मां दुर्गा का अनोखा शक्तिपीठ, जहां मुसीबत आने से पहले आंसू बहाती है प्रतिमा
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में नगरकोट नाम के स्थान पर स्थित है ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर। इसीलिए इस मंदिर को नगर कोट की देवी, कांगड़ा देवी और नगर कोट धाम भी कहा जाता है। देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक इस स्थान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है इसीलिए इसका वर्णन माता दुर्गा की स्तुति में भी किया गया है। ऐसा माना जाता है इस मंदिर का निर्माण पांडव द्वारा किया गया था।मंदिर की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने जब उनके पिता दक्ष द्वारा किये यज्ञ में अपमानित होने के कारण उसी यज्ञकुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब क्रोधित भगवान शंकर उनके मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाते हुए तांडव करना प्रारंभ कर दिया। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था। उन्हीं अंगों में से देवी का बांया वक्ष इस स्थान पर गिरा था। तभी से ये स्थान देवी के शक्तिपीठ के रूप में स्वीकृत किया गया।
रोती हुई प्रतिमा
इस मंदिर में माता एक पिण्डी के रुप में विराजमान हैं, यहीं पर देवी की पिंडी के साथ भगवान भैरव की भी एक चमत्कारी मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि जब इस स्थान पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो भैरव की मूर्ति से आंसू और पसीना बहने लगता है। भक्तों का दावा है कि यहां पर ये चमत्कार कई बार देखा है। कहते हैं कि 1976-77 में इस मूर्ति में आंसू व शरीर से पसीना निकला था, उसी के बाद कांगड़ा में भीषण अग्निकांड हुआ था और काफी दुकानें जलकर राख हो गई थीं। इसके बाद से ही आपदा को टालने के लिए यहां हर वर्ष नवंबर व दिसंबर के मध्य में भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दौरान पाठ और हवन किया जाता है।
सुनने में आता है कि 10वीं शताब्दी तक ब्रजेश्वरी देवी मंदिर बहुत ही समृद्ध था। बाद के समय में इस मंदिर पर विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार आक्रमण किया। सन 1009 में मुहम्मद गजनी ने इस मंदिर को पूरी तरह तबाह कर दिया था। वो मंदिर के चाँदी से बने दरवाजे तक उखाड़ कर ले गया था। माना तो यही जाता है कि गजनी ने करीब पांच बार मंदिर पर हमला कर उसे लूटा था। उसके बाद 1337 में मुहम्मद बीन तुकलक और पांचवी शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने भी इसे लूटा और तबाह किया। इस तरह मंदिर का कई बार निर्माण होता रहा। ऐसी भी कहानियां सुनाई देती हैं कि एक बार मुगल सम्राट अकबर यहां आया था और उसने इस मंदिर के पुनः निर्माण में सहयोग भी दिया था। आखिर में 1905 में एक भंयकर भूकंप में मंदिर को पूरी तरह नष्ट हो गया था जिसके बाद 1920 में वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण किया गया।