ज्ञान भंडार
दाऊद का गुर्गा अरेस्ट, राजन की गिरफ्तारी के जश्न में होने जा रहा था शामिल
दस्तक टाइम्स/एजेंसी: नई दिल्ली: मुंबई. अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के करीबी माने जाने वाले बिल्डर रियाज भाटी को बुधवार देर रात मुंबई एयरपोर्ट पर अरेस्ट कर लिया गया। रियाज के खिलाफ भारत सरकार ने लुकआउट सर्कुलर जारी किया था। उसे इमिग्रेशन चेकिंग के दौरान पकड़ा गया। सूत्रों के मुताबिक, दाऊद ने अपने दुश्मन छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद बड़ी पार्टी रखी थी। इसमें शामिल होने रियाज़ जोहानिसबर्ग जा रहा था। सहार पुलिस के मुताबिक, रियाज से पूछताछ के बाद उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। कोर्ट ने उसे 2 नवंबर तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा है।
सीएम से लेकर प्राइम मिनिस्टर के साथ आ चुका है नज़र
रियाज़ महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़णवीस, प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी समेत कई बड़ी हस्तियों के साथ नज़र आ चुका है। बताया जा रहा है कि छोटा राजन की गिरफ्तारी के पहले से ही पुलिस दाऊद और उसके करीबियों पर नज़र रखे हुए है। रियाज़ पर भी पुलिस कई दिनों से नज़र रखे हुई थी।
दो पासपोर्ट बरामद
पुलिस ने रियाज से दो पासपोर्ट बरामद किए हैं। बताया जा रहा है कि वह इन पासपोर्ट्स से कई बार ट्रैवल कर चुका है। इनमें से एक पासपोर्ट G3128659 जयपुर से 2007 में फूलजी भाटी के नाम पर इश्यू हुआ है। 2013 में दूसरा पासपोर्ट Z 2479378 रियाज के नाम से ही जारी हुआ था। पहले पासपोर्ट पर भाटी की डेट ऑफ़ बर्थ 12 जून, 1968 और दूसरे पासपोर्ट पर वर्ष 1962 और फरवरी महीने की तारीख दर्ज है। पुलिस को शक है कि उसके पास से कई और फर्जी पासपोर्ट बरामद हो सकते हैं।
कौन है रियाज़?
– रियाज़ की गिनती मुंबई के रसूखदार बिल्डर्स में होती है। उस पर कई क्रिमिनल केस दर्ज हैं।
– 2008 में खंडाला फायरिंग केस और 2009 में जमीन हड़पने के मामले में उसका नाम आ चुका है।
– कहा जाता है कि वह अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर इकबाल अटरवाला और अजय के साथ दाऊद की प्राइवेट पार्टी में शामिल हो चुका है।
– पुलिस सूत्रों के मुताबिक, भाटी हवाला ऑपरेटर के रूप में भी काम करता है।
– वो एक स्पोर्ट्स एकेडमी चलाता है।
– इस बिजनेस के जरिए वह पुलिस के सामने खुद को व्हाइट कॉलर बिजनेसमैन के रूप में पेश करता रहा है।
दाऊद के मददगार भारत में हैं मौजूद, लेकिन आसानी से नहीं हाे पाते बेनकाब, जानिए क्यों?
> जस्टिस एन एन वोहरा की अगुआई में बनी कमेटी ने 1993 में एक रिपोर्ट पेश की थी। बाद में इस रिपोर्ट का एक एनेक्सजर भी सरकार को सौंपा गया। माना जाता है कि मुंबई बम धमाकों पर केंद्रित इस रिपोर्ट में डी कंपनी जैसे माफिया ऑर्गनाइजेशंस की एक्टिविटीज और उनके सरकारी अफसरों-राजनेताओं से रिश्तों का जिक्र था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि ये अफसर और राजनेता किस तरह इन अपराधियों को बचाते हैं। जाहिर है कि कुछ अफसर और नेता दाऊद इब्राहिम की मदद करते रहे हैं।
>रिपोर्ट को पब्लिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की गई। यह पिटीशन दिनेश त्रिवेदी की ओर से दायर की गई। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि वोहरा कमेटी की रिपोर्ट के एनेक्सजर को पब्लिक करना पब्लिक इंटरेस्ट में सही नहीं है।
>10 मई 2012 में सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC) ने निर्देश दिया कि इस रिपोर्ट के एनेक्सजर को पब्लिक किया जाए। इससे पहले, एक आरटीआई के जवाब में सरकार यह बताने में नाकाम रही थी कि आखिर क्यों इसे पब्लिक नहीं किया जा सकता? रिपोर्ट को पब्लिक करने की मांग एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आरटीआई लगाकर की थी।
>27 जून 2012 को यूपीए सरकार ने कहा कि ऐसा कोई एनेक्सजर ऑन रिकॉर्ड है ही नहीं। जबकि सुप्रीम कोर्ट के 1997 के फैसले में इस बात का साफ-साफ जिक्र है। ऐसे में विरोधी आरोप लगाते रहे हैं कि कुछ नेताओं को बचाने के लिए सरकार खुद इस रिपोर्ट को दबाती रही है।