नए शीत युद्ध की दस्तक, शस्त्र होड़ में शामिल हुए रूस और अमेरिका
वाशिंगटन । मध्यम दूरी परमाणु संधि (Intermediate Range Nuclear Forces Treaty) से हटने के बाद अमेरिका ने पहली बार पारंपरिक रूप से कॉन्िफगर एक क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया। पेंटागन ने सोमवार इस बात की पुष्टि की है कि उसने 500 किलोमीटर से अधिक रेंज वाली मिसाइल का परीक्षण किया है। इस परीक्षण के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। जाहिर है इससे एक बार फिर दुनिया में शस्त्रों की होड़ शुरू होगी। यह एक नए शीत युद्ध की भी दस्तक है। आइए जानते हैं, कैसे एक बार फिर विश्व नए शीत युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। उस ऐतिहासिक संधि के बारे में जिसने दुनिया में शीत युद्ध को समाप्त कर शस्त्रों की होड़ पर विराम लगाया था। आदि-अादि।
सैन निकालस द्वीप पर अमेरिका ने किया परीक्षण
सोमवार को पेंटागन ने अपने बयान में कहा कि यह परीक्षण रविवार को कैलिफोर्निया के सैन निकालस द्वीप पर हुआ। इस परीक्षण को धरती की सतह से लांच किया गया। इस मिसाइल ने मारक क्षमता 500 किलोमीटर है। अमेरिका का दावा है कि उसका यह परीक्षण सफल रहा। मिसाइल ने तय समय पर यह दूरी तय करके अपने लक्ष्य को साधने में सफल रही।
पहले अमेरिका और बाद में रूस संधि से हुए अलग
दो अगस्त को अमेरिका ने रूस के साथ हुई मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि से खुद को अलग करने की घोषणा की। अमेरिका की इस घोषणा के अगले ही दिन रूस ने भी इस संधि पर हटने का ऐलान कर दिया था। इस संधि से अलग होने के पीछे अमेरिका का तर्क था कि रूस लगातार इस संधि का उल्लंघन कर रहा है। अमेरिका ने कहा जब तक रूस मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों का निर्माण करता रहेगा तब तक अमेरिका इस संधि का पालन नहीं करेगा। अमेरिका ने कहा कि वह जमीन से मार करने वाली मिसाइलों को परीक्षण और निर्माण करेगा।
क्या है मध्यम दूरी परमाणु संधि
दुनिया के लिए 8 दिसंबर, 1989 की तिथि बेहद अहम है। इस दिन विश्व की दो महाशक्तियों ने शांति के एक नए अध्याय की शुरुआत की थी। जी हां, संयुक्त राज्य अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने मध्यम दूरी के परमाणु प्रक्षेपास्त्रों को समाप्त करने के लिए एक परमाणु शक्ति संघि पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के बाद ही दुनिया में शीत युद्ध का दौरा समाप्त होने के संकेत मिले थे। विनाशक शस्त्रों की होड़ पर ब्रेक लगाने के लिए दोनों देशों ने संयुक्त प्रयास किया था।
एक नए अध्याय की शुरुआत हुई।यह समझौता अनायास नहीं हुआ था। दोनों देशों के बीच छह वर्षों तक चली गहन विचार-विमर्श और वार्ताओं के बाद दोनों देश परमाणु संधि पर राजी हुए थे। हालांकि, 1989 में सोवियत रूस के विधटन के साथ वारसा संधि और आइआरएनएफ का सामरिक महत्व नगण्य हो गया था। वारसा संधि की समाप्ति के कारण मध्य यूरोप से सेनाओं का एकपक्षीय पलायन हो गया। इस दौर में समुद्री प्रक्षेपास्त्रों तथा पेरोलिंग प्रेक्षेपास्त्रों के प्रसार का कोई औचित्य नहीं रह गया। आइआरएनएफ का लक्ष्य इन्हीं प्रक्षेपास्त्रों पर नियंत्रण रखना था। फिर भी गोर्बाचेव काल के तनाव शैथिल्य में एक सांकेतिक और ऑन साइट निरीक्षण प्रणाली के सुझाव की दिशा में इस संधि का कुछ महत्व है।