उत्तराखंड

जोशीमठ का नाम ‘ज्योतिर्मठ’ रखने की क्यों उठी मांग, जानें इतिहास व कारण

देहरादून (गौरव ममगाईं)। उत्तराखंड में आदिगुरु शंकराचार्य के चार मठों में से एक स्थापित जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ रखने की मांग लंबे समय से उठ रही है। मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने एक बार फिर राज्य सरकार से इस मसले पर गंभीरता से ध्यान देने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक मान्यताओं एवं आमजन की आस्था से जुड़ा है, इसलिए इस पर देरी नहीं की जानी चाहिए।

क्या है जोशीमठ का इतिहास ?, क्यों उठ रही मांग ?

 दरअसल, आदिगुरु शंकराचार्य जी हिंदू धर्म का प्रचार एवं प्रसार करने के लिये भारत भ्रमण पर निकले थे। इस दौरान उन्होंने देश में चार मठों की स्थापना की थी, जहां आज शंकराचार्य पदवी की परंपरा चली आ रही है। इनमें दक्षिण में रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में गोवर्धन मठ (पुरी, उड़ीसा), पश्चिम में शारदाकालिका मठ (गुजरात) व उत्तर दिशा में उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। इन मठों के संचालन के लिए शंकराचार्य पदवी शुरू की गई। आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

इतिहासकारों के अनुसार, आदिगुरु शंकराचार्य उत्तराखंड में नौवीं शताब्दी के प्रारंभ मे आये थे। इस दौरान उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश का शासन था। कत्यूरी राजवंश हिंदू धर्म का अनुयायी था, उन्होंने शंकराचार्य को हिंदू धर्म के प्रचार एवं प्रसार में पूर्ण सहयोग किया था। इसी दौरान शंकराचार्य ने चमोली जिले में ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। यहां शंकराचार्य पदवी की परंपरा चली आ रही है। शंकराचार्य जी ने जब इस मठ की स्थापना की, तो इसका नाम ज्योतिर्मठ ही था, लेकिन कालांतरण में बोली-भाषा व उच्चारण में अंतर होने के कारण इसे जोशीमठ कहा जाने लगा, जो आज भी प्रचलन में है। वहीं, उत्तराखंड के इतिहास से जुड़ी अनेक पुस्तकों में इस क्षेत्र का प्राचीनतम नाम योषि भी बताया गया है।

  बता दें कि ज्योतिर्मठ में बद्रीनाथ धाम का शीतकालीन प्रवास होता है। शीतकाल में बद्रीनाथ भगवान यहीं विराजते हैं, यहीं उनकी पूजा-अर्चना होती है। यहां भगवान विष्णु का प्रसिध्द नरसिंह मंदिर भी है।   

Related Articles

Back to top button