घूमने की बेहतरीन जगह हैं लेह, जानिए यहां के रमणीय स्थलों के बारे में…
समुद्र तल से 3524 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शहर हर साहसिक यात्रा करने वाली की ड्रीम लोकेशन है। लेह दिल्ली से लगभग 1000 किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ पहुँचने का सबसे आसान साधन फ्लाइट है लेकिन अगर आप को रास्ते के सुन्दर नज़ारों का आनंद लेना है तो आप बाय रोड भी यहाँ तक पहुँच सकते हैं। हालाँकि रोड गर्मियों के दिनों में ही खुलते हैं। लेह राष्ट्रीय राजमार्ग 1 से श्रीनगर से जुड़ा हुआ है। साथ ही मनाली होते हुए भी यहाँ तक पहुंचा जा सकता है। यहाँ की संस्कृति अपने आप में बहुत अलग है। गर्मियों में यहाँ आयोजित होने वाला उत्सव बहुत ही मशहूर है। आइये जानते हैं लेह के आस पास स्थित कुछ घूमने लायक जगहों के बारे में।
पैंगोंग झील
समुद्र तल से लगभग साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील लेह से 5 घण्टे की दूरी पर स्थित है। फोटोशूट के लिए तो यह जगह जन्नत है। यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग भी की गई है। बारह किलोमीटर में यह झील भारत और तिब्बत के बीच फैली हुई है। इस झील का लगभग दो तिहाई हिस्सा तिब्बत में पड़ता है। यहाँ का तापमान माइनस 5 डिग्री से 10 डिग्री तक बना रहता है। तो अगर आप इन गर्मियों में यहाँ जाने का सोच रहे हैं तो वुलन्स अच्छे से पैक कर लें।
मैग्नेटिक हिल
भारत की यह एक मात्र सड़क है जो चुम्बकीय प्रभाव के कारण वाहनों को अपनी और आकर्षित करती है। यहाँ वाहन न्युट्रल गियर में भी अपने आप आगे बढ़ने लगती है। यह लेह से लगभग साठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
लेह पैलेस
तिब्बत के ल्हासा में बने पोटला पैलेस की तर्ज पर बने इस महल को सत्रहवीं अठाहरवीं सदी में राजा सेंगे नामग्याल द्वारा बनवाया गया था। नवीं मंजिल के इस महल में अभी भी राज परिवार रहता है। यहाँ से जंस्कार श्रेणी को तथा सिंधु नदी को देखा जा सकता है।
चादर ट्रेक
यह भारत के सबसे चुनौतीपूर्ण तथा कठिन ट्रेक में से एक है। यहाँ की ट्रेकिंग जनवरी अंत में शुरू होती है जो मार्च के अंत तक चलती है। यहाँ जमी हुई जंस्कार नदी पर ट्रेकिंग करना बहुत ही रोमांचक अनुभव है। इस पूरे ट्रेक को करने में 6 दिन लग जाते हैं। तो यहाँ ट्रेकिंग करनी है तो आप कम से कम 10 दिन का समय लेकर आएं।
सो मोरीरी
लद्दाख और तिब्बत के बीच स्थित यह भारत की सबसे ऊंचाई पर स्थित झील है। यह लगभग 4595 मीटर की ऊंचाई ओर स्थित है। लेह से 125 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील तक गर्मियों में ही पहुंचा जा सकता है जब बर्फ पिघलने लगती है।