एक अध्ययन में पता चला है कि पारिवारिक इतिहास और आवासीय इलाके का पर्यावरण व्यक्तियों के प्रतिरोधी तंत्र के अंतर के लिए जिम्मेदार होता है। यह अध्ययन पत्रिका ‘जर्नल ट्रेंडस इन इम्यूनोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है। इसमें हमारे प्रतिरोधी तंत्र के आकार और इसे क्रियान्वयन के तरीके पर चर्चा की गई है।अध्ययन में पाया गया है कि हवा की गुणवत्ता, भोजन, तनाव स्तर, सोने के तरीके और जीवनशैली की पसंद का पूरा असर संयुक्त रूप से हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर पड़ता है।
बेल्जियम के ट्रांसलेशनल इम्यूनोलॉजी प्रयोगशाला के शोधकर्ता एड्रियान लिस्टन ने कहा, “विविधता सिर्फ हमारे जीन के द्वारा नहीं तय की जाती। यह हमारे जीन के पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया से उभरती है।”यह संक्रमण धीरे-धीरे कोशिका के प्रतिरोधी तंत्र के रूप में बदलाव करते हैं और उन विशेष विषाणुओं के प्रति अधिक संवेदनशील बना देते है। इतना ही नहीं, यह दूसरे संक्रमणों के प्रति भी आपकों आसानी से कमजोर बना देते हैं, जिनसे आपका शरीर कभी आसानी से रक्षा कर लेता था।
लिस्टन ने कहा, “लोग इन संक्रमणों के बिना कोशिका के इन बदलावों को महसूस नहीं कर पाते, यहां तक कभी-कभी खांसी या जुकाम, बुखार के प्रति भी आपका प्रतिरक्षा तंत्र समय के साथ स्थिर होता चला जाता है। यह अपवाद एक व्यक्ति के बुजुर्ग होने पर होता है।”अध्ययन के अनुसार, जब कोई बूढ़ा होने लगता है तो थाइमस नाम का अंग टी-कोशिका का उत्पादन बंद कर देता है। टी-कोशिका संक्रमण के प्रति लड़ने का काम करती है। बिना नई टी-कोशिका के बूढ़े लोगों के बीमार होने की ज्यादा वजहें होती हैं। इस वजह से वैक्सीन का असर कम हो जाता है।