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अप्पा जी के जाने से काशी का तो जैसे हीरा ही लुट गया

देश-विदेश भर के प्रशंसक दुखी हैं…काशी का तो जैसे हीरा ही लुट गया हो। यहां के कला से जुड़े लोगों की बात कौन करे सामान्य लोगों के ड्राइंग रूम, व्यापारियों के प्रतिष्ठानों से लेकर मंदिर-मठों के चौबारों तक अप्पा जी की ही चर्चा हो रही है।
नाटी इमली की संजय गांधी नगर कॉलोनी ही नहीं, पूरे के पूरे नाटी इमली मोहल्ले पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। कौन क्या कहे, कहे भी तो कैसे…किसी को शब्द ही नहीं मिल रहे। जिससे भी पूछा सबने या तो आखों में आंसू भर लिए या फिर ‘अप्पा जी’ भर कह कर रह गया।

शैलेंद्र सिंह समेत तमाम लोगों को इस बात का ज्यादा दुख है कि अप्पा जी अभी 11 अक्तूबर को तो नाटी इमली से कोलकाता गईं थीं… न कोई परेशानी, न दर्द-बीमारी…अच्छी भली थीं। शैलेंद्र बताते हैं-जिंदादिल, बेलौस और हर पल उत्सव सा जीने वालीं अप्पा जी को बचपन से ऐसा ही देखा…बल्कि उम्र के बढ़ने के साथ वह और भी ऊर्जावान हो रही थीं।

वह एक माह बाद आठ-दस दिन के लिए कोलकाता से यहां जरूर आतीं। …तो लगता कॉलोनी-मोहल्ले में रौनक आ गई। घर शागिर्दों से…हवाएं सुरों से भर उठतीं। उनसे छोटे-बड़े सब मिलते, वह सबसे मिलतीं।

मोहल्ले की कृष्णा सिंह कहती हैं कि अप्पा की हृदय बड़ा विशाल था। सबका हाल पूछती, चाहे धोबी, सफाई वाला या सब्जी वाला ही क्यों न हो। कृष्णा बताती हैं उनकी याददाश्त बड़ी तेज और संवेदनाएं उससे भी प्रबल थीं।

वह सभी के पूरे परिवार यहां तक कि रिश्तेदारों के बारे में पूछतीं…मान लो कोई बीमार होता…किसी के साथ कोई घटना घटती तो अगली बार जब भी आतीं तो वह भले भूल जाए लेकिन अप्पा याद रखतीं और फिर पूरा हाल खुद नाम ले-लेकर दरियाफ्त करतीं। एक-एक बात मन से सुनतीं, सलाह भी देतीं।

भले चखे मगर, थाली पकवानों से भरी चाहिए

उम्र के कारण भले ही वह ज्यादा खा नहीं पातीं मगर भरी-चुरी रसोईं बहुत भाती। थोड़ा-थोड़ा ही खातीं पर थाली में कई तरह के पकवान होने ही चाहिए। अगर कुछ विशेष का मन कर जाता तो कहीं भी और कितने का भी मिले वह मंगवाती और अपने हाथ से रुच-रुच कर बनातीं।

दूध से बने विशेष व्यंजन बेहद पसंद थे, इनमें रबड़ी, मलाई, मलइयो, कुल्फी, आइसक्रीम आदि। बीते आठ-दस साल से उनके घर में रहकर सेवा करने वाली शांति गुमसुम हैं…काफी कुरेदने पर उन्होंने कहा अप्पा जी जैइसन कउनौ नाहीं, ऊ हमका अपने घरे मा रखलीं..हमहीं कुल ईंहा देखभाल करत हंईं।

अबही आइल रहलीं त हमके एगो साड़ी देहंलिन। हर कुछ न कुछ देत रहलीं। हमके औ हमार बच्चन के बड़ा दुलार करत रहलीं। ..उनके जाय से हमार त जइसन कुल लुटि गइल। 

 

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