कानपुर से उठी थी ये अनुच्छेद 370 धारा हटाने की आवाज
कानपुर: केंद्र सरकार की तरफ से आज से करीब 2 वर्ष पूर्व जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया था। इस अनुच्छेद के हटाए जाने के बाद से देश के अलावा जम्मू कश्मीर में काफी कुछ बदलाव देखने को मिला है। धीरे-धीरे लोग केंद्र सरकार की इस नई व्यवस्था के अनुसार अपने को ढालने भी लगे हैं।
इस अनुच्छेद के हटने के बाद पहली बार वहां पर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रधानमंत्री मोदी आज जम्मू कश्मीर के हालात को लेकर वहां के अधिकारियों के साथ बैठक करने जा रहे हैं। ऐसे में विपक्षी पार्टियों ने अनुच्छेद 370 को वापस लाने की मुहिम छेड़ी है तो केंद्र की भाजपा सरकार और जम्मू प्रशासन इस अनुच्छेद के हटने के बाद लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाए देने की तैयारी में जुटा है।
भाजपा और दूसरी पार्टियों ने आगामी चुनाव के लिए भी अनुच्छेद 370 को ही अपना मुद्दा बनाया हुआ है। भाजपा और उसके समर्थक इसके हटने से जम्मू-कश्मीर में जो कुछ खुलापन आया, जो बदलाव हुआ, लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उसे लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं। तो विपक्षी अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से जम्मू-कश्मीर की आजादी पर खतरा बताकर वोट हासिल करना चाह रहे हैं। देश में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लेकर शुरू हुए आंदोलन का इतिहास काफी पुराना है। 1952 में कानपुर में आयोजित हुए जनसंघ के अधिवेशन में प्रस्ताव पारित हुआ था। जनसंघ ही बाद में भाजपा के रूप में तब्दील हो गया था।
जनसंघ के अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया गया था कि देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं होने चाहिए। उस अधिवेशन में काफी संख्या में कनपुरियों ने भी हिस्सा लिया। भाजपा सरकार की तरफ से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के समय बड़ी संख्या में लोगों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था।
सांसद सत्यदेव पचौरी ने कहा था कि सरकार का यह ऐतिहासिक फैसला है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब देश के दूसरे राज्यों के लोगों का कश्मीर से गहरा रिश्ता जुड़ गया है। यह गर्व करने का क्षण है। इसी तरह कैबिनेट मंत्री महाना ने भी इसे देश का सबसे बड़ा फैसला बताया। भाजपा नेता दिवाकर शर्मा ने कहा कि जनसंघ के उस अधिवेशन में पास हुआ प्रस्ताव आज लोग याद करके काफी गौरवान्वित हो रहे हैं, जो सपना इतने वर्ष पूर्व देखा गया था वह पूरा हुआ। इस बदलाव के समर्थन में जगह जगह आयोजन भी हुए थे।