क्या नई GST दरें पहले के वैट से अधिक हैं? जनाब! आप भी दूर कर लीजिए ये 7 भ्रांतियां
नई दिल्ली: वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) व्यवस्था को लागू हुए दो दिन हो चुके हैं. इस दौरान इस नई व्यवस्था को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही कुछ भ्रांतियों को राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने तुरंत दूर करने का प्रयास किया. उन्होंने भ्रांतियां दूर करने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा लिया. अधिया ने ट्वीट किया, “जीएसटी के बारे में सात मिथक चल रहे हैं, जो सही नहीं हैं. मैं उन्हें बारी-बारी से बताना चाहता हूं कि मिथ क्या है और वास्तविकता क्या है. कृपया इन पर गौर करें.”
अधिया ने लोगों को अफवाहों के चक्कर में न पड़ने के लिए चेताया और कई सारे ट्वीट में कहा कि जीएसटी का क्रियान्वयन और अनुपालन पारदर्शी होगा. एक भ्रातिं यह फैलाई गई कि व्यक्ति बिजली, पानी जैसी सेवाओं के बिलों का भुगतान क्रेडिट कार्ड के जरिये कर रहा है तो वह दो बार जीएसटी का भुगतान कर रहा है. अधिया ने इसे पूरी तरह से गलत
करार दिया है.
उन्होंने जीएसटी के बारे में चल रहे मौजूद मिथकों को बारी-बारी से स्पष्ट किया :
मिथ 1 : मुझे सभी इनवायस कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही निकालने होंगे.
वास्तविकता : इनवॉइस हाथ से भी बनाए जा सकते हैं.
मिथ 2 : जीएसटी के तहत कारोबार करने के लिए मुझे पूरे समय इंटरनेट की जरूरत होगी.
वास्तविकता : इंटरनेट की जरूरत सिर्फ मासिक जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के लिए होगी.
मिथ 3: मेरे पास प्रोविजनल आईडी है, लेकिन कारोबार करने के लिए अंतिम आईडी का इंतजार कर रहा हूं.
वास्तविकता : प्रोविजनल आईडी आपका अंतिम जीएसटीआईएन संख्या होगा. कारोबार शुरू कीजिए.
मिथ 4: मेरे कारोबार से संबंधित वस्तुएं पहले कर मुक्त थीं, इसलिए मुझे अब कारोबार शुरू करने से पहले तत्काल नए पंजीकरण की जरूरत होगी.
वास्तविकता : आप कारोबार जारी रख सकते हैं और 30 दिनों के भीतर पंजीकरण करा लीजिए.
मिथ 5 : हर महीने तीन रिटर्न दाखिल करने होंगे.
वास्तविकता : तीन हिस्सों वाला सिर्फ एक ही रिटर्न है, जिसमें से पहला हिस्सा कारोबारी द्वारा दाखिल किया जाएगा और दो अन्य हिस्से कंप्यूटर द्वारा स्वत: दाखिल हो जाएंगे.
मिथ 6: छोटे कारोबारियों को भी रिटर्न में इनवॉइस वार विवरण दाखिल करने होंगे.
वास्तविकता : खुदरा कारोबारियों (बी2सी) को केवल कुल बिक्री का सार भरने की जरूरत होगी.
मिथ 7: नई जीएसटी दरें पहले के वैट से अधिक हैं.
वास्तविकता : यह उत्पाद शुल्क और अन्य करों के कारण अधिक लगती है, जो पहले नहीं दिखती थी, और अब जीएसटी में मिला दी गई है और इसलिए दिखाई दे रही है.