देहरादून (गौरव ममगाईं)। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आदिवासी समुदाय के प्रति विशेष लगाव देखने को मिलता ही रहा है। अबकि बार पीएम मोदी ने उत्तराखंड के कोटद्वार भाबर के एक बोक्सा जनजातीय परिवार को नये साल का बड़ा तोहफा दिया है, क्योंकि पीएम मोदी 15 जनवरी को इस बोक्सा परिवार के साथ बातचीत करेंगे। पीएम मोदी के साथ संवाद की सूचना मिलते ही इस जनजातीय परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं है। खास बात ये भी है कि पीएम मोदी की इस घोषणा के बाद उत्तराखंड की बोक्सा जनजाति चर्चाओं में आ गई है।
क्या आपको पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोक्सा जनजाति को ही क्यों चुना है और बोक्सा जनजाति को क्यों अन्य जनजाति से विशेष माना जाता है ? चलिये आइये जानते हैं बोक्सा जनजाति से जुड़ी खास बातें….
कैसे हुई बोक्सा जनजाति की उत्पत्ति ?
- बोक्सा जनजाति के लोग खुद को पंवार राजपूतों का वंशज मानते हैं, लेकिन इनके उद्गम स्थान को लेकर इतिहासकारों की राय अलग-अलग देखने को मिलती है। कई इतिहासकारों का मानना है कि बोक्सा जनजाति मराठों द्वारा भगाये लोगों के वंशज हैं। जबकि, कई इतिहासकारों का मत है कि चितौड़ पर मुगलों के आक्रमण के समय राजपूत स्त्रियां व अनुचर भाग निकले थे। बोक्सा जनजाति को उनका का वंशज भी बताया गया है।
सामाजिक व्यवस्था कैसी है ?
- बोक्सा जनजाति अपनी सामाजिक व राजनीतिक परंपराओं के लिए भी खासी चर्चाओं में रहती है। सामाजिक परंपराओं की बात करें तो इस जनजाति में एक विवाह और बहु-विवाह का भी प्रचलन रहा है। हालांकि, समय के साथ-साथ बहु-विवाह अब कम देखने को मिलती है।
- इस जनजाति में आज भी संयुक्त परिवार होते हैं, यानी कई भाई आपस में मिलकर रहते हैं, जिस कारण कई परिवार में सदस्यों की संख्या 20 से 30 तक भी देखने को मिल जाती है।
- इस जनजाति की बड़ी विशेषता यह भी है कि यहां भले ही पितृसतात्मक परिवार देखने को मिलते हैं, लेकिन पिता की संपत्ति में बेटे के समान बेटी को भी अधिकार दिया जाता है, जो आज के समाज के लिए बड़ी सीख भी है।
राजनीतिक व्यवस्था कैसी है ?
- अब राजनीतिक व्यवस्था की बात करें तो इस जनजाति में कई परिवारों के समूह को मंझरा का जाता है, जिसका अर्थ गांव होता है। गांव में पारिवारिक विवादों को निपटाने के लिए 5 सदस्यीय समिति की परंपरा भी देखने को मिलती है, जिसे विरादरी पंचायत के नाम से जानते हैं।
धार्मिक व्यवस्था कैसी है ?
- अब धार्मिक परंपराओं की बात करें तो इस जनजाति के लोग शिव, काली मां, लक्ष्मी, दुर्गा व कृष्ण को पूजते हैं। जबकि, स्थानीय देवी-देवताओं में खेड़ी देवी, साकरिया देवता. ज्वाल्पा देवी, हुल्का देवी, चौमुंडा देवी को पूजते हैं।
- इस जनजाति के लोगों की तंत्र-मंत्र, टोटका आदि में भी आस्था रहती है।
अर्थव्यस्था कैसी है ?
- जनजाति का मुख्यतः पशुपालन, कृषि, दस्तकारी व्यवसाय है, इसके अलावा लोग मकान बनाने, लोहा-लकड़ी के उत्पाद बनाने के काम में भी निपुण होते हैं।
उत्तराखंड में बोक्सा जनजातिः
बता दें कि उत्तराखंड में बोक्सा जनजाति ऊधमसिंहनगर के बाजपुर, गदरपुर, काशीपुर व नैनीताल के रामनगर, पौड़ी के दुगड्डा व कोटद्वार, देहरादून के विकासनगर, डोईवाला, सहसपुर में निवास करती हैं। इनकी भाषा भाबरी, कुमय्यां व रचभैंसी है।
अपने राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परंपराओं के कारण बोक्सा जनजाति अन्य जनजातियों से विशेष है। यह जनजाति समय के साथ सामाजिक कुरीतियों को त्यागते हुए सभ्य एवं आदर्श समाज का हिस्सा बनने की ओर अग्रसर है।