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टूटने की कगार पर पाकिस्तान, बांग्लादेश के बाद अब बनेगा बलूचिस्तान?

pakistan-bangladesh_56b1bb3e30135एजेंसी/ नई दिल्ली। तख्तापलट की आशंका के बीच नवाज शरीफ का सिरदर्द कम होने की नाम नहीं ले रहा। उन पर सेनाध्यक्ष राहिल खुर्शीद ने ऐसा ग्रहण लगाया कि जो भी काम करने की सोच रहे हैं, वो गड़बड़ ही हो रहा है। सबसे बुरी खबर आ रही है बलूचिस्तान से। कुछ महीना पहले जिस इलाके में सेनाध्यक्ष राहिल खुर्शीद ने जीप में बिठाकर नवाज शरीफ को घुमाया था। वही इलाका उनके लिए चुनौती बन गया है। चीन की मदद से बन रहे ग्वादर पोर्ट के इलाके में पिछले कुछ सालों से चल रहा आंदोलन अब बेकाबू होता जा रहा है। इस आंदोलनों को बलूचिस्तान से जुड़े तीन प्रतिबंधित संगठनों से बड़ी चुनौती मिल रही है।

इन तीन संगठनों ने चीन समेत तमाम देशों को धमकी दी है कि अगर उन्होंने ग्वादर में अपना दखल बढ़ाया तो खैर नहीं होगी। इन संगठनों का आरोप है कि ग्वादर में चीन जो भी निवेश कर रहा है उसका असली मकसद बलूचिस्तान का नहीं बल्कि चीन का फायदा करना है। बलूचिस्तान के प्रतिबंधित संगठनों ने धमकी दी है कि चीन समेत दूसरे देश ग्वादर में अपना पैसा बर्बाद ना करें, दूसरे देशों को बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा को लूटने नहीं दिया जाएगा। इन संगठनों ने बलूचिस्तान में काम कर रहे चीनी इंजीनियरों पर हमले बढ़ा दिए हैं।

आपको बता दें कि 790 किलोमीटर के समुद्र तट वाले ग्वादर इलाके पर चीन की हमेशा से नजर रही है। पाकिस्तान को साथ समझौता होने के बाद चीन ग्वादर पोर्ट का विकास कर रहा है। दावा ये कि ग्वादर पोर्ट बनने के बाद पूरे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था संभल जाएगी। लेकिन इन दावों की पोल बलूचिस्तान के लोग खोल रहे हैं। बलूचिस्तान के लोगों का आरोप है कि ऐसे में बलूचिस्तान के लोग और नेता लगातार अपने आंदोलन को धार देते जा रहे हैं। उनका दावा है कि जैसे 1971 में पाकिस्तान से कटकर बांग्लादेश बन गया था उसी तरह एक दिन बलूचिस्तान भी बन जाएगा।

बलूचिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से अलग हो जाना चाहते हैं। आपको बता दें कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के पश्चिम का राज्य है जिसकी राजधानी क्वेटा है। बलूचिस्तान के पड़ोस में ईरान और अफगानिस्तान है। 1944 में ही बलूचिस्तान को आजादी देने के लिए माहौल बन रहा था। लेकिन 1947 में इसे जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। तभी से बलूच लोगों का संघर्ष चल रहा है और उतनी ही ताकत से पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच लोगों को कुचलती रही है।

आजादी की लड़ाई के दौरान भी बलूचिस्तान के स्थानीय नेता अपना अलग देश चाहते थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज और हथियार के दम पर बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया तो वहां विद्रोह भड़क उठा था। वहां की सड़कों पर अब भी ये आंदोलन जिंदा है।

बलूचिस्तान में आंदोलन के चलते पाकिस्तान ने विकास की हर डोर से इस इलाके को काट रखा है। लोगों के दिन की शुरुआत दहशत के साथ होती है। करीमा बलूच की तरह की यहां के कई नेता विदेश में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं और वहीं रहकर पाकिस्तान से आजादी की मांग उठा रहे हैं। अब जब पाकिस्तान में सियासी हालात बिगड़ रहे है तो इन नेताओं ने अपना आंदोलन तेज करते हुए दुनिया भर के देशों से तुरंत बलूचिस्तान से मदद की गुहार लगाई है। मदद की सबसे ज्यादा उम्मीद बलूचिस्तान को भारत से है।

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