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अंतरिक्ष में इतिहास रचेगा इसरो, लांच करेगा भारतीय स्पेस शटल

Sriharikota: ISRO's seventh navigation satellite IRNSS-1G that would set up regional navigation system for India, a day before its launch from spaceport of Sriharikota on Wednesday. PTI Photo  ISRO (PTI4_27_2016_000221B)

एजेंसी/ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इतिहास में पहली बार अपनी स्पेस उड़ान से इतिहास रचने जा रहा है। अंतरिक्ष में इसरो की पहली बार ऐसी उड़ान होगी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी। इसरो पहली दफा एक ऐसे स्पेस शटल का प्रक्षेपण करने जा रहा है जो पूरी तरह से स्वदेशी है।

इसरो के श्रीहरिकोटा में एक एसयूवी के वजन बराबर और आकार वाले इस अंतरिक्ष यान को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसके प्रक्षेपण की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। जल्द ही इसरो इसे लांच करने जा रहा है।

दरअसल इसरो ने स्पेस शटल को तैयार करने में रिसाइकल टैक्नीक का इस्तेमाल किया है। हालांकि कई देश पुनः इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान के आईडिया को खारिज कर चुके हैं। लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का कहना है कि उपग्रहों को कम लागत में उनकी कक्षा में प्रेक्षेपित करने के लिए यही एक उपाय है।

उनका मानना है कि रॉकेट को रिसाइकल किया जाए और दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाया जा सकता है।भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का दावा है कि अगर उनकी रिसाइकल तकनीक सफल होती है तो अंतरिक्ष प्रक्षेपण की लागत को करीब 10 गुना कम कर सकती है, और इसे 2000 प्रति किलो तक ला सकते हैं।

इसरो के मुताबिक मानसून आने से पहले आंध्र प्रदेश के बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इसरो सेंटर श्रीहरिकोटासे यह स्वदेशी न‌िर्मित रीयूजेबल लांच व्हीकल आरएलडी टीडी स्पेस शटल का प्रक्षेपण करेगा। खास बात यह है कि इसरो पहली बार डेल्टा पंखों से लैस इस अंतरिक्षयान को प्रक्षेपित करेगा।

प्रक्षेपण के बाद यह यान बंगाल की खाड़ी में लौट जाएगा। आरएलवी-टीडी को प्रयोग के बाद बरामद नहीं किया जा सकता है। यान के पानी के संपर्क में आने के साथ ही इसके नष्ट होने की संभावना है। इस यान की डिजाइनिंग तैरने के अनुकूल नहीं है।

इस प्रक्षेपण का मकसद यान को बंगाल की खाड़ी के तट से 500 किलोमीटर दूर ध्वनि की गति से 5 गुना वेग से उतारना है। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक के.सिवान यह हनुमान के बड़े कमद की दिशा में अभी नन्हें कदम हैं।

अंतिम प्रारूप को तैयार होने में कम से कम 10 से 15 साल का समय लगेगा, क्योंकि फिर इस्तेमाल करने लायक रॉकेट को डिजाइन करना बच्चों का खेल नहीं है। स्पेस शटल की संचालित उड़ानों के लिए कोशिश करने वाले चंद देशों में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान शामिल हैं।

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