सड़क कब मुक्त होगी राहगीरों के लिये ?
स्तंभ: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित केरल राज्य में अब कोई भी नयी मस्जिद निर्मित नहीं हो पायेगी। यह ममानियत अदालत (26 अगस्त 2022) ने लगायी है। सुदूर दक्षिण तटवर्ती क्षेत्र केरल में मुस्लिम आबादी 26.56 प्रतिशत है। हिन्दू 54.73 फीसदी तथा ईसाई 18.38 हैं। इस कोर्ट के फैसले की पृष्ठभूमि में एक आशंका यह रही कि सांप्रदायिक दंगे हो सकते है। अगर नये मंदिर-मस्जिद ज्यादा बनने की अनुमति दी जाये तो। इसका संदर्भ है कि एक इस्लामी संस्था नुरूल इस्लाम संस्कारिक संगठन ने मुस्लिम-बहुल मल्लपुरम जनपद के नीलाम्बूर क्षेत्र में एक वाणिज्यी भवन को मस्जिद के रूप में अधिकृत कर दिये जाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कुरान की आयात का हवाला देकर अनुरोध किया है कि हर अकीदतमंद मुसलमान को मस्जिद सुगमता से उपलब्ध हो जाना चाहिये। इसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को भी आदेश दिया है कि नये धर्म स्थलों के निर्माण की अनुमति देते समय संबंधित अधिकारी गंभीरता से विचार करें कि मौजूदा मस्जिद से नयी इमारत की दूरी कितनी होगी।
याचिका की सुनवाई के दौरान कारण भी गिनाये। केरल की उपलब्ध भूमि क्षेत्र के बारे में हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन (बालकृष्ण) ने अपने आदेश (27 अगस्त 2022) में लिखा है कि प्रदेश में गांवों की कुल संख्या की तुलना में आस्था केन्द्र दस गुना ज्यादा है। वे अस्पतालों की संख्या के साढे़ तीन गुना अधिक है। इस प्रकार यदि मंदिर-मस्जिद ज्यादा बनते रहे तो एक दौर आयेगा जब जनता को आवास हेतु भूमि ही आवंटित नहीं हो पायेगी। इस स्पष्ट आदेश में उच्च न्यायालय ने बताया कि बिल्कुल अत्यावश्यक परिस्थिति में ही नये निर्माण की इजाजत दी जाये। यह आदेश मुख्य सचिव को दिया गया है। न्यायमूर्ति ने यह भी लिखा कि कुरान मजीद में कोई भी सूरा अथवा पंक्ति नहीं है जो कहती है हर नुक्कड़ और मोड़ पर मस्जिद बनायी जाये।
इस पूरे प्रकरण के मूल में इस समस्या ने विकट रूप ले लिया है। अवैध निर्माण युग आये है केरल ईश्वर-अल्ला के आवरण में। ऐसे अवैध भवनों को तत्काल ध्वस्त किया जाये। उन्हें बंद करा दिया जाये। सभी अवगत हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण द्वारा धार्मिक निर्माण कराने की साजिश कोई नयी नहीं है। यहां उल्लेख अहमदाबाद का है। आजादी के तीन दशक पूर्व वाला। तब सरदार बल्लभभाई झवेरदास पटेल नगर महापालिका के अध्यक्ष थे। शहर यूं ही सकरा था। ऊपर से मंदिर बनवाकर राहगीरों के लिए चलने का स्थान ही मुश्किल से बचता था। सरदार पटेल जिनकी छवि हिन्दुवादी थी ने अतिक्रमित फुटपाथ पर निर्माण को ध्वस्त कराया। जो जैन मंदिर थे उन्हें भूमिगत बनवा दिया। पुजारी तथा भक्तजन सीढ़ी उतर कर दर्शन हेतु जाते थे। यही सरदार पटेल थे जिन्होंने स्वतंत्रता के तुरंत बाद सोमनाथ मंदिर के भग्नावशेष से शिवालय पुर्नानिर्माण की विस्तृत योजना बनायी थी। उसकी निर्माण समिति के अध्यक्ष पद पर नवाब जूनागढ़ को नामित किया था। अवधारणा थी कि महमूद गजनी द्वारा (1026ई) में ध्वस्त किये गये देवालय का दायित्व उन्हीं के सहधर्मावलम्बियों पर डाला जाये। न्याय का यही तकाजा है। जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की तीव्र आलोचना की थी। उनकी राय में सेक्युलर भारत में सरकार को धार्मिक कार्यों से परहेज करना चाहिये।
बात पुरानी है किन्तु नागरिक विकास की दृष्टि से अहम है। लखनऊ तब नयी नवेली राजधानी बनने वाला था। सरकार प्रयाग से अवध केन्द्र में आ रही थी। उस दौर की यह बात है। अमीनाबाद पार्क, (जो तब सार्वजनिक उद्यान था) में पवनसुत हनुमान का मन्दिर प्रस्तावित हुआ। मन्दिर समर्थक लोग कानून के अनुसार चले। नगर म्यूनिसिपलिटी ने 18 मई 1910 को प्रस्ताव संख्या 30 द्वारा निर्णय किया कि अमीनाबाद पार्क के घासयुक्त (लॉन) भूभाग से दक्षिण पूर्वी कोने को अलग किया जाता है। ताकि मंदिर तथा पुजारी का आवास हो सके। तब म्युनिसिपल चेयरमैंन थे आई.सी.एस. अधिकारी अंग्रेज उपायुक्त मिस्टर टी.ए. एच. वेये, जिन्होंने सभा की अध्यक्षता की थी। मन्दिर के प्रस्ताव के समर्थकों में थे खान साहब नवाब गुलाम हुसैन खाँ। एक सदी पूर्व अवध इतिहास का साक्षी रहा यह अमीनाबाद पार्क देश के विभाजन पर पाकिस्तान से आये शरणर्थियों के कब्जे में चला गया। हरियाली की जगह टीन, गुम्मे और सीमेंट छा गये। शहर की अस्मिता मिट गयी। मंदिर बना था सार्वजनिक अनुमति से, मगर बाद में दुकानें बन गयीं निजी लाभ हेतु।
इस्लामी जमात से अपेक्षा है कि उसे अब जागरूक होना चाहिए ऐसे मजहबी सौदागरों से जो फुटपाथ पर मजार के नाम पर कब्जा करेंगे। ऐशबाग की पाक कब्रगाह की जमीन पर काबिज होकर दुकाने खोलेंगे। मुनाफा कमाएंगे। उस रकम को बैंक में जमाकर उसके सूद से तिजारत बढ़ाएंगे। कुराने पाक मंे कहा गया है कि रिबा (व्याज) हराम है, फिर भी इन मुसलमानों को खौफ नहीं होता। उनके समानान्तर उदाहरण मिलते है हरिद्वार से जहां विश्व हिन्दू परिषद के नेता ने नगर पालिका अध्यक्ष होने पर एक होटल को गंगातटीय तीर्थ स्थली में मांस परोसने का लाइसेंस दे डाला था। मगर सूद पर धंधा करने वाले ये मुस्लिम सौदागर कह सकते है कि अरब राष्ट्रों के चालीस तथा विश्वभर के साठ इस्लामी बैंक सवा सौ अरब डालर का व्यापार करते है जिस पर करोड़ों डालर का ब्याज आता है। धंधे के मुनाफे से अकीदत का रिश्ता कैसा?
यहां राजधानी लखनऊ का एक और वाकया है। इसका विवरण दे दूं। प्रतिभा सिनेमा हाल के पास सचिवालय के लिये ही एक इमारत बनी है। नाम है बापू भवन! पुराना रायल होटल था। नया भवन बना तो आगे प्रवेश मार्ग पर एक मजार बन गयी। पूर्वी छोर पर एक शिवालय बना है। इसे मैंने कई बार तुड़वाया था। मगर उस माह मैं लखनऊ के बाहर था। मंदिर चुपचाप बन गया। तब प्रमुख सचिव थे श्री नृपेन्द्र मिश्र। मेरी शिकायत पर तहकीकात शुरू हुयी। मिश्रजी जो नरेन्द्र मोदी के प्रमुख सचिव भी रहे का तर्क बड़ा सटीक था: ‘‘ मंदिर बनवाने वाले की ही सरकार है अतः सड़क की सुविधाहेतु वे अतिक्रमण को हटाये तो उचित ही होगा।‘‘ अभी मिश्रजी नवनिर्मित राम मंदिर (अयोध्या) के प्रबंधन में हैं। मगर आजतक यह शिवालय टूटा नहीं। बल्कि फैलता ही गया। राहगीरों की व्यथा और असुविधा बढ़ती ही गयी। अब आवश्यकता है कि स्वयं भोले शंकर ही अवतार ले और मजहबी डाकूओं को दण्डित करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)