दस्तक-विशेष

भाजपा का मुख्यमंत्री

ज्ञानेन्द्र शर्मा
cm bjpभारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में उसी जाल में फंस गई दिखती है जिसे उसने राष्ट्रीय स्तर पर 2013 में बुना था। उस समय उसने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का अपना प्रत्याशी घोषित किया था। बाद में यह परम्परा जब आगे बढ़ी तो हाल ही में असम में भाजपा ने सोनोवाल को चुनाव पूर्व अपना मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया था। अब उत्तर प्रदेश में यही मांग उठ रही है कि अपने भावी मुख्यमंत्री का चेहरा दिखाओ। भाजपा के पास कोई चेहरा स्पष्ट तौर पर सामने नहीं है कि जिस पर वह अपना दांव लगा दे। तीन पुराने नेता हैं- कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्रा। और कोई ऐसा दमदार नेता कहीं दिखता नहीं जिसकी पूरी प्रदेश में राज्य स्तरीय नेता की साफ सुथरी छवि हो और पकड़ भी हो। इनमें से कल्याण सिंह और कलराज मिश्रा स्वास्थ्य के कारणों से रेस में नजर नहीं आते हैं। दो अन्य नेता वरुण गांधी और स्मृति ईरानी के नाम भी घूम फिरकर सामने आ सकते हैं लेकिन उनकी घुड़चढ़ी फिलहाल संभव नहीं दिखती। भाजपा को कोई प्रभावी ब्राह्मण चेहरा भी नहीं नजर आता।
बचते हैं राजनाथ सिंह जो केन्द्र में गृहमंत्री हैं। राजनाथ सिंह का वश चला तो कभी अपने को उम्मीदवार घोषित नहीं होने देंगे। इसकी वजहें हैं। राजनाथ सिंह केन्द्रीय गृहमंत्री हैं और मुख्यमंत्री का पद उसकी तुलना में काफी छोटा है। एक छोटे पद के लिए वे सामने आएं, उन्हें शायद यह गंवारा नहीं होगा। फिर मान लीजिए वे आ भी गए तो उन्हें दिक्कत ही दिक्कत है। उनके नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और पार्टी नहीं जीत पाई तो हार का पूरा दोष उन्हीं पर मढ़ जाएगा यानी उन्हें ही जिम्मेदार मान लिया जाएगा। यह हुआ तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोनों अपने दामन बचा लेंगे और साफ बचकर निकल जाएंगे।
मान लीजिए कि भाजपा जीत गई तो राजनाथ सिंह उसके चुनाव पूर्व प्रत्याशी होने के नाते मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने को मजबूर होंगे। तब उन्हें केन्द्र का गृहमंत्री जैसा भारी भरकम पद छोड़ना पड़ेगा।
दोनों हालात में वे घाटे में नजर आएंगे। लेकिन संभावना यह जरूर रहेगी कि भाजपा हाईकमान और आर0एस0एस0 राजनाथ सिंह से ही मैदान में उतरने को कहेंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव कोई मामूली चुनाव नहीं होता- यह पूरे देश की राजनीति पर असर डालता है। वैसे ही भाजपा यदि उत्तर प्रदेश में हार गई तो यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका होगा क्योंकि दूसरे सबसे बड़े राज्य बिहार में वह पहले ही हार चुकी है। ऐसे में राजनाथ सिंह के अलावा कोई दूसरा उम्मीदवार भाजपा के लिए मुफीद नहीं बैठेगा। लेकिन राजनाथ सिंह को केन्द्र से इस मौके पर छुट्टी देना आसान नहीं होगा। राजनाथ सिंह ने गृह विभाग में पिछले दो साल में अच्छी खासी पकड़ बना ली है। इस समय पाकिस्तान सीमा पर आतंकी गतिविधियां उभार पर हैं और आंतरिक खतरे अपनी जगह हैं। इसलिए उनका विकल्प ढूंढ़ पाना टेढ़ी खीर साबित होगा। ल्ल

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