टॉप न्यूज़फीचर्डब्रेकिंगराष्ट्रीय

बड़ी खबर : एससी—एसटी एक्ट में बिना जांच की होगी गिरफ्तारी, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के संशोधन को सही माना

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकार रखा है। यानी अगर किसी के खिलाफ इस कानून के तहत केस दर्ज होता है, तो बगैर जांच के उसकी गिरफ्तारी होगी। इस कानून के तहत एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपितों के लिए अग्रिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है। कोर्ट ने इस दौरान कहा कि अदालत केवल उन्हीं मामलों में अग्रिम जमानत दे सकती है, जहां शुरुआती जांच में कोई मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि मामला दर्ज करने के लिए प्राथमिक जांच आवश्यक नहीं है। जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रविंद्र भट की पीठ ने आज मामले में अपना फैसला सुनाया। रविंद्र भट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को साथी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने और भाईचारे की अवधारणा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2018 के एससी, एसटी संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर आया है। गौरतलब है कि पिछले साल अक्टूबर में, पीठ ने संकेत दिया था कि यह तत्काल गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत पर रोक लगाने के लिए एससी, एसटी अधिनियम में केंद्र द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखेगा।

कोर्ट ने इस दौरान कहा था,’हम किसी भी प्रावधान को कम नहीं कर रहे हैं। इन प्रावधानों को कम नहीं किया जाएगा। कानून वैसा ही होना चाहिए जैसा वह था। उन्हें छोड़ दिया जाएगा क्योंकि यह समीक्षा याचिका और अधिनियम में संशोधनों पर निर्णय से पहले था।’ अदालत ने इस दौरान यह भी कहा था कि यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि एससी / एसटी कानून के तहत किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले पुलिस प्राथमिक जांच कर सकती है। अगर शुरुआती जांच में उसे शिकायतें झूठी लगती हैं। 20 मार्च, 2018 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने इस कानून के तहत शिकायत पर अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ने के साथ-साथ स्वत: गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी थी। इसके बाद पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2019 को बहाल कर दिया था।

Related Articles

Back to top button