दस्तक ब्यूरो। जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े वैश्विक शिखर सम्मेलन कॉप-28 में विश्व के देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में कई बड़ी घोषणाएं की। यूएई में चल रहे वैश्विक शिखर में सभी देशों की सर्वसम्मति से जारी घोषणा-पत्र को ‘यूएई कॉन्सेंसस’ का नाम दिया गया है। इसमें सबसे अहम बात यह है कि सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के लिए कार्बन उत्सर्जन को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है। इसके लिए जीवांश्म ईंधन को त्यागने का बड़ा फैसला लिया है। इसमें पेट्रोल, डीजल भी शामिल है। पेट्रोल-डीजल चालित वाहनों को चलन से क्रमवार बाहर किया जाएगा। वहीं, विद्युत उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता को भी चरणवार तरीके से कम करने का फैसला लिया है। जीवांश्म ईंधन के बजाय पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जल विद्युत जैसे नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर जोर दिया है।
कॉप-28 के मुख्य फैसले
- क्षतिपूर्ति फंड बनाया जाएगा
- ग्रीन क्लाइमेट फंड का पुनर्पूंजीकरण होगा
- अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त प्रणाली की योजना बनाई गई
- नवीनीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने पर जोर
- विद्युत उत्पादन में कोयले पर निर्भरता को कम करना
- जीवांश्म ईंधन को त्यागकर स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जाएगा
भारत में उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में आपदा का कारण बनता है जलवायु परिवर्तन
दरअसल, कई वैज्ञानिक शोध में सामने आया है कि भारत पर भी जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। विशेषकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश जैसे अनेके राज्यों में आपदा का कारण भी जलवायु परिवर्तन को बताया है। इनमें ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलना, ग्लेशियर टूटने के कारण बाढ़, मानसून के कमजोर होने से बाढ़-सूखा, बिजली का गिरना व बादल का फटना जैसी आपदाएं शामिल हैं। बता दें कि 1 दिसंबर को उत्तराखंड के देहरादून में संपन्न हुई छठवें राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन में भी देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिकों ने हिमालयी राज्यों में कार्बन उत्सर्जन को आपदा के लिए जिम्मेदार माना था। इसे गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जीवांश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने व इलैक्ट्रिक वाहन समेत अन्य ऊर्जा विकल्पों को अपनाने पर जोर दिया है।
वहीं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लास्गो सम्मेलन में 2070 तक भारत को कार्बन उत्सर्जन मुक्त बनाने की घोषणा की थी। भारत जैसे अधिक आबादी वाले देश मे जीवांश्म ईंधन की जरूरत को पूरा करना बेहद चुनौतीभरा है, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी नवीनीकरणीय ऊर्जा को लगातार बढावा देकर अपने लक्ष्य को हासिल करने की ओऱ से बढ़ रहे हैं। वहीं, उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों की भूमिका भी उत्साहजनक रही है। हालांकि, छोटे एवं गरीब देशों में जीवांश्म ईंधन को त्यागकर स्वच्छ ऊर्जा को अपनासे बड़ा संकट खड़ा होने की उम्मीद है। विकसित देशों को ऐसे छोटे देशों की मदद को आगे आने की जरूरत है।