आखिर क्यों है स्मृति पर मोदी को इतना भरोसा?
दो वर्ष बीत चुके हैं और स्मृति इरानी ने तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा है। एक जमाने में मोदी का विरोध और बाद में उससे इंकार कर चुकीं
गौर इस पर भी किया जाना चाहिए कि गुजरात से राज्यसभा सांसद स्मृति के मंत्रिपद के दो साल कितने विवादास्पद रहे हैं। अपनी ग्रैजुएशन की डिग्री और फिर उसके बाद अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में किया हुआ कथित कोर्स हो या एचआरडी मंत्रालय और संस्थाओं में आरएसएस बैकग्राउंड से जुड़े लोगों का चयन। टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस को ‘गुरु उत्सव’ नाम से मनाने की पहल या फिर देशभर के स्कूलों में नरेंद्र मोदी का बच्चों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दिया गया भाषण हो। आईआईटी दिल्ली के निदेशक का इस्तीफा हो या मंत्रालय से दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्कालीन वाइस चांसलर दिनेश सिंह के खिलाफ कारण बताओ नोटिस। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वीसी से तनातनी या फिर जेएनयू कैंपस में कथित हेट स्पीच को लेकर मचा बवाल। हां, संसद में मायावती से हुई एक बहस के बाद स्मृति को अपने वाक्यों पर सफाई देनी पड़ी।
बड़ा सवाल यही है कि अपने सभी मंत्रियों पर ‘पैनी नजर’ रखने वाले पीएम नरेंद्र मोदी ने आखिर स्मृति इरानी से जुड़े तमाम विवादों पर क्या रुख अपनाया है? खबरें हैं कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भी इन दिनों स्मृति का नाम पार्टी में चर्चा में है। हालांकि भाजपा के भीतर के लोग बताते हैं कि ‘मामले पर अभी सभी स्टेकहोल्डरों से बातचीत चल रही है, तय कुछ भी नहीं हुआ है।’ अगर भाजपा नेतृत्व स्मृति इरानी को यूपी में बतौर सीएम उम्मीदवार उतारता है तो उनका कद शायद प्रदेश के दूसरे कद्दावर नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों में अचानक से और ऊपर चढ़ेगा और ये तो जगजाहिर है कि इस समय पार्टी की ‘बागडोर’ नरेंद्र मोदी और मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह के हाथों में है, और सभी बड़े ‘फैसले’ उन्हीं के होते हैं।