दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में सोमवार को दिल्ली की पूर्व सीएम दिवंगत शीला दीक्षित को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया। इस शोक सभा में शामिल हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने बताया कि शीला दीक्षित अपने अंतिम दिनों में क्या महसूस करती थीं। उन्होंने कहा कि वह अपने आखिरी दिनों में काफी तकलीफ में थीं। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह बहुत अफसोस की बात है कि जब इंसान चला जाता है तब उसे याद किया जाता है। शीला दीक्षित ने दिल्ली के लिए जो कुछ भी किया, इसका जितना भी विकास वह हुआ वह किसी और सरकार ने नहीं किया। लेकिन उनका योगदान भुला दिया गया, जिससे शीला जी को बहुत तकलीफ हुई।
फारूक अब्दुल्ला बोले कि पिछले कुछ समय से जिस तरह के हालात चल रहे थे जैसी खींचतान चल रही थी, उसे देखकर समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों है? कभी-कभी लगता है कि राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए। कयास लगाया जा रहा है कि अब्दुल्ला ने ये बातें दिल्ली कांग्रेस में चल रही गुटबाजी को लेकर कही हैं।
प्रार्थना सभा की तैयारियों में भी दिखी कांग्रेस की गुटबाजी
पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की प्रार्थना सभा के लिए तैयारी भी दिल्ली कांग्रेस में गुटबाजी कम नहीं कर पाई है। हर चुनाव में कांग्रेसी उनके विकास कार्यों का हवाला देकर वोट मांगते रहे, लेकिन उनके लिए प्रस्तावित प्रार्थना सभा की तैयारी में शरीक होना उन्हें नागवार गुजरता है।
प्रार्थना सभा की तैयारियों पर चर्चा में शरीक होने के लिए भी प्रदेश कार्यालय में वही नेता पहुंचे, जो उनके गुट के माने जाते हैं। प्रदेश कांग्रेस ने 4 अगस्त को प्रस्तावित प्रार्थना सभा की तैयारियों पर विचार के लिए 4 जुलाई को बैठक बुलाई थी। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री, दिल्ली के पूर्व मंत्री, संगठन के सभी लोग आमंत्रित थे।
प्रदेश के तीनों कार्यकारी अध्यक्षों हारुन यूसुफ, देवेंद्र यादव, राजेश लिलौठिया की तरफ से पूर्व सांसदों, पूर्व विधायकों, जिलाध्यक्षों, निगम पार्षदों, डेलीगेट एवं ब्लाक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों को बुलाया गया था।
प्रार्थना सभा की तैयारियों और आगामी रणनीति पर चर्चा के लिए बैठक में तीनों कार्यकारी अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर, पूर्व सांसद रमेश कुमार, दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री मंगत राम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी को छोड़ कम ही दिग्गज पहुंचे।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रदेश का नेतृत्व बदलने के साथ ही गुटबाजी बढ़ जाती है। यह भी देखा गया कि जैसे ही शीला दीक्षित को कमान सौंपी गई, अन्य नेताओं ने प्रदेश कार्यालय से दूरी बना ली थी। यहां तक कि प्रदेश प्रभारी पीसी चाको भी शीला दीक्षित के फैसले को स्वीकार करने को राजी नहीं थे।
कई बार उन्होंने पत्र लिखकर भी दीक्षित के निर्णय में हस्तक्षेप किया। लोकसभा चुनाव के दौरान भी यही दिखा था। चुनाव पार्टी नहीं लड़ रही थी, बल्कि प्रत्याशी अपने दमखम पर लड़ रहे थे। बैठक के बाद पूर्व मंत्री रमाकांत गोस्वामी ने बताया कि बैठक में शीला दीक्षित के अधूरे कामों को पूरा करने पर चर्चा हुई।