एजेन्सी/ नई दिल्ली: उत्तराखंड की स्थिति पर विचार करने के लिए आज यहां केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के विकल्प पर विचार की अटकलों की पृष्ठभूमि में यह बैठक हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के असम से वापस लौटते ही कैबिनेट की बैठक हुई।
बैठक से पहले भाजपा के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भेंट की और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते हुए कहा कि स्टिंग ऑपरेशन के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत को पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। स्टिंग में रावत 28 मार्च को होने वाले विश्वास मत के दौरान बहुमत साबित करने के लिए पार्टी के बागी विधायकों के साथ सौदेबाजी करते नजर आ रहे हैं।
राष्ट्रपति को सौंपे गए भाजपा के ज्ञापन में प्रदेश के राज्यपाल कृष्ण कांत पाल पर भी निशाना साधते हुए कहा गया है कि उन्होंने बहुमत विधायकों द्वारा प्रदेश सरकार को बर्खास्त करने के अनुरोध पर कार्रवाई नहीं की और इसके विपरीत रावत को बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन का वक्त दे दिया।
कांग्रेस के बागी विधायकों ने आज आरोप लगाया कि उन्हें मुख्यमंत्री की ओर से रिश्वत की पेशकश की गई है ताकि वे 28 मार्च को सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान उनका साथ दें। उन्होंने मुख्यमंत्री के ‘स्टिंग ऑपरेशन’ का एक वीडियो भी साझा किया। हालांकि रावत ने उसे फर्जी बताया। विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल की ओर से दल-बदल कानून के तहत कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को जारी किए गए नोटिस पर जवाब देने का समय आज शाम खत्म हो गया।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपोर्टमेंट’ काम पर लगा हुआ है। वहीं भाजपा ने रावत सरकार को ‘तुरंत बर्खास्त’ करने की मांग की है।
अब सभी की नजरें अध्यक्ष के फैसले पर टिकी हुई हैं, जो रावत सरकार के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रावत सरकार को सोमवार को सदन में अपना बहुमत साबित करना है।
यदि अध्यक्ष कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करते हैं तो उनकी सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। ऐसे में विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या 70 से घटकर 61 रह जाएगी। ऐसे में रावत के लिए बहुमत साबित करना आसान हो जाएगा, क्योंकि उनके पास कांग्रेस के 27 और सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट के छह विधायक हैं।