उत्तराखंडराज्य

कभी शिवजनी के ढोल की थाप पर नाचे थे इंदिरा और नेहरु, आज गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर

उत्तराखंड के भिंलंगना के अखोड़ी ढुंग गांव के रहने वाले शिवजनी के ढोल की थाप ने जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी जैसी हस्तियों को नाचने को मजबूर किया था. यह घटना सन् 1956 की है. शिवजनी तब 19 साल के थे. अब वे 80 के हो चले हैं और गुमनामी और उपेक्षा की जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं.

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कभी शिवजनी के ढोल की थाप पर नाचे थे इंदिरा और नेहरु, आज गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर

उत्तराखण्ड के गांधी और आन्दोलकारी स्व.इन्द्रमणी बडोनी के गांव के पास ही बसे एक गांव ढुंग में एक ऐसे शख्स ने जन्म लिया था,  जिसने न सिर्फ गढ़वाल में बल्कि दिल्ली में भी राज्य की संस्कृति की छाप छोड़ी थी. शिवजनी ने 12 साल में ढोल अपने कन्धों पर थाम  लिया था और पहाड़ की संस्कृति ढोल,दमाऊ, रणसिंह जैसे वाद्य यन्त्रों को साधने और उसे प्रसिद्धि दिलाने के प्रयास में लग गए.

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शिवजनी को देखते ही महान आंदोलकारी इन्द्रमणी बडोनी ने 26 जनवरी सन 1956 में वीर माधो सिंह भण्डारी नृत्य कार्यक्रम में उतरप्रदेश सांस्कृतिक टीम के साथ दिल्ली में प्रतियोगिता करवाई. शिवजनी उन दिनों की याद में कुछ पल के लिए खो जाते हैं और फिर खुरदरी आवाज में बोलना शुरू करते हैं. वे बताते हैं कि मैंने केदार नृत्य में जैसे ही ढोल बजाना शुरु किया तब नेहरु जी नाचने लगे. उन्होंने मुझ सम्मानित भी किया था.

शिवजनी आज गांव की वीरान गलियों और झानियों में  घूमते नजर आते हैं. सामजिक कार्यकर्ता नरेंद्र डंगवाल मानते हैं कि शिवजनी जैसे कलाकार से भावी पीढ़ियों को को सीखने को मिल सकता है. गढ़वाल के कई ऐसे नृत्य नाटक सीखने को मिल सकते हैं, जो शायद अब किसी कलाकार के पास नहीं बचा है.

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