उंधियू है गुजराती व्यंजनों की स्टार डिश, मौसमी सब्जियों का टेस्टी मिश्रण
मुंबई: मेरी कुकबुक की कीमती किताबों में से एक ‘सैवेयर्स द न्यू क्लासिक कुकबुक’ है, जिसमें लेखक ने बताया कि कैसे बदलता मौसम हर फसल के लिए उपहार लेकर आता है। मौसम में तेज़ी से आने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से यूरोप और अमेरिका के ज्यादातर कुछ भागों में ऐसा होता भी है। यही नहीं, यह भारत में भी देखने को मिलता है। गुजरात में इस समय सुरती पापड़ी, हरा लहसुन, तुअर दाल और जिमीकंद (जो कि इस समय उगाया जाता है) का आगमन होता है, जो कि सर्दी शुरू होने की पहचान और उंधियू के मौसम शुरू होने की घोषणा होती है।
बहुत से गुजराती लोगों के लिए सर्दियों की शुरुआत तब तक नहीं होती, जब तक वह एक गर्म कटोरी उंधियू नहीं चख़ लेते। गुजराती में उंधियू का मतलब है ऊपर-नीचे– ग्रामीण गुजरात में उंधियू पारंपरिक तरीके से पकाया जाता था, वहीं से यह नाम लिया गया है। सर्दियों के कंद (जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियां) और सब्जियों को मिट्टी के मटके में डालकर पकाया जाता है। इसमें सुरती पापड़ी, छोटे बैंगन, बैंगनी रंग के जिमिकंद, शकरकंदी और आलू, बिना बीज की ककड़ी, कच्चे राजगिरी केले (छिलके के साथ), कभी-कभी मटर, मेथी और मेथी मुठिया आदि को डिश में डाला जाता है। ग्रीन मसाला, जिसे हरे लहसुन, नारियल, धनिया और हरी मिर्च से बनाया जाता है भी उंधियू का हिस्सा होती है। सब्जियों पर मूंगफली के तेल की एक परत बिछायी जाती है, ताकि उसमें बहुत से फ्लेवर को एक साथ बंद किया जा सके। इन मिट्टी के मटकों को जमीन के अंदर बनी बड़ी भट्टी पर रख दिया जाता है और इन्हें सूखी पत्तियों से पूरी तरह ढक दिया जाता है, जिन्हें बाद में उतार लिया जाता है।
यूं बनाएं उंधियू
उंधियू बनाने के लिए बहुत-सी तैयारी करनी पड़ती हैं और इसे ज़्यादा मात्रा में ही पकाया जाता है। इसलिए आज कम लोग ही इसे घर में बनाना पसंद करते हैं। जड़ वाली सब्जियों को छीलकर, टुकड़ों में काटा जाता है, जबकि आलू, बैंगन और केले को धोकर लंबाई में चार भागों में काट लिया जाता है। इन्हें नीचे से पूरा नहीं काटा जाता, क्योंकि इनमें हरी चटनी भरी जाती है। सब्जियों को गहरे बर्तन में डाला जाता है, जैसा कि बिरयानी बनाने के लिए इस्तेमाल होता है। वह सब्जी जिसे पकने में ज़्यादा समय लगता है, जैसे पापड़ी को बर्तन में सबसे नीचे रखा जाता है। इसके ऊपर जड़ वाली सब्जियां और फिर बची हुई सब्जियां और सूखा नारियल। आखिर में ऊपर से मेथी-मुठिया डाल दी जाती हैं, जो कि बेसन, मेथी और मसाले के पकौड़े बनाकर फ्राई की जाती हैं। इसके बाद उंधियू को हल्की आंच पर पकने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसमें चटनी, तेल आदि के साथ कई फ्लेवर और उसकी रंगत को बंद कर दिया जाता है- मुलायम- मीठे केले, जिन्हें कठोर जड़ वाली सब्जियों के साथ डाला जाता है। यह सभी सब्जियां मुठिया के साथ मिलकर डिश को एक नया फ्लेवर देती हैं।
उंधियू एक हेल्दी डिश है, जिसे मूंगफली के तेल के साथ पकाया जाता है। इसमें मूंगफली के तेल की कंजूसी का सवाल ही नहीं उठता। इन्हें फूली हुई पूरी और बाजरे की रोटी के साथ खाना बेस्ट रहता है।
उंधियू के प्रकार
पारसी गुजरात में लंबे समय तक रहे, इसलिए वह उंधियू से भली-भांति परिचित हैं। लेकिन उन्होंने उंधियू को मांसाहारी डिश में बदलकर उसे उम्बारियों नाम दे दिया। मैंने अपनी जिंदगी में कभी उम्बारियों का स्वाद नहीं चखा, लेकिन सुना है कि यह बिल्कुल उसी तरीके से बनाई जाती है, जैसे उंधियू। बस, इसमें चिकन और मटन के कबाब अलग से डाले जाते हैं।
गुजरात के कई रेस्तरां में भी उंधियू का नया वर्ज़न उपलब्ध है, जिसे चिकन डालकर बदल दिया गया है। समय के साथ आए कई तरह के बदलाव उंधियू में देखे जा सकते हैं।
इसे हेल्दी बनाने के लिए इसमें कम तेल का इस्तेमाल किया जाने लगा है (और मेरे हिसाब से टेस्ट में भी कमी) और यहां तक की सोअम (बाबुलनाथ में) बिना जड़ वाली सब्जी, प्याज़ और लहसुन के जैन वर्जन ऑफर करता है।
मकर सक्रांति और उंधियू
यह आमतौर पर सर्दियों की डिश है, लेकिन गुजराती घरों में उंधियू पारंपरिक रूप से मकर सक्रांति के दिन बनाया जाता है। मकर सक्रांति अहमदाबाद, सूरत और अन्य शहरों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। अगर आप खुद को इस त्यौहार से जोड़ना चाहते हैं तो अहमदाबाद के पुराने शहरों की ओर रुख करें- साबरमती नदी के दूसरी तरफ। मकर सक्रांति के दिन परिवार के सदस्य और दोस्त घर की छतों पर इकट्ठे होते हैं और वार्षिक पतंग महोत्सव की शुरुआत करते हैं। हर छत पर गानों की आवाज़ और पहले पतंग काटने का कॉम्पिटीशन, त्यौहार का मज़ा दोगुना कर देता है। लंच में उंधियू और फूली हुई पूरी छत पर ही सर्व की जाती है। सूरज डूबने के साथ ही पंतग कॉम्पिटीशन खत्म होता है। ऐसे में माहौल काफी रोमांचक होता है और लोगों में एक जुटता की भावना देखने को मिलती है।
मुंबई उंधियू
उंधियू सूरत की डिश है और इसे पसंद करने वालों का मानना है कि इसे कहीं भी बिना सब्जियों के इस्तेमाल के बिना नहीं बनाया जा सकता- शायद सभी कुछ सूरत से मंगवाया जाता है, लेकिन आप मीलों दूर मुंबई में रहकर इस जादूई डिश को कैसे चखेंगे?
एक तरीका है शहर की सब्जी मंडी में सब्जियों के लिए घूमना। सर्दियां आते ही उंधियू की सामग्री बेचने वाले वेंडर्स (विक्रेता) दिख जाते हैं। ग्रांट रोड पर भाजी गली इन सभी चीज़ों का घर है और इनमें से कुछ बने हुए पार्सल भी बेचते हैं।
चखना है उंधियू का स्वाद, तो यहां जाएं
अगर यह पढ़कर आपको भी उंधियू का स्वाद चखने का मन कर रहा है, तो सुरती-पापड़ी और कंद आदि इकट्ठा करने के लिए इधर-उधर भागने की जरूरत नहीं है। मुंबई के बाज़ारों में आज कई रेस्तरां और स्टोर पर बने हुए उंधियू मिलते हैं। भूलेश्वर में गौरंग और बकुल शाह की शॉप, हीरालाल काशीदास भजियावालासबसे स्वादिष्ट उंधियू सर्व करते हैं। हीराकाशी द्वारा उंधियू बनाने के लिए जरूरी सब्जियां हर सबुह सूरत से मंगायी जाती हैं। और हां, यह जैन वर्जन भी परोसते हैं।
काल्बादेवी में श्री ठाकर भोजनालय में आप बैठ सकते हैं। इसके साथ ही, काल्बादेवी में एक सुरती होटल है, स्वादिष्ट उंधियू का एक और सप्लायर, जो कि मोटी मक्की की रोटी या बाजरा की रोटी के साथ सर्व करता है। अगर आप यहां वीकेंड में जाते हैं, तो यहां आपको ताज़ी बनी उंधियू चखने को मिलेगी।
जैसा कि मैंने ऊपर बताया, बाबुलनाथ मंदिर के दूसरी तरफ सोअम भी लाजवाब गुजराती खाने के लिए जाना जाता है। यह हेल्दी और जैन वर्जन परोसता है। फोर्ट में चेतना अपनी राजस्थानी थाली के लिए जाना जाता है, लेकिन आपको यहां उंधियू भी मिल जाएगा, जो कि तेल में पूरी तरह से डूबा होता है।
पिछले साल से साउथ मुंबई में बनी घर की रसोई 400 रुपये में आपको घर का बना गुजराती खाना डिलीवर करने की सर्विस दे रही है।
आज भारत की खाद्य सामग्री काफी बदल गई हैं। पूरे साल बाज़ार में अंतर्राष्ट्रीय सामग्री ही छायी रहती है। मौसमी और लंबे समय से चली आ रही कुकिंग की धारणा को हम खो चुके हैं। उंधियू पुरानी डिश में श्रेष्ठ है, देसी तरीका- स्थानीय, सर्दियों की सब्जियां, ताज़ी कटी और उन्हें नए तरीके से पकाया गया, जिससे इसका फ्लेवर और बढ़ जाता है।