क्या वीर सावरकर ऐसे ही अपमानित किए जाते रहेंगे?
फ़िरोज़ बख़्त अहमद
वीर सावरकर ने कहा था, “कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है!” सावरकर के द्वारा किए गए बलिदानों की असलियत और सच्चाई जाने बना, बिना उनकी कोशिशों की गहराई को समझे और बिना उन पर अध्ययन किए, कोई भी कांग्रेसी, वामपंथी व विपक्षी उन के ऊपर झूठे आरोप लगाते चले आए हैं। एक लंबे अर्से से उनको अपमानित किया जाता रहा है, अर्थात ऐसे व्यक्ति को कि जिसका पूर्ण जीवन भारत की आज़ादी के लिए दी गई कुर्बानियों की सच्ची मिसाल है।
ऐसा व्यक्ति कि जिसको जहरीला भोजन और पानी देकर उसे कांटे की तरह सूखा दिया गया हो, जब उसपर झूठी लांछन लगाई जाती है तो किसी भी सच्चे भारतीय का मन विचलित, मस्तिष्क दुखी और आत्मा तड़प जाती है। लेखक का किसी भी राजनीतिक पार्टी अथवा संगठन से कोई संबंध नहीं है, मगर सावरकर के प्रति उसके मन में आज भी उतनी ही आस्था है, जैसी कि किसी भी स्वतन्त्रता सेनानी के प्रति। उसने “सावरकर प्रतिष्ठान”, मुंबई के स्टेज से ब-बांग-ए-दहल (पुरजोर शब्दों में) एलान किया था कि सरकार वीर सावरकर द्वारा दिए गए बलिदानों के लिए उनको भारत रत्न प्रदान कर उनका स्थान दे, ताकि हम भारत रत्न, महात्मा गांधी की तरह उनको भी “भारत रत्न, वीर सावरकर” कहें! बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि उनका बलिदान सर्वोपरि है। सावरकर का कथन है, “कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुख उठाने में और जीवन भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है; यश-अपयश तो योगायोग की बातें हैं!”
यह तमाम हिंदुस्तानियों के लिए खेद का ही नहीं बल्कि चिंता का विषय है और जैसे अङ्ग्रेज़ी में कहते हैं कि, “इट इज़ हाई टाइम”, अब इसे रोकना होगा और इसके लिए जनता को ही नहीं बल्कि सरकार को भी आगे आना होगा। जहां, अभी हाल ही में कांग्रेस के शहज़ादे व वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने उनका, एक चिट्ठी को लेकर अनादर किया, वहीं कुछ समय पूरक अरविंद केजरीवाल ने एक रैली में ही भाजपाईयों को सावरकर की औलादें कह कर गलिया दिया! आकीर यह कब तक चलेगा? अब तो इस पर रोक लगनी चाहिए।
हैरानी की बात है कि भारत के शूरवीर व स्वतंत्र्य वीर, वीर सावरकर की जन्मस्थली व कर्मस्थली महाराष्ट्र में राहुल ने उन्हें अंग्रेजों का नौकर बता कर को लांछन लगाई है, हालांकि उनकी दादी इन्दिरा गांधी ने एक खत में सावरकर की तारीफ की थी और पंडित जवाहर लाल नेहरू, उनके परदादा ने भी एक गणतन्त्र दिवस पर दिल खोलकर आरएसएस की प्रशंसा की थी। आरएसएस के अनुयायियों का दिल तो इतना बड़ा है कि गुजरात में उनको सम्मान प्रदान करते हुए विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित कर दी है। आरएसएसवादियों बड़े दिल की प्रशंसा इस लिए भी करनी होगी कि 1998 में तब भारत के 10वें प्रधानमंत्री, श्री अटल बिहारी वाजपेई ने हैदराबाद में मुस्लिमों के लिए भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम में उर्दू के चाहने वालों को उनके नाम में गचिबावली में 200 एकड़ के अंदर एक उर्दू विश्वविद्यालय तक तोहफा कर दिया। क्या किसी कांग्रेसी या वामपंथी ने कभी किसी भी आरएसएस के नेता के नाम में कोई स्थान प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त, आरएसएस एक राष्ट्र समर्पित, राष्ट्रवादी व सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास करने वाली हितैषी संस्था है।
जहां तक राहुल गांधी और केजरीवाल साहब और तमाम दूसरे विपक्षियों का प्रश्न है, वे इस बात को गांठ में बांध लें कि ब्रिटिश राज में चिट्ठियों के अंत में सावरकर ही नहीं, गांधीजी, नहरुजी, मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल, सी राजगोगोपालाचारी आदि सभी इस प्रकार से लिखते थे, “आई बैग टू रिमेन, सर, योर हंबल सरवेंट”, अर्थात, मैं आपकी सेवा में सदैव समर्पित, आपका सेवक” (I beg to remain, sir, your humble servant) या, “आई हेव दी औनर टू बी योर सरवेंट”, अर्थात, “यह मेरा सौभाग्य है किमुझे आपकी सेवा करने का अवसर मिला (I have the honour to be your servant) आदि। उस समय फिरंगियों सभी ब्रिटिश कालोनियों में इसी प्रकार पद्दती चला और बना रखी थी कि लोग अपने अंग्रेज़ आकाओं को इस प्रकार से लिखें, जिसका मतलब वास्तव में नौकर होना नहीं बल्कि अपने अफसरों को अत्यंत सम्मान देना था।
जो कांग्रेसी, वामपंथी व विपक्षी सावरकर पर इल्ज़ाम लगते हैं कि उन्होंने अंग्रेजों को माफीनामे लिखे, सरासर झूठ है और काले कौवे के सफ़ेद कहना है, क्योंकि जब 1913 में कुछ स्वतन्त्रता सैननियों को रिहा किया गया, तो सावरकर को यह कहकर नहीं छोड़ा गया कि यह बहुत खरतनाक व्यक्ति है और इसको न छोड़ा जाए, क्योंकि यह किसी भी प्रकार से भारत को आज़ाद करना चाहता है।
हां, इसी सोच के अंतर्गत सावरकर को “डी” कैटेगिरी अर्थात श्रेणी की जेल में रखा जाता था, जहां आतांकी, बलात्कारी और हत्या के क़ैदियों को रखा जाता था। गांधीजी और पंडित जवाहर लाल नेहरू को सदैव ही “ए” श्रेणी की क़ैद में रखा जाता था। जिसको आम तौर से “माफ़ीनामा” कहकर एक लंबे अरसे से सावरकर को बदनाम किया जा रहा है, वह वास्तव में यही चिट्ठी है जिसमें उन्हों लिखा है कि उन्हें बावजूद बढ़िया किरदार निभाने के सबसे निम्न श्रेणी में रखा जात रहा है और यह कि उनको रिहाईदी जाए। वास्ता में सावरकर ने इस चिट्ठी को चाणक्य नीति और जिसके बारे में भारत रंट, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा है कि “हिकमत-ए-अमली” (तरकीब) को अपनाते हुए चिट्ठी को लिखा गया जिसका अभिप्राय था कि किसी भी प्रकार से वह जाईल से बाहर आएं और भारत को आज़ाद करने के अपने अभियान पर अग्रसर हों। वास्तव में सावरकर के मुखालिफीन जिसको माफीनामा कहते है, वह एक तुरुप का पत्ता था, जिसे ये कांगेसी, वामपंथी और विपक्षी अपनी वोट बैंक की सियासत के चलते कभी नहीं समझना चाहेंगे।
चलिए, कांग्रेसियों, विपक्षियों आदि का तो हमेशा से ही धर्म रहा है, हिन्दू महासभा, आरएसएस, जनसंघ, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और किसी जमाने में शिव सेना आदि संगी धड़ों के खिलाफ जाना मगर उन संघियों का क्या कहें जो स्वयं को सघी कहते हैं और सत्ता के मोह में सावरकर को यह कहकर भारत रत्न नहीं दे रहे हैं कि उनके ऊपर महात्मा गांधी की हत्या में शामिल होने का आरोप था। हैरानी की बात है कि कोर्ट की ओर से इस हत्या का इल्ज़ाम उनपर से हट चुका है, मगर फिर भी भाजपा उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रहे है। जब लेखक ने सावरकर पर गांधी स्मृति में सावरकर पर एक विशेष अंक निकालने पर प्रशंसा के लिए इसके अध्यक्ष से भेंट की और कहा कि सावरकर जैसे स्वतंत्र्य वीर को भारत रत्न ड्ने की वह सरकार से गुहार लगाएं, तो उन्हों ने भी कोई विशेष ध्यानाकर्षण इस बात पर नहीं दिया जिसके कारण सावरकर से दुश्मनी रखने वालों की बाँछें खिली रहती हैं और दिल मोटा होता है! लेखक ने 2020 में प्रधानमंत्री कि इस बात के लिए लिखा था कि वीर सावरकर, अर्थात विनायक दामोदरदास सावरकर को भारत रत्न प्रदान किया जाए, मगर आजतक उसके जवाब का इंतज़ार है।
सावरकर को गलियाने वाले इस बात को समझ लें कि भारत की आज़ादी में उनका क़द अगर महात्मा गांधी से ज़्यादा नहीं तो कम भी नहीं है, क्योंकि जो कुर्बानियाँ सावरकर ने 10 साल काला पानी व अन्य जेलों में गंदा पानी पीकर, कॉकरोच, छिपकली, मच्छरों, कीड़ों आदि के साथ पकाए गए खाने खाकर और बैल की जगह दिन में दस किलो तिलों का तेल निकालने के लिए जेल में बैल की जगह जुत कर या पानी के जहाज़ से कूदकर फ़्रांस पहुँचकर दी थीं, गांधीजी या नहरुजी ने ऐसा कुछ नहीं झेला था। लिहाजा, इस स्तम्भ के ज़रिए लेखक कहना चाहेगा कि आज के बाद ये सावरकर के दुश्मन उनके के ताल्लुक से ग़लत बयानी न करें। भारत माता की जय!