राज्य

पति ने 10 साल पहले रूबीना को दे दिया था तलाक; अब फोरम बना कर दिला रहीं पीड़ित महिलाओं को न्याय, 125 की कर चुकी हैं मदद

नागपुर.तीन तलाक को लेकर देश में जोरदार बहस चल रही है। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में पूरी हो चुकी है फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है। वहीं पूरे देश की तरह नागपुर की रूबीना पटेल भी कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। करें भी क्यूं न, क्योंकि तीन तलाक ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी है। बात करीब 10 साल पहले की है। एक दिन रूबीना के पति ने उन्हें अचानक तीन बार तलाक बोलकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। उस समय वे दो बच्चों की मां थीं। इस घटना ने रूबीना को बुरी तरह झकझोर दिया। वह न्याय मांगने समाज के कई वरिष्ठ लोगों के पास पहुंचीं, पर हर जगह उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद रूबीना ने तय कर लिया कि वो अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगी। साथ ही उनकी तरह पीड़ित अन्य महिलाओं को भी न्याय दिलाएंगी।
पति ने 10 साल पहले रूबीना को दे दिया था तलाक; अब फोरम बना कर दिला रहीं पीड़ित महिलाओं को न्याय, 125 की कर चुकी हैं मदद
 
– महिलाओं के अधिकार के लिए रूबीना ने रूबीना फोरम मुस्लिम महिला मंच बनाया।
– अब तक तीन तलाक के 300 मामले आ चुके हैं।
– करीबन 50 केस कोर्ट में लड़ रही हैं

ये भी पढ़े: बड़ी खबर: अभी-अभी बॉलीवुड की इस मशहुर अभिनेत्री की दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत

महिलाओं की हक की आवाज बुलंद कर रही हैं..
– रूबीना ने पहले साल ही करीब 10 मामलों में पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाया। इसके बाद उन्होंने इस लड़ाई को लड़ने के लिए ‘मुस्लिम महिला मंच’ बनाया।
– 10 साल में उनके संगठन के पास करीब तीन तलाक की 300 पीड़ित महिलाओं के मामले पहुंचे हैं, जिनमें से करीबन 125 मामलों में वह पिड़ित महिलाओं को न्याय दिला चुकी हैं।
– करीबन 50 मामलों वे कोर्ट में लड़ रही हैं। रूबीना ने तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल भी दायर कर रखी है।

 
बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का शिकार
– रूबीना बताती हैं कि देश भर में तीन तलाक के मामले बड़े पैमाने पर हुए हैं। इसके फतवे जारी होते हैं, पर इसका रिकॉर्ड केवल दारुल कज़ा के पास होता है। अदालत के पास भी इसका कोई आंकड़ा नहीं है। यही वजह है कि समाज में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं इसकी शिकार हो रही हैं।
– नागपुर में करीब 5 दारुल कज़ा हैं। यहां से मिलने वाली तीन तलाक की रजामंदी को केवल धार्मिक मान्यता होती है, पर इनका कोई संवैधानिक आधार नहीं होता।
– तीन तलाक के कितने मामले कोर्ट तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। मेरे पास कई मामले ऐसे भी आते हैं, जिसमें पति गुस्से में आकर पत्नी को तीन बार तलाक बोल देता है। बाद में पति भूल मानकर पछताते भी हैं, लेकिन मुफ्ती ऐसे लोगों को पत्नी से मिलने नहीं देते हैं।
– वे ऐसे रिश्तों को हराम बताकर हदीस की सलाह देते हैं। यह महिलाओं पर अत्याचार है। जब महिलाओं के अधिकार का सवाल आता है तो कहा जाता है धर्म खतरे में है।
– ऐसा क्यों कहा जाता है? तीन इद्दत (मासिक धर्म) के बाद इस्लाम में मेंटेनेंस नहीं मांगा जा सकता। जो तलाकशुदा महिलाओं के साथ अन्याय है। देश में तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के बजाए राजनीति की जा रही है।

Related Articles

Back to top button