मिट्टी के नीचे बन रही फॉस्फेट की परत
लखनऊ। आजकल फसलों को कीटों आदि से बचाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का बहुतायात में प्रयोग हो रहा है। इन उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से खेतों के मिट्टी की निचली परत में फॉस्फेट की परत बनती जा रही है जिसके कारण ऊपरी सतह के नीचे की भूमि से फसलों को मिलने वाले पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं। इसका असर उत्पादन पर भी पड़ रहा है। कृषि वैज्ञानिक भी इस बात पर चिंता जाहिर कर रहे हैं। दरअसल अधिक से अधिक उत्पादन के लिए किसानों ने अंधाधुंध फॉस्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग किया जिसके कुपरिणाम अब कई जगह सामने आने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक डाई अमोनियम फॉस्फेट एनपीके सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा अन्य फॉस्फेटिक उर्वरकों के प्रचूर मात्रा में प्रयोग से उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन इसके विपरीत परिणाम भी दिखने लगे हैं। खेतों में मिप्ती से कुछ इंच नीचे लभगग एक फीट तक फॉस्फेट की परत बन गई है जिससे भूमि के नीचे से मिलने वाले पोषक तत्व पौधों को नहीं मिल पा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कई जगह सर्वे के बाद ये तथ्य सामने आए हैं। कृषि वैज्ञानिक और बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर आर.सी. तिवारी ऐसी स्थिति को देखते हुए जैविक खेती को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं। जैविक उर्वरकों के जरिये इस परत को तोड़ा जा सकता है। प्रो.तिवारी का कहना है कि खेतों में प्रयुक्त फॉस्फेटिक उर्वरकों का आधे से भी कम हिस्सा पौधों को मिलता है। शेष फॉस्फेट जमीन के अंदर चला जाता है जो अघुलनशील होने के कारण नीचे परत में जमा हो जाता है। हालांकि मिप्ती के नीचे बनी फॉस्फेट की इस परत को जुताई से भी तोड़ा भी जा सकता है। मृदा वैज्ञानिक डा. जनार्दन ने बताया कि सतह की मिप्ती के नीचे बनी परत को तोड़ने के लिए गहरी जुताई जरूरी है जबकि वर्तमान में रुटावेटर जीरो टिलेज मशीन का प्रयोग किया जा रहा है जो गहरी जुताई नहीं कर पाते हैं। खेतों की गहरी जुताई जरूरी है इससे खेतों में जमा परत टूट जाती है।