ पर जलाया जाता है।
पद्म पुराण में बताया गया है कि गौतम बुद्धि भगवान विष्णु के 9वें और सबसे आखिरी अवतार हुए हैं। वैशास मास की पूर्णिमा का संबंध केवल गौतम बुद्ध के जन्म से ही नहीं है बल्कि इसी दिन उन्हें बोध गया में बोधिवृद्ध के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उस दिन भी वैशाख मास की पूर्णिमा ही थी। उन्हें इस दिन बुद्धत्व की प्राप्ति हुई।
भारत (India) के अलावा बुद्ध पूर्णिमा और भी कई देशों में मनाई जाती हैं। इन देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं जो महात्मा बुद्ध के आदर्शों पर चलते हुए उन्हें अपना भगवान मानते हैं। इन देशों में चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया प्रमुख हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के कुशी नगर जिले में इस अवसर पर मेला लगता है। बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस दिन अपने घर को फूलों से सजाते हैं और दीपक जलाते हैं।